ISI से जुड़े कश्मीरी लॉबिस्ट पर शिकंजा, NIA कोर्ट ने डॉ. फई की जमीन जब्त करने का दिया आदेश
कश्मीर से लेकर अमेरिका तक फैले आतंकी नेटवर्क की परतें खुलती दिखीं जब NIA कोर्ट ने ISI से जुड़े कश्मीरी लॉबिस्ट डॉ. फई की संपत्ति जब्त करने का सख्त आदेश जारी किया।

जम्मू कश्मीर में NIA की स्पेशल कोर्ट ने बड़ा और सख्त कदम उठाते हुए अमेरिका में रह रहे कश्मीरी लॉबिस्ट डॉ. गुलाम नबी शाह उर्फ डॉ. फई की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया। कोर्ट ने बडगाम जिले के वाडवान और चट्टाबुघ गांवों में स्थित एक कनाल से अधिक जमीन जब्त करने को कहा। आदेश में जिला प्रशासन को तुरंत कब्जा लेने के निर्देश दिए गए। यह कार्रवाई UAPA के तहत दर्ज मामले में की गई है। कोर्ट ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बताया। यह फैसला आतंकी फंडिंग के खिलाफ कड़ा संदेश माना जा रहा है।
कितनी और कहां की संपत्ति जब्त हुई?
NIA कोर्ट के आदेश के मुताबिक डॉ. फई की करीब डेढ़ कनाल से अधिक भूमि कुर्क की जाएगी। वाडवान गांव में एक कनाल दो मरला और चट्टाबुघ गांव में ग्यारह मरला जमीन शामिल है। कोर्ट ने साफ निर्देश दिए कि कब्जे से पहले जमीन की पहचान और सीमांकन सही तरीके से किया जाए। इसके लिए राजस्व और पुलिस अधिकारियों की मदद ली जाएगी। यह जमीन वर्षों से डॉ. फई के नाम दर्ज थी। अब यह सीधे सरकारी कब्जे में जाएगी।
डॉ. फई पर इतने साल बाद कार्रवाई क्यों?
डॉ. फई को पहले ही इस मामले में फरार घोषित किया जा चुका है। वर्ष 2020 में उनके खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज हुआ था। अदालत ने उन्हें पेश होने के लिए नोटिस दिया था, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। इसके बाद उन्हें भगोड़ा घोषित किया गया। इसी आधार पर अब उनकी संपत्ति कुर्क की गई है। कोर्ट का मानना है कि फरार आरोपी की संपत्ति जब्त करना कानूनन जरूरी है। यह कदम आगे की जांच को मजबूत करेगा।
कौन है डॉ. गुलाम नबी फई?
डॉ. फई मूल रूप से बडगाम जिले के रहने वाले हैं। उन पर प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी से जुड़ाव का आरोप है। जांच एजेंसियां उन्हें हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन का करीबी सहयोगी मानती हैं। आरोप है कि वह कश्मीर में आतंकवाद को वैचारिक और आर्थिक समर्थन देता रहा। भारत में उसे लंबे समय से आतंकी नेटवर्क का हिस्सा माना जाता है। यही वजह है कि उस पर कड़ी निगरानी रही है।
अमेरिका में कैसे हुआ था बड़ा खुलासा?
डॉ. फई अमेरिका में कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल नाम के संगठन का चेहरा था। वह इसे मानवाधिकार संगठन बताता रहा। लेकिन 2011 में FBI जांच में सामने आया कि यह संगठन ISI के इशारे पर काम कर रहा था। जांच में पता चला कि फई ने वर्षों तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से लाखों डॉलर लिए। इन पैसों का इस्तेमाल अमेरिकी नीति को प्रभावित करने में किया गया। यह खुलासा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा झटका था।
अमेरिका में क्यों गई थी जेल?
2012 में अमेरिका की एक फेडरल कोर्ट ने डॉ. फई को साजिश और टैक्स उल्लंघन का दोषी ठहराया। उसे दो साल की जेल की सजा सुनाई गई। ट्रायल के दौरान यह भी सामने आया कि उसने अपनी डॉक्टरेट डिग्री के बारे में झूठ बोला था। अभियोजकों ने कहा कि उसने फर्जी पहचान बनाकर राजनीतिक पहुंच बनाई। यह मामला उसकी विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल बन गया। जेल से छूटने के बाद भी वह जांच एजेंसियों के रडार पर रहा।
इस कार्रवाई का क्या बड़ा संदेश है?
NIA कोर्ट का यह आदेश सिर्फ जमीन जब्ती नहीं है। यह उन लोगों के लिए चेतावनी है जो विदेश में बैठकर भारत के खिलाफ साजिश रचते हैं। जांच एजेंसियां साफ कर रही हैं कि आतंकी नेटवर्क को आर्थिक रूप से तोड़ा जाएगा। फरार आरोपियों की संपत्ति भी सुरक्षित नहीं रहेगी। यह फैसला दिखाता है कि कानून देर से सही लेकिन कार्रवाई जरूर करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में अब कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।


