ईस्ट चाइना सी में बढ़ी हलचल, एशिया के आसमान पर वर्चस्व की जंग खुली
ईस्ट चाइना सी में बढ़ता तनाव अब जमीन या समुद्र तक सीमित नहीं रहा. असली लड़ाई आसमान पर नियंत्रण की है जहां चीन रूस और अमेरिका आमने सामने दिख रहे हैं.

ईस्ट चाइना सी को लेकर विवाद नया नहीं है लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई है. अब चर्चा जहाजों या मिसाइलों की नहीं हो रही. फोकस पूरी तरह एयर सुपीरियॉरिटी पर है. कौन आसमान को कंट्रोल करेगा यही सवाल है. जापान ने अपनी सुरक्षा मजबूत करने की बात कही. चीन ने इसे सीधे चुनौती माना. सैन्य उड़ानों की संख्या तेजी से बढ़ी. संकेत साफ है कि लड़ाई ऊपर शिफ्ट हो चुकी है.
चीन रूस क्या संदेश देना चाहते?
चीन और रूस की साझा एयर पेट्रोलिंग सिर्फ अभ्यास नहीं थी. यह एशिया में नया शक्ति संतुलन दिखाने की कोशिश थी. टीयू-95 और एच-6 बॉम्बर्स का साथ उड़ना प्रतीकात्मक था. सु-30 और सु-35 का एस्कॉर्ट रणनीतिक संदेश देता है. चीन ने जे-16 तैनात कर ताकत जोड़ी.
यह साफ संकेत था कि आसमान पर दबदबा बनाया जा सकता है. दोनों देशों ने मिलकर एयर ब्लॉक का संकेत दिया. पड़ोसी देशों ने खतरा महसूस किया.
जापान खुद को कैसे देखता है?
जापान इस पूरे घटनाक्रम में फ्रंटलाइन स्टेट बन गया है. टोक्यो जानता है कि पहला दबाव उसी पर आएगा. इसलिए एयरस्पेस की सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है. जापानी एफ-15 और एफ-35 लगातार एक्टिव हैं. हर चीनी उड़ान पर नजर रखी जा रही है. रडार और जैमिंग के आरोप इसी तनाव से जुड़े हैं. जापान इसे ताकत की परीक्षा मान रहा है. उसकी प्रतिक्रिया अब पहले से ज्यादा सीधी है.
अमेरिका ने B2 से क्या जताया?
अमेरिका का B2 बॉम्बर भेजना साधारण कदम नहीं था. यह दुनिया के सबसे स्टील्थ बॉम्बर्स में गिना जाता है. इसका दिखना ही संदेश माना जाता है. अमेरिका ने बताया कि आसमान पर उसकी पकड़ अभी भी मजबूत है.
जापानी फाइटर जेट्स के साथ उड़ान ने गठबंधन दिखाया. यह चीन रूस दोनों के लिए चेतावनी थी. अमेरिका ने बिना बयान दिए बात रख दी. एयर डोमिनेंस का दावा खुलकर सामने आया.
एयर सुपीरियॉरिटी क्यों निर्णायक है?
आधुनिक युद्ध में आसमान पर नियंत्रण सबसे अहम होता है. जिसने एयर सुपीरियॉरिटी पाई वही जमीन और समुद्र तय करता है. बॉम्बर और फाइटर जेट सिर्फ हथियार नहीं रणनीति हैं. रडार से बचना और दुश्मन को देख पाना बड़ा फर्क पैदा करता है. यही वजह है कि स्टील्थ टेक्नोलॉजी अहम बन गई है. एशिया में यह पहली बार इतनी खुली दौड़ दिख रही है. हर उड़ान भविष्य की तैयारी है.
ताइवान क्यों बना अहम कड़ी?
ताइवान इस पूरे समीकरण का केंद्र है. जापान का खुला समर्थन चीन को परेशान करता है. ताइवान तक पहुंचने वाले रास्ते ईस्ट चाइना सी से गुजरते हैं. इसलिए यहां एयर कंट्रोल जरूरी है. चीन किसी भी बाहरी दखल से सख्त नाराज होता है. अमेरिका ताइवान को लेकर सतर्क है. यही वजह है कि एयर मूवमेंट बढ़े हैं. यह सिर्फ चेतावनी नहीं रणनीतिक तैयारी है. ताइवान ने तनाव को और गहरा किया है.
आगे एशिया किस मोड़ पर है?
एशिया अब नई तरह की शक्ति परीक्षा में है. यह जंग बिना गोलियों के लड़ी जा रही है. आसमान में उड़ते विमान असली बयान दे रहे हैं. कोई भी देश खुली लड़ाई नहीं चाहता. लेकिन पीछे हटने के संकेत भी नहीं हैं. एयर पेट्रोलिंग और अभ्यास बढ़ेंगे. हर देश अपनी सीमा दिखाना चाहेगा. ईस्ट चाइना सी आने वाले समय का संकेत दे रहा है. असली खतरा एक गलत अंदाजे में छिपा है.


