गांधी और अंबेडकर की क्यों नहीं बनती थी, विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गए थे महात्मा गांधी

भारत के राष्ट्रपति यानी महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत की विकास यात्री में अहम योगदान दिया है. हालांकि, इस दौरान कई बार ऐसा हुआ कि दोनों के बीच आपसी तालमेल नहीं देखने को मिला. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों दोनों के बीच नहीं बनती थी.

JBT Desk
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महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर एक ऐसे नेता थे जिन्होंने देश के विकास के लिए अपना अहम योगदान दिया है. देश की आजादी और उसके बाद तक दोनों ने अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थी जिसे चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता है. महात्मा गांधी ने अपने शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेज सरकार को झुकने को विवश किया है तो वहीं भीमराव अम्बेडकर ने भारत का संविधान लिखा है.

कहा जाता है कि भीम राव अम्बेडकर और महात्मा गांधी की आपस में नहीं बनती थी. कई बार कई मुद्दों पर दोनों की आपसी सहमति नहीं बनी थी. एक बार तो महात्मा गांधी ने डॉ. अंबेडकर के खिलाफ पुणे की यरवड़ा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया था.

जब अम्बेडकर के फैसले से गांधी से हुए थे आह

दरअसल, साल 1930 से 1932 के दौरान लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन हुए थे जिसमें भारत की ओर से प्रतिनिधि के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर शामिल हुए थे. दूसरे सम्मेलन के दौरान डॉ अंबेडकर के सुझावों पर विचार-विमर्श किया गया और अमल करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैकडोनाल्ड सांप्रदायिक पुरस्कार देने की घोषणा कर दी. इस फैसले के बाद से दलितो के साथ साथ 11 समुदायों के लिए अलग-अलग से निर्वाचन क्षेत्र मिलना था जिसमें दलित वर्ग को दो वोट करने के अधिकार थे. पहले वोट से प्रतिनिधि चुनना था तथा दूसरे से सामान्य प्रतिनिधि को चुनना यानी दलितों का चुनाव केवल दलित वोटों से होगा लेकिन, अम्बेडकर के इस फैसले से गांधी से बहुत आहत हुए थे.

गांधी जी ने जेल में शुरू कर दी थी अम्बेडकर के खिलाफ अनशन

अम्बेडकर के इस फैसले के बारे में जब गांधी जी पता चला तो इससे बहुत आहत हुए. उस दौरान वह पुणे की यरवडा जेल में निरुद्ध थे. उन्होंने इस फैसले को बदलने के लिए ब्रिटिश पीएम को पत्र लिख लेकिन उनके पत्र का कोई जवाब नहीं मिला. जिसके बाद उन्होंने 20 सितंबर 1932 को जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया. गांधी जी अनशन के बारे में जब लोगों को पता चला तो सभी उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हुए. इसके बाद कई लोगों ने अम्बेडकर को अपने फैसले को बदलने के लिए उनसे बात की लेकिन वह नहीं माने लेकिन बाद में कुछ शर्तों के साथ उन्होंने अपना फैसला बदलने के लिए राजी हो गए.

सफल रहा गांधी जी का अनशन

गांधी जी के अनशन और लोगों के समझाने के बाद भीमराव अम्बेडकर ने अपने फैसले को बदलने के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ शर्त रखी. 24 सितंबर 1932 को पूना संधि के रूप में दलितों के एक नई व्यवस्था शुरू की गई. इस व्यवस्था में ब्रिटिश सरकार की ओर से घोषित व्यवस्था को बदलने के लिए सहमति बनी जिस पर अंबेडकर और मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए. इस समझौते में यह तय हुआ की संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था में ही दलितों के लिए स्थान आरक्षित किया जाएगा. इस फैसले के बाद अंग्रेजों की बनाई गई एक व्यवस्था समाप्त हुई और गांधी जी का आंदोलन सफल हुआ.

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14 April 2024, 07:20 AM IST

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