चीन की 85 अरब डॉलर की मेगा सिटी फेल, भूतिया शियोनगन में डेटिंग ही नहीं इंसानी जिंदगी तक गायब
चीन ने भविष्य का शहर बनाने का सपना देखा था, लेकिन शियोनगन आज खाली सड़कों, जबरन बसाए लोगों और खत्म होती सामाजिक जिंदगी की पहचान बन गया है।

शियोनगन स्मार्ट सिटी को चीन ने भविष्य के आदर्श शहर के तौर पर पेश किया था। इसे भीड़भाड़ वाले शहरों का समाधान बताया गया। दावा था कि यह मानव विकास का नया मॉडल बनेगा। लेकिन आज हालात बिल्कुल उलट हैं। ऊंची इमारतें खड़ी हैं, सड़कें चमक रही हैं, लेकिन लोग नदारद हैं। स्थानीय निवासी इसे भूतिया शहर कह रहे हैं। उनका कहना है कि शहर में जान नहीं है। यह जगह रहने के लिए नहीं बल्कि सहने के लिए बनी लगती है।
लोग यहां खुशी से आए या भेजे गए?
शियोनगन में रहने वाले ज्यादातर लोग अपनी मर्जी से नहीं आए। उन्हें उनके दफ्तरों ने यहां ट्रांसफर किया। कई मामलों में यह आदेश सरकार से आया था। कंपनियों, संस्थानों और कर्मचारियों को जबरन शिफ्ट किया गया। मकसद था शहर को आबाद दिखाना। स्कूल, अस्पताल और यूनिवर्सिटी तक लाने के आदेश दिए गए। लेकिन इमारतें तो आ गईं, इंसानी अपनापन नहीं आया। लोगों को लगता है कि वे किसी प्रयोग का हिस्सा बन गए हैं।
डेटिंग तक मुश्किल क्यों हो गई?
शहर की सबसे चौंकाने वाली बात सामाजिक जीवन की कमी है। एक महिला निवासी ने कहा कि यहां बॉयफ्रेंड ढूंढना लगभग नामुमकिन है। युवा लोग दिन रात काम करते हैं। ओवरटाइम आम बात है। मिलने जुलने के मौके बहुत कम हैं। कैफे, क्लब और सांस्कृतिक गतिविधियां लगभग नहीं के बराबर हैं। दोस्ती और रिश्ते अपने आप नहीं बनते। लोगों को सोशल लाइफ के लिए दूसरे शहरों की ओर देखना पड़ता है।
बोरिंग शहर क्यों कहलाया शियोनगन?
एक स्थानीय महिला मैक्स वांग ने इस शहर को एक शब्द में बयान किया। उसने कहा बोरिंग। खाली सड़कें और शांत माहौल पहली नजर में आकर्षक लग सकता है। लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में यह खालीपन भारी पड़ता है। शाम होते ही शहर सो जाता है। न चहल पहल है न बातचीत। लोग खुद को अलग थलग महसूस करते हैं। यह शहर तकनीक से भरा है, लेकिन भावनाओं से खाली है।
क्या सिर्फ इमारतें ही विकास हैं?
शियोनगन का मामला बताता है कि विकास सिर्फ कंक्रीट से नहीं होता। स्मार्ट सिटी का मतलब स्मार्ट जिंदगी भी होना चाहिए। यहां ट्रांसपोर्ट, इमारतें और डिजिटल सिस्टम हैं। लेकिन इंसानी जरूरतों की अनदेखी हुई। लोग मनोरंजन, रिश्ते और समुदाय चाहते हैं। जब ये नहीं होते तो शहर बोझ बन जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शियोनगन में योजना कागज पर शानदार थी। जमीन पर यह ठंडी और बेरुखी साबित हुई।
चीन की योजना पर क्या सवाल उठते हैं?
शियोनगन की हालत चीन की आर्थिक और शहरी नीति पर सवाल खड़े करती है। 85 अरब डॉलर खर्च करने के बाद भी शहर आबाद नहीं हो सका। इसे भविष्य की राजधानी जैसा दिखाया गया था। अब इसे फेल प्रोजेक्ट कहा जा रहा है। लोग यहां रह तो रहे हैं, लेकिन जी नहीं रहे। यह कहानी सिर्फ एक शहर की नहीं है। यह उस सोच की कहानी है जहां इंसान बाद में और इमारतें पहले आती हैं।
भविष्य के शहरों के लिए क्या सबक?
शियोनगन दुनिया के लिए चेतावनी है। स्मार्ट सिटी तभी काम करती है जब लोग उसे अपनाएं। जबरन बसाए गए शहर लंबे समय तक नहीं चलते। तकनीक जरूरी है, लेकिन इंसानी रिश्ते उससे भी ज्यादा जरूरी हैं। अगर शहर में मुस्कान नहीं है तो विकास अधूरा है। शियोनगन आज यही सिखा रहा है।


