ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच चीन का बड़ा दांव, कर रहा अमेरिका को घुटनों पर लाने की तैयारी!
US-China Trade Relations: अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर ने वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है. डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच यह आर्थिक जंग अब नए मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां हर कदम रणनीतिक हथियार बनता जा रहा है.

US-China Trade Relations: अमेरिका और चीन के बीच चल रही टैरिफ वॉर अब वैश्विक व्यापार का सबसे बड़ा तनाव बन चुकी है. एक तरफ हैं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो चीनी आयात पर भारी शुल्क लगाकर घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं, जो कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर ट्रंप को घेरने की पूरी तैयारी में हैं. यह मल्लयुद्ध केवल दो देशों का नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और तकनीकी भविष्य का निर्धारण करने वाला है.
ट्रंप द्वारा आरंभ की गई टैरिफ वॉर ने दोनों देशों के बीच व्यापार को युद्ध जैसा बना दिया है. अमेरिका ने चीन से आने वाले उत्पादों पर 145% तक का टैरिफ लगाया है, जबकि चीन ने भी पलटवार करते हुए 125% तक के शुल्क अमेरिका के आयात पर थोप दिए हैं. लेकिन यह लड़ाई केवल टैरिफ तक सीमित नहीं है इसमें शामिल हो चुके हैं रेयर अर्थ मेटल्स, ट्रेजरी बिल, और तकनीकी कंपनियां भी.
रेयर अर्थ मेटल्स को हथियार बना रहा है चीन?
अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच चीन ने कई दुर्लभ पृथ्वी धातुओं और मैग्नेट्स के निर्यात पर रोक लगा दी है. यह निर्णय बेहद रणनीतिक है क्योंकि विश्व के 90% से अधिक रेयर अर्थ मेटल्स का उत्पादन चीन में होता है. इन तत्वों का उपयोग रक्षा उपकरणों, सेमीकंडक्टर्स, एयरोस्पेस तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में व्यापक रूप से होता है.
चीन द्वारा निर्यात पर रोक लगाना अमेरिका को तकनीकी और सामरिक रूप से झटका देने जैसा है. हालांकि अमेरिका ने पिछले वर्षों में चीन से इनकी निर्भरता कम की है, लेकिन अभी भी वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों में चीन की हिस्सेदारी अप्रत्यक्ष रूप से बनी हुई है.
पड़ोसी देशों को साथ लाकर घेराबंदी की तैयारी?
शी जिनपिंग इस समय वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया की यात्रा पर हैं. यह दौरा ट्रंप की टैरिफ घोषणाओं के बीच हो रहा है, जिससे इसकी रणनीतिक अहमियत और बढ़ जाती है. वियतनाम में शी ने शीर्ष नेता टू लैम से मुलाकात कर व्यापारिक सहयोग पर कई अहम समझौते किए और सप्लाई चेन विस्तार पर जोर दिया.
इस यात्रा को ट्रंप की 'अराजक और अस्थिर' नीतियों के विपरीत चीन की 'स्थिरता' के प्रचार के रूप में देखा जा रहा है. जिनपिंग इन देशों को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि चीन एक भरोसेमंद व्यापारिक साझेदार है.
ट्रेजरी बिल के जरिए चीन ने मजबूत की पकड़?
चीन के पास अमेरिका के 760 बिलियन डॉलर मूल्य के ट्रेजरी बिल हैं. ट्रेजरी बिल सरकारी उधारी का एक साधन होते हैं, जिन्हें चीन जैसे देशों ने भारी मात्रा में खरीदा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन इन ट्रेजरी बिल को बाजार में बेचता है, तो अमेरिकी डॉलर की वैल्यू में गिरावट आ सकती है.
अलजजीरा की रिपोर्ट में ग्राउंडवर्क कोलैबोरेटिव के एलेक्स जैक्वेज ने कहा कि इस कदम से वैश्विक वित्तीय प्रणाली में भारी उथल-पुथल आ सकती है, जिसका असर अमेरिका की घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है.
अमेरिकी कृषि क्षेत्र को निशाने पर ले सकता है चीन
अमेरिकी कृषि उत्पाद, खासकर सोयाबीन और पोल्ट्री, चीन में अत्यधिक निर्यात किए जाते हैं. चीन ने हाल ही में तीन बड़े अमेरिकी सोयाबीन निर्यातकों को आयात की मंजूरी रद्द कर दी है. यह कदम ट्रंप के वोटबैंक पर सीधा असर डालने की रणनीति माना जा रहा है क्योंकि इन उत्पादों का उत्पादन उन राज्यों में होता है जिन्होंने ट्रंप को समर्थन दिया था.
अमेरिकी टेक कंपनियों पर चीन की नजर
Apple और Tesla जैसी कंपनियां चीन में बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं. टैरिफ बढ़ने से इनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है. बीजिंग की योजना है कि इन कंपनियों पर नियामकीय दबाव डालकर ट्रंप प्रशासन पर अप्रत्यक्ष दबाव डाला जाए.
चीन का मानना है कि अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को बाधित कर वह अमेरिका की आर्थिक रीढ़ पर चोट कर सकता है.