फ्रांस या ब्रिटेन... कौन बनेगा यूरोप का असली परमाणु रक्षक?

यूरोप में सुरक्षा को लेकर बड़ा बदलाव हो सकता है. ट्रम्प के यूक्रेन से समर्थन वापस लेने के बाद यूरोपीय देश अब अपनी रक्षा प्रणालियों को मजबूत करने की सोच रहे हैं. फ्रांस राष्ट्रपति मैक्रों की अगुवाई में अपने परमाणु शस्त्रागार को बढ़ाने पर विचार कर रहा है, जबकि ब्रिटेन का परमाणु हथियार अमेरिकी तकनीकी सहायता पर निर्भर है. क्या यूरोप को अब अपनी सुरक्षा के लिए फ्रांस पर निर्भर रहना चाहिए? जानिए पूरी कहानी में!

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Edited By: Aprajita

Europe True Nuclear Defender: हाल ही में यूरोप में सुरक्षा को लेकर एक नई चर्चा शुरू हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा यूक्रेन से समर्थन वापस लेने के फैसले के बाद, यूरोपीय देशों ने अपनी रक्षा नीतियों पर पुनः विचार करना शुरू कर दिया है. इससे एक सवाल उठ रहा है – क्या यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए ब्रिटेन और अमेरिका पर निर्भर रहने की बजाय, खुद अपनी परमाणु शक्ति बढ़ानी चाहिए? इस दिशा में प्रमुख कदम फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बढ़ाया है, जिन्होंने यूरोपीय देशों के साथ फ्रांस की परमाणु रक्षा रणनीति पर चर्चा शुरू की है.

ब्रिटेन और फ्रांस: यूरोप के परमाणु शस्त्रागार के दिग्गज

यूरोप में दो प्रमुख परमाणु शक्तियाँ हैं – फ्रांस और ब्रिटेन. दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन उनकी रक्षा नीतियाँ अलग-अलग हैं. माना जाता है कि फ्रांस के पास लगभग 290 परमाणु हथियार हैं, जबकि ब्रिटेन के पास लगभग 225 हैं.

हालांकि, फ्रांस और ब्रिटेन की परमाणु नीतियाँ और तैनाती की रणनीतियाँ एक-दूसरे से भिन्न हैं. ब्रिटेन का परमाणु शस्त्रागार मुख्य रूप से अमेरिकी सहायता से विकसित हुआ है और वह अब भी अपनी तकनीकी सहायता के लिए अमेरिका पर निर्भर है. इसके विपरीत, फ्रांस का परमाणु शस्त्रागार पूरी तरह से स्वतंत्र है और फ्रांस अपनी परमाणु नीतियों को किसी बाहरी दबाव से मुक्त होकर नियंत्रित करता है. इसका मतलब यह है कि यदि कभी जरूरत पड़ी, तो फ्रांस स्वतंत्र रूप से अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने का निर्णय ले सकता है.

ब्रिटेन का परमाणु हथियार: क्या वह केवल दिखावा है?

ब्रिटेन के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या ये हथियार सचमुच सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन ने अपने परमाणु शस्त्रागार को अमेरिकी तकनीकी सहायता से विकसित किया है और यदि अमेरिका ने विरोध किया, तो ब्रिटेन के लिए अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है. इसका मतलब यह है कि ब्रिटेन के पास अपने परमाणु शस्त्रागार पर पूरी संप्रभुता नहीं है.

इसके अलावा, ब्रिटेन के परमाणु हथियार केवल समुद्र-आधारित पनडुब्बियों से लॉन्च किए जाते हैं. वहीं, फ्रांस के पास अधिक लचीले विकल्प हैं - वह पनडुब्बियों, लड़ाकू विमानों या बमवर्षकों से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है.

यूरोपीय परमाणु रक्षा रणनीति की दिशा में बदलाव

जर्मनी के भावी चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने हाल ही में सुझाव दिया कि जर्मनी को यूरोप में परमाणु सुरक्षा पर फ्रांस और ब्रिटेन के साथ बातचीत में शामिल होना चाहिए. उनका मानना है कि यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. इसके बजाय, फ्रांस और ब्रिटेन को यूरोपीय साझेदारों की रक्षा के लिए अपनी परमाणु शक्ति का विस्तार करना चाहिए.

यह चर्चा यूरोप की सुरक्षा और रक्षा नीतियों में एक नए मोड़ का संकेत देती है. क्या यूरोप का असली रक्षक अब ब्रिटेन नहीं, बल्कि फ्रांस बन सकता है? इस सवाल का उत्तर आने वाले समय में हो सकता है, लेकिन एक बात स्पष्ट है – यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा को लेकर अपनी स्वतंत्र नीति पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

फ्रांस बन सकता है यूरोप का असली रक्षक

इस समय यूरोपीय देशों को अपने रक्षा तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है, और यह तय करना होगा कि उनका परमाणु सुरक्षा का मुख्य स्तंभ कौन होगा. क्या फ्रांस अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार कर यूरोप का असली रक्षक बनेगा, या ब्रिटेन अपने अमेरिकी सहयोगियों के साथ मिलकर सुरक्षा प्रदान करता रहेगा? यह सवाल यूरोपीय देशों के लिए अहम साबित हो सकता है, और आने वाले दिनों में इसकी दिशा स्पष्ट हो सकती है.

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12 March 2025, 03:52 PM IST

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