अयूब खान के तुगलकी फैसले का असर आज भी, आसिम मुनीर से जुड़ी तुलना क्यों?
पांच सितारा जनरल के रूप में जाने जाने वाले आसिम मुनीर अब अत्यंत प्रभावशाली बन चुके हैं. कहा जा रहा है कि वे सीधे तौर पर सत्ता में नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र की रक्षा के लिए पीछे से पूरी व्यवस्था को नियंत्रित कर रहे हैं.

पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ का ओहदा मिलने के बाद उनका कद देश की राजनीति और सत्ता ढांचे में असाधारण रूप से बढ़ गया है. यह सम्मान पाने वाले वह देश के दूसरे सेनाध्यक्ष बन गए हैं. इससे पहले यह दर्जा पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक अयूब खान को मिला था. अब मुनीर की तुलना भी अयूब खान से की जाने लगी है, जो देश पर वर्षों तक सत्ता पर काबिज रहे थे.
आसिम मुनीर को पांच सितारा पद
आसिम मुनीर को यह पांच सितारा पद ऐसे समय में मिला है, जब पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन कमजोर होता जा रहा है और सेना की भूमिका पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली मानी जा रही है. विश्लेषकों का मानना है कि मुनीर सीधे तौर पर सरकार नहीं चला रहे, लेकिन असली निर्णय उन्हीं के इशारे पर लिए जा रहे हैं.
सैन्य दखल
पाकिस्तान के इतिहास में सैन्य दखल हमेशा प्रमुख रहा है. अयूब खान ने 1958 से 1969 तक देश पर शासन किया और कई फैसले ऐसे किए, जिनके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आए. एक बड़ा निर्णय राजधानी को कराची से हटाकर इस्लामाबाद ले जाने का था. इस कदम ने न केवल प्रशासनिक भूगोल बदला, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान समेत अन्य प्रांतों में गहरी नाराजगी भी पैदा की.
इस्लामाबाद को एक नियोजित राजधानी के रूप में विकसित किया गया, जबकि कराची एक जीवंत सांस्कृतिक और बहुजातीय केंद्र था. कराची में मोहाजिर, सिंधी, पंजाबी, बंगाली और अन्य समुदाय मिल-जुलकर रहते थे, जिससे पूर्वी पाकिस्तान के नागरिक भी खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते थे.
हाशिये पर मोहाजिर
राजधानी के इस बदलाव ने मोहाजिरों को भी पीछे धकेल दिया. मोहाजिर, जो विभाजन के बाद भारत से आए और कराची में मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक उपस्थिति रखते थे, अचानक हाशिये पर चले गए. अयूब खान के शासन में नौकरशाही में बदलाव और राजधानी स्थानांतरण ने उन्हें असहज कर दिया.
1964 के राष्ट्रपति चुनाव में जब मोहाजिरों ने फातिमा जिन्ना का समर्थन किया, तो अयूब खान के खिलाफ गुस्सा खुलकर सामने आया. चुनाव बाद कराची में सांप्रदायिक तनाव भड़का, जिससे मोहाजिरों को पहली बार हिंसक संघर्ष झेलना पड़ा. इसे मोहाजिरों के लिए ‘दूसरे पलायन’ की तरह देखा गया.
फील्ड मार्शल की उपाधि
आज जब आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई है, तो अतीत की वह सारी परछाइयाँ फिर सामने आने लगी हैं. जब सेना न केवल रक्षा करती थी, बल्कि देश की दिशा भी तय करती थी.


