दक्षिण अफ्रीका में जी‑20 ने परंपरा तोड़ी; ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब
दक्षिण अफ्रीका में जारी G20 शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने जलवायु परिवर्तन पर एक ऐतिहासिक संयुक्त घोषणा अपनाई. वहीं, अमेरिका ने इस बैठक का बहिष्कार किया.

दक्षिण अफ्रीका में जारी G20 शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने जलवायु परिवर्तन पर एक ऐतिहासिक संयुक्त घोषणा अपनाई है, जबकि अमेरिका ने इस बैठक का बहिष्कार किया. यह कदम खास इसलिए है क्योंकि अमेरिका की अनुपस्थिति में दुनिया के अन्य प्रमुख राष्ट्रों ने एकजुट होकर कार्रवाई की.
अमेरिका ने सम्मेलन को क्यों बोयकॉट किया?
अमेरिका ने सम्मेलन को इसलिए बोयकॉट किया क्योंकि उसे मेजबान दक्षिण अफ्रीका के साथ कूटनीतिक मतभेद थे. ट्रम्प प्रशासन ने वहां सरकार की नीतियों की आलोचना की थी. दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के अनुसार, अमेरिकी प्रतिनिधियों ने घोषणा की भाषा को लेकर आपत्ति जताई थी. लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि इस पर पुनः चर्चा नहीं की जाएगी और वह पहले से तय किए गए मसौदे को ही लागू करेंगे. सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में रामाफोसा ने यह भी कहा कि अभूतपूर्व सहमति के चलते यह घोषणा सबसे पहले स्वीकार की गई.
विन्सेंट मैग्वेन्या ने क्या कहा?
राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता विन्सेंट मैग्वेन्या ने बताया कि परंपरा के विपरीत इस बार घोषणा सबसे पहले पारित की गई. सामान्य रूप से G20 शिखर सम्मेलन का घोषणापत्र अंत में अपनाया जाता है, लेकिन इस बैठक में पहली मुद्दा के रूप में इसे सभी नेताओं द्वारा समर्थन मिला.
G20 प्रतिनिधियों ने बिना अमेरिकी भागीदारी के मसौदा तैयार किया था और उसमे जलवायु परिवर्तन शब्द शामिल किया गया था, जिसे अमेरिका काफी पहले ही स्वीकार्य नहीं मान रहा था. यह कदम इस बात का संकेत माना जा रहा है कि बाकी राष्ट्र मानव-जनित जलवायु संकट को लेकर मजबूत प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं, जबकि अमेरिका पिछले समय में इस मुद्दे पर संदेह व्यक्त करता रहा है.
यह विवाद और अमेरिका की बहिष्करण नीति दक्षिण अफ्रीका और वॉशिंगटन के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाती है. कई विश्लेषकों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन के बहिष्कार से G20 के अन्य सदस्य पारंपरिक रूप से विवादित मुद्दों पर खुलकर सहमत हो सके हैं.
दक्षिण अफ्रीका इस घोषणा को अपनी राजनयिक सफलता के रूप में देख रही है, खासकर क्योंकि यह महाद्वीप में आयोजित पहला G20 सम्मेलन है. बैठक में शामिल नेताओं ने यह भी जोर दिया कि इस घोषणा के माध्यम से विकासशील देशों की आवाज़ और उनकी जलवायु-रोधी चुनौतियों पर विशेष ध्यान दिया गया है.


