यूक्रेन से युद्ध के बीच रूस में हथियार चलाना सीख रहे मासून नौनिहाल, मानवाधिकार संगठनों ने जताई चिंता
रूस में छोटे बच्चों को ग्रीष्मकालीन सैन्य शिविरों में हथगोले फेंकने और युद्ध प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ‘युनार्मिया’ जैसे संगठन देशभक्ति बढ़ाने के नाम पर बच्चों को सैन्य गतिविधियों से जोड़ रहे हैं, जिस पर मनोवैज्ञानिक और मानवाधिकार संस्थाएं चिंता जता रही हैं.

Russia News: रूस में बच्चों को सैन्य संस्कृति से जोड़ने की एक व्यापक मुहिम चल रही है, जिसका हिस्सा हैं ग्रीष्मकालीन शिविर जहां उन्हें सेना जैसी गतिविधियों में प्रशिक्षित किया जा रहा है. हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसमें आठ साल के बच्चों ने एक ग्रीष्मकालीन सैन्य शिविर में हथगोले फेंकने की ट्रेनिंग ली. यह कार्यक्रम रूस की बढ़ती सैन्य सोच और युवा पीढ़ी को युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार करने की सरकारी रणनीति का उदाहरण है.
हमने हथगोले फेंके
इन बच्चों ने स्वयं बताया कि वे कैसे नकली हथगोले फेंकना सीख रहे हैं, फौजी कपड़े पहनते हैं और बंदूकें चलाने जैसी गतिविधियों में भाग लेते हैं. एक बच्चे ने गर्व से कहा कि हमने हथगोले फेंके, दुश्मन पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की. ये सभी गतिविधियां बच्चों में एक सैन्य भावना को पैदा करने के उद्देश्य से संचालित की जा रही हैं.
देशभक्ति अभियान
रूस की सरकार वर्षों से देशभक्ति को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों का समर्थन करती आ रही है. ‘युनार्मिया’ नामक युवा सेना संगठन स्कूलों और शिविरों में बच्चों को अनुशासन, युद्ध कौशल और सैन्य गौरव का पाठ पढ़ाता है. इसमें सैकड़ों हजारों रूसी किशोर और बच्चे शामिल हो चुके हैं.
युद्ध और भविष्य की सोच
यूक्रेन युद्ध के बाद, इन कार्यक्रमों की तीव्रता और गहराई और अधिक बढ़ गई है. बच्चों को यह बताया जा रहा है कि मातृभूमि की रक्षा करना सबसे बड़ा कर्तव्य है, और इसके लिए वे अभी से तैयार हो जाएं. कई स्कूलों में एनसीसी की तर्ज़ पर बंदूक चलाने की क्लासेस शुरू कर दी गई हैं, और ग्रीष्मकालीन शिविरों में युद्ध-पूर्वाभ्यास अब सामान्य बात हो गई है.
मनोवैज्ञानिकों की चिंता
हालांकि इस प्रकार की सैन्य शिक्षा पर मनोवैज्ञानिकों और बाल संरक्षण संगठनों ने चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि कम उम्र में बच्चों को युद्ध और हिंसा से जोड़ना उनके मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है. बच्चों में आक्रोश, भय, या अति-राष्ट्रवाद की भावना समय से पहले पैदा हो सकती है, जो सामाजिक संतुलन के लिए घातक हो सकती है.
कई मानवाधिकार ग्रुप ने उठाया मुद्दा
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस प्रकार के प्रशिक्षण पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कई मानवाधिकार समूहों ने इसे बाल अधिकारों का उल्लंघन बताया है. यूनिसेफ जैसे संगठनों ने सुझाव दिया है कि शिक्षा और खेल के माध्यम से बच्चों को विकसित किया जाना चाहिए, न कि हथियारों और युद्ध कौशल के जरिए.


