तालिबान सरगना की दहशत से हिला एशिया, परमाणु संतुलन पर मंडरा रहा खतरा
तालिबान सरगना मुल्ला हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों से डरा हुआ है। उसकी छुपने की मजबूरी अब पूरे एशिया के परमाणु संतुलन को खतरे में डाल रही है।

International News: अफगानिस्तान से बाहर निकलकर अब यह टकराव पूरी दुनिया की नज़र में आ चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि अगर तालिबान पीछे नहीं हटा तो अंजाम खतरनाक होगा। चीन के परमाणु ठिकानों के करीब बग्राम एयरबेस को लेकर अमेरिका का रुख और सख्त हो गया है। इससे तालिबान का डर और बढ़ा है। मुल्ला अखुंदज़ादा अपने ही देश में सुरक्षित नहीं है। उसका डर अब एशियाई सुरक्षा व्यवस्था को भी हिला रहा है।
छिपने पर मजबूर नेता
तालिबान सरगना मुल्ला अखुंदज़ादा इस समय लगातार अपने ठिकाने बदल रहा है। कभी कंधार, कभी मंदिगक, तो कभी ऐनो मीना। उसके गार्ड तक असली जानकारी साझा नहीं कर रहे। पहले उसका रूटीन सभी को पता होता था, लेकिन अब वह पूरी तरह गुप्त हो गया है। यहां तक कि उसने उलेमा परिषद की बैठक भी रद्द कर दी। यह कदम उसके डर और कमजोरी को साफ दिखा रहा है।
परमाणु संतुलन पर असर
बग्राम एयरबेस पर अमेरिकी रुचि केवल तालिबान तक सीमित नहीं है। यह जगह चीन के परमाणु ठिकानों के बेहद पास है। ट्रंप ने साफ कहा कि अगर अमेरिका को यह बेस वापस नहीं मिला तो तालिबान के लिए बुरे दिन आएंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यहां संघर्ष भड़कता है तो इसका सीधा असर एशिया के परमाणु संतुलन पर पड़ेगा। यही वजह है कि दुनिया सांस रोके इस हालात को देख रही है।
तालिबान की कमज़ोर प्रतिक्रिया
ट्रंप की धमकियों के बाद तालिबान प्रशासन ने नरम बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि अमेरिका को दोहा समझौते का पालन करना चाहिए। यह बयान तालिबान की कमजोरी दिखाता है। आम तौर पर वे आक्रामक लहजे में बात करते हैं, लेकिन इस बार उनका रुख बदल गया। यह बदलाव साफ बताता है कि अखुंदज़ादा का डर केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि संगठनात्मक स्तर तक पहुंच चुका है।
संगठन में बढ़ती खाई
सूत्रों के मुताबिक अखुंदज़ादा के लगातार छिपने और बैठकें रद्द करने से तालिबान में अंदरूनी मतभेद गहराने लगे हैं। कई नेता उसके फैसलों से नाराज़ हैं। गार्ड और करीबी भी जानकारी साझा करने से बच रहे हैं। यह हालात तालिबान की ताकत पर सवाल खड़े कर रहे हैं। अगर उसका नेता ही सुरक्षित नहीं है तो संगठन पर भरोसा कैसे टिकेगा।
ट्रंप की रणनीतिक चाल
अमेरिका का मकसद सिर्फ तालिबान को दबाना नहीं बल्कि एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना भी है। ट्रंप ने ब्रिटेन दौरे के दौरान यह साफ किया कि चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना ज़रूरी है। तालिबान की कमजोरी का फायदा उठाकर अमेरिका एशिया के संतुलन को अपने पक्ष में झुकाना चाहता है। यही वजह है कि तालिबान का डर अब पूरे एशिया के लिए खतरे का संकेत बन चुका है।
अखुंदज़ादा का सफर और संकट
अखुंदज़ादा कंधार का रहने वाला है और 1980 के दशक में रूस के खिलाफ लड़ चुका है। 1994 में वह मुल्ला उमर के साथ तालिबान से जुड़ा। तब से उसकी ताकत लगातार बढ़ी और वह संगठन का बड़ा चेहरा बन गया। मगर आज वही शख्स अमेरिकी दबाव और मौत के डर से हर दिन ठिकाने बदलने पर मजबूर है। उसका डर अब केवल तालिबान तक सीमित नहीं बल्कि पूरे एशिया की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुका है।


