पाकिस्तान में कई धार्मिक ग्रुप्स ने मिलकर बनाया 'अहल-ए-सुन्नाह पाकिस्तान', शहबाज शरीफ की उड़ी नींद
पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) समेत धार्मिक समूहों का नया गठजोड़ अहल-ए-सुन्नाह पाकिस्तान बन गया है. टीएलपी की मांगें और विरोध प्रदर्शन सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए खतरा हैं. इमरान खान का समर्थन और पंजाब में धारा 144 लागू होने के बीच देश में आंतरिक तनाव और उग्र घटनाओं की संभावना बढ़ गई है.

Pakistan political crisis: आने वाले समय में पाकिस्तान की राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियां और गंभीर होने की संभावना है. तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) समेत कई धार्मिक समूहों ने मिलकर अहल-ए-सुन्नाह पाकिस्तान नामक नया गठजोड़ बनाया है. यह गठबंधन पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों में और उथल-पुथल ला सकता है.
उग्र संगठन और उनकी मांगें
इस नए गठबंधन में शामिल संगठन काफी उग्र हैं. मुरीदके नरसंहार के बाद टीएलपी ने अपनी विरोध भावना तेज़ कर दी है. उन्होंने सरकार से कई मांगें रखी हैं और अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं तो गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है. मुरीदके में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों ने टीएलपी के कुछ कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा था, जिससे संगठन और इसके समर्थक काफी संवेदनशील हो गए हैं.
टीएलपी की प्रमुख मांग
इस गठबंधन की प्रमुख मांग है कि टीएलपी के सभी गिरफ्तार सदस्यों को रिहा किया जाए. पाकिस्तान पहले ही कई मोर्चों पर संघर्ष में उलझा है. अफगानिस्तान के साथ इसके संबंध तनावपूर्ण हैं और दोनों देशों के बीच किसी भी समय बड़ा युद्ध भड़क सकता है.
आंतरिक समस्याओं का सामना
पाकिस्तान कई आंतरिक चुनौतियों का भी सामना कर रहा है. आर्थिक मंदी और बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं. आतंकवादियों और उग्रवादी संगठनों को पालने के आरोप भी पाकिस्तान पर लगे हैं. भारतीय खुफिया एजेंसियां लगातार पाकिस्तान पर निगरानी बनाए हुए हैं.
सुरक्षा प्रतिष्ठान पर खतरा
अधिकारियों का कहना है कि टीएलपी नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. इस गठबंधन को कई राजनीतिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है. साथ ही देश के विभिन्न धार्मिक नेताओं का समर्थन इसे और भी प्रभावशाली बनाता है.
सत्ता प्रतिष्ठान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान की सत्ता प्रणाली इस गठबंधन को हल्के में नहीं ले रही है. हाल के सप्ताहों में टीएलपी के लिए समर्थन तेजी से बढ़ा है. 22 अक्टूबर को होने वाली बैठक के बाद पूरे देश में धरना-प्रदर्शनों में हजारों लोग शामिल होने की संभावना है. पंजाब समेत कई प्रांतों में रैलियों की योजना बनाई गई है.
इमरान खान का समर्थन
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सदस्यों को टीएलपी का समर्थन करने और प्रदर्शनों में शामिल होने का निर्देश दिया है. सभी की निगाहें इस्लामाबाद और तालिबान के बीच शांति वार्ता पर टिकी हैं. विश्लेषकों के अनुसार, तालिबान के साथ स्थिति नाजुक है और आंतरिक मोर्चे पर पाकिस्तान को और संघर्ष करना पड़ सकता है.
बीएलए और अन्य तनावपूर्ण क्षेत्र
पाकिस्तान को बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी (बीएलए) से भी कड़ी चुनौती मिल रही है. इसके अलावा, गुलाम कश्मीर में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. टीएलपी की सक्रियता के बाद पंजाब सरकार ने धारा 144 लागू कर दी है. सभी प्रकार के जुलूस, रैलियों और समारोहों पर रोक लगाई गई है. सुरक्षा के कड़े इंतजामों के बावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विरोध प्रदर्शन काफी हिंसक हो सकता है.


