महंगे कॉल और ऑनलाइन पेमेंट ठप... सोशल मीडिया बैन से कैसे हिल गई नेपाल की अर्थव्यवस्था?
नेपाल में सोशल मीडिया बैन ने युवाओं के साथ-साथ प्रवासी परिवारों को भी गहरी चोट पहुंचाई, क्योंकि यह सस्ती बातचीत और रेमिटेंस ट्रांसफर का अहम जरिया था.

Nepal Protest: नेपाल में हाल ही में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जिस तरह का व्यापक विरोध देखने को मिला, उसने सरकार को भी हिला दिया. शुरुआत में इसे केवल युवाओं का गुस्सा समझा गया, लेकिन असल वजह कहीं गहरी है. नेपाल की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचा लंबे समय से प्रवास और रेमिटेंस (विदेश से आने वाला पैसा) पर टिका हुआ है और यही बैन सीधे इन दोनों जीवनरेखाओं पर चोट कर गया.
नेपाल में लाखों परिवार अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए विदेशों में काम करने वाले परिजनों पर निर्भर हैं. ऐसे में व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म केवल मनोरंजन या चैटिंग का जरिया नहीं, बल्कि सस्ती बातचीत और पैसों के सुरक्षित लेन-देन का सबसे अहम माध्यम हैं. इसलिए जब सरकार ने इन पर रोक लगाई, तो गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा.
सस्ती बातचीत का सहारा बना इंटरनेट
नेपाल टेलीकॉम के आंकड़ों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय कॉल बेहद महंगी हैं. भारत कॉल करने पर 4 से 12 नेपाली रुपये प्रति मिनट खर्च होते हैं. खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब और कतर के लिए यह खर्च 15 से 30 रुपये तक और अमेरिका-ब्रिटेन कॉल पर 1.75 से 35 रुपये प्रति मिनट तक पहुंच जाता है. इसके मुकाबले, व्हाट्सऐप या मैसेंजर पर कॉल करना लगभग मुफ्त है. यही वजह है कि जब इन प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगी, तो आम जनता को ये आर्थिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर बड़ा झटका लगा.
प्रवासी आबादी और रेमिटेंस का महत्व
नेपाल की 2021 की जनगणना बताती है कि देश की कुल आबादी का 7.5% हिस्सा प्रवासी है. 1981 में यह आंकड़ा 2.7% था, जो 2001 में 3.3% और अब लगातार बढ़ते-बढ़ते करीब दोगुना हो चुका है. भारत, खाड़ी देश, यूरोप और उत्तरी अमेरिका नेपाली प्रवासियों के सबसे बड़े ठिकाने हैं. वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2024 में नेपाल की जीडीपी का 33% से ज्यादा हिस्सा केवल रेमिटेंस से आया, जबकि साल 2000 में ये योगदान सिर्फ 2% था.
सोशल मीडिया से कटे तो टूटा रिश्ता
जनवरी 2024 तक नेपाल की कुल जनसंख्या का 48.1% हिस्सा सोशल मीडिया पर सक्रिय था. वहीं 18 साल से ऊपर की आबादी में यह आंकड़ा 73% तक पहुंचता है. इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में से 86% लोगों ने कम से कम एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिराटनगर के एक नागरिक ने बताया कि मेरे माता-पिता अभी भारत में हैं, जहां मेरी मां का इलाज चल रहा है. व्हाट्सऐप बैन मेरे लिए बड़ा झटका था. ये ही एकमात्र सस्ता तरीका था जिससे मैं उनसे रोज बात कर सकता था.
शिक्षा और प्रवास की तस्वीर
प्रवास केवल उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं तक सीमित नहीं है. 45% प्रवासी सेकेंडरी शिक्षा पूरी कर चुके हैं, 41.2% ने बेसिक शिक्षा हासिल की है, जबकि केवल 5.3% के पास बैचलर और 1.9% के पास मास्टर या उससे ऊपर की डिग्री है. इससे साफ है कि सामाजिक-आर्थिक वर्ग का हर तबका प्रवास से जुड़ा है और उनकी आय पर हजारों परिवार निर्भर हैं. ऐसे में संचार का सस्ता और सहज साधन छीन लेना आम जनता को सीधे प्रभावित करता है.


