score Card

कौन हैं बानू मुश्ताक? पहली कन्नड़ लेखिका जो बनीं इंटरनेशनल बुकर विजेता

Banu Mushtaq: 77 वर्षीय कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक ने अपनी लघुकथा संग्रह 'हार्ट लैम्प' के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतकर भारत और कन्नड़ साहित्य को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया है. वे यह सम्मान पाने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Banu Mushtaq: भारतीय साहित्य के इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय जुड़ गया है. 77 वर्षीय कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक ने प्रतिष्ठित इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ जीतकर देश का नाम रोशन किया है. उनकी लघुकथाओं की किताब 'हार्ट लैम्प' को यह अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ है. यह उपलब्धि न केवल बानू के लिए बल्कि कन्नड़ साहित्य और भारत की भाषायी विविधता के लिए भी एक ऐतिहासिक क्षण है.

बानू मुश्ताक इस सम्मान को पाने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं. उनके इस संग्रह में 1990 से 2023 तक के तीन दशकों में कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के जीवन संघर्षों को संवेदनशीलता के साथ उकेरा गया है. बानू की कहानियों ने उस आवाज़ को शब्द दिए हैं जो अक्सर समाज में अनसुनी रह जाती हैं.

भारतीय विजेताओं की विशिष्ट सूची में शामिल

बानू मुश्ताक का नाम अब उन चुनिंदा भारतीय साहित्यकारों की सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को अपने नाम किया है. इसमें वी. एस. नायपॉल, सलमान रुश्दी, अरुंधति रॉय, किरण देसाई, अरविंद अडिगा और गीताांजली श्री जैसे दिग्गज लेखक शामिल हैं.

लेखन का सफर और सामाजिक चेतना

कर्नाटक के हासन ज़िले से ताल्लुक रखने वाली बानू ने पहली लघुकथा मिडिल स्कूल में लिखी थी. मात्र 26 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी प्रसिद्ध कन्नड़ पत्रिका 'प्रजामता' में प्रकाशित हुई थी. बुकर पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, उन्होंने अब तक छह लघुकथा संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह लिखे हैं.

लेखन के पीछे सामाजिक संघर्षों की प्रेरणा

बानू ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि उनका लेखन दलित आंदोलन, किसानों के आंदोलन, भाषा आंदोलन, महिलाओं के संघर्ष और पर्यावरणीय आंदोलनों से प्रेरित रहा है. उन्होंने कहा, "हाशिए पर खड़े समुदायों और महिलाओं के जीवन से मेरा सीधा जुड़ाव रहा, वहीं से मुझे लिखने की शक्ति मिली."

महिला अधिकारों की सशक्त आवाज

बानू मुश्ताक ने न सिर्फ साहित्य के माध्यम से बल्कि सामाजिक कार्यों के जरिये भी धार्मिक और जातीय अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई है. उन्होंने बताया कि अनेक महिलाएं अपने दुख-सुख लेकर उनके पास आती थीं और उनकी कहानियाँ ही बानू की रचनाओं का आधार बनीं.
 

calender
21 May 2025, 12:02 PM IST

ताजा खबरें

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag