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बजट से भड़की बगावत, पीएम का इस्तीफा भी शांत नहीं कर पाया फ्रांस का गुस्सा

फ्रांस में आम जनता सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर आई है। प्रधानमंत्री का इस्तीफा भी गुस्सा शांत नहीं कर सका। लोगों का कहना है कि चेहरे बदल रहे हैं लेकिन नीतियां वही हैं, इसलिए प्रदर्शन और भी ज्यादा उग्र हो गए हैं।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

International News: फ्रांस में यह बगावत एक बजट योजना से शुरू हुई। प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू ने 44 अरब यूरो बचाने की योजना पेश की थी। आम जनता को लगा कि इस फैसले से गरीब और मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। सोशल मीडिया पर विरोध शुरू हुआ और देखते ही देखते “ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन बन गया। लोगों का कहना था कि यह बजट सिर्फ अमीरों को फायदा पहुंचाने के लिए है। सरकार ने जनता के गुस्से को हल्के में लिया, लेकिन यह जल्द ही बड़े आंदोलन में बदल गया। लोगों ने इसे अपने जीवन पर सीधा हमला बताया।

इस्तीफे से नहीं थमा गुस्सा

जैसे-जैसे विरोध बढ़ा, प्रधानमंत्री बायरू को इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने इसे अपनी जीत माना, लेकिन उनका गुस्सा कम नहीं हुआ। भीड़ का कहना था कि यह सिर्फ एक चेहरा बदलने जैसा है। असली नीतियां वही हैं जो जनता को नुकसान पहुंचा रही हैं। प्रदर्शनकारियों ने साफ कहा कि उनकी लड़ाई सिर्फ एक व्यक्ति से नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था से है। इस्तीफा जहां सरकार को राहत देने वाला कदम था, वहीं यह प्रदर्शनकारियों के लिए हौसला बन गया। सड़कों पर नारे गूंजने लगे और गुस्सा और फैल गया।

मैक्रों ने बदला चेहरा

प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नए नेता का एलान किया। रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू को प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन जनता ने इस फैसले को तुरंत खारिज कर दिया। लोगों का कहना था कि चेहरा बदलने से कुछ नहीं होता, जब तक नीति में बदलाव न हो। प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर तंज कसा कि यह “पुरानी बोतल में नई शराब” जैसा है। इस कदम से भरोसा और भी कम हो गया। नतीजा यह हुआ कि भीड़ ने अब सीधे राष्ट्रपति मैक्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

सड़कों पर भड़का गुस्सा

नए प्रधानमंत्री का एलान होते ही पेरिस की सड़कों पर लोग फिर उतर आए। जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़ और नारेबाजी शुरू हो गई। कई इलाकों में दुकानों को बंद करना पड़ा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भी असर पड़ा और लोग घंटों तक परेशान रहे। नकाबपोश युवाओं ने बैरिकेडिंग तोड़ी और पुलिस पर पथराव किया। पूरे शहर में धुआं फैल गया और आम लोग घरों में दुबके रहे। जो आंदोलन सोशल मीडिया से शुरू हुआ था, अब वह सड़कों पर हिंसा का रूप ले चुका था।

पुलिस की कड़ी कार्रवाई

हालात को संभालने के लिए सरकार ने भारी संख्या में पुलिस उतारी। 80 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी सड़कों पर तैनात किए गए। बख्तरबंद गाड़ियां और दंगा नियंत्रण दस्ते सक्रिय कर दिए गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया। लेकिन गुस्साई भीड़ बार-बार नए समूह बनाकर सामने आती रही। सरकार ने माना कि यह आंदोलन उनकी सोच से कहीं बड़ा है। आंतरिक मंत्री ने पुलिस की तारीफ की, लेकिन स्वीकार किया कि हालात अब भी तनावपूर्ण हैं।

विपक्ष ने तेज किया हमला

इस मौके का फायदा विपक्ष ने भी उठाया। उन्होंने राष्ट्रपति मैक्रों पर सीधा हमला बोला और कहा कि देश को नए चुनावों की जरूरत है। विपक्षी नेताओं ने कहा कि मैक्रों की नीतियां सिर्फ अमीरों को बचाती हैं। जनता ने भी यही नारे लगाना शुरू कर दिए। अब यह आंदोलन सिर्फ बजट का विरोध नहीं बल्कि पूरी सरकार के खिलाफ बगावत बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इसे बड़े संकट की तरह दिखाना शुरू कर दिया है। कई जानकारों ने कहा कि मैक्रों की साख अब खतरे में पड़ गई है।

संकट के मोड़ पर फ्रांस

यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि फ्रांस अब एक बड़े राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। जनता का कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं बल्कि सम्मान और इंसाफ की है। अगर सरकार ने अब भी संवाद शुरू नहीं किया तो हालात और बिगड़ सकते हैं। पेरिस की जलती सड़कों की तस्वीरें दुनिया भर में फैल रही हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या लोकतंत्र में जनता की आवाज सुनी जा रही है या नहीं। अब देखना है कि फ्रांस सरकार जनता के गुस्से को कैसे शांत करती है।

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10 September 2025, 04:55 PM IST

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