गवाहों ने देखा नोटों का ढेर, जस्टिस यशवंत वर्मा ने क्यों छुपाई बात? जांच समिति की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने पर उनके आचरण को 'अप्राकृतिक' बताया और बर्खास्तगी की सिफारिश की है. समिति ने नकदी की मौजूदगी के सबूतों, गवाहियों और रिपोर्ट छिपाने के प्रयासों के आधार पर साजिश के तर्क को खारिज कर दिया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना के दौरान कई चश्मदीदों ने बड़ी संख्या में मुद्रा नोट देखे थे, लेकिन उन्होंने ना तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और ना ही किसी न्यायिक प्राधिकरण को इस बारे में सूचना दी. समिति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के आचरण को 'अप्राकृतिक' बताया है और उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की है.
जांच पैनल ने कहा कि घटना से जुड़े आरोपों में पर्याप्त ठोस आधार हैं. समिति को मिले सबूतों में आग की घटना के दौरान कमरे में बिखरे पड़े जली-अधजली स्थिति में नोटों की तस्वीरें, वीडियो क्लिप और चश्मदीदों के बयान शामिल हैं. खास बात ये रही कि जिस कमरे से नकदी मिली, उस तक पहुंच सिर्फ न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और उनके परिवार तक सीमित थी.
चश्मदीदों की गवाही और वीडियो से खुलासा
जांच समिति ने इस मामले में कुल 55 गवाहों से पूछताछ की, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा की बेटी भी शामिल थीं. फायर ब्रिगेड और पुलिस कर्मियों की गवाही के साथ-साथ उपलब्ध वीडियो और तस्वीरों में 'बड़ी मात्रा में ₹500 के नोट' फर्श पर बिखरे दिखे. एक प्रत्यक्षदर्शी ने समिति को बताया कि मैं बेहद चौंक गया, इतना कैश मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा.
क्यों नहीं दी गई कोई सूचना?
जांच रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार ने इस घटना के बारे में ना तो पुलिस को बताया, ना ही किसी वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी को. समिति ने कहा कि जज द्वारा अनभिज्ञता का दावा अविश्वसनीय है. अगर ये किसी साजिश का हिस्सा होता, तो उन्होंने शिकायत क्यों नहीं की? उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश को सूचित क्यों नहीं किया?
सबूत नष्ट करने की आशंका
समिति ने ये भी बताया कि जिस कमरे में आग लगी और नकदी पाई गई, वो पूरी तरह से जस्टिस यशवंत वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में था. बाद में वह कमरा साफ कर दिया गया और नकदी भी वहां से गायब हो गई. जांच में ये भी सामने आया कि न्यायमूर्ति के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की ने फायर ब्रिगेड अधिकारियों से कहा कि अपनी रिपोर्ट में करेंसी का कोई जिक्र ना करें.
फायर सर्विस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टीम से कहा कि मामले को और ना बढ़ाया जाए क्योंकि इसमें ऊंचे स्तर के लोग शामिल हैं. जस्टिस यशवंत वर्मा के स्टाफ ने नकदी देखने से इनकार किया, लेकिन समिति ने कहा कि पुलिस और फायर डिपार्टमेंट के गवाहों की गवाही पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है.
'साजिश' का तर्क खारिज
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इस पूरे मामले को अपनी छवि खराब करने की साजिश बताया था, लेकिन समिति ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि नकदी को कई लोगों ने देखा और उसे रियल टाइम में रिकॉर्ड भी किया गया. इसे किसी ने जालसाजी के तहत नहीं रखा था. समिति ने जस्टिस यशवंत वर्मा की बेटी दिया वर्मा और उनके निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इन दोनों की भूमिका सबूत मिटाने या स्थल की सफाई में हो सकती है.


