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टीएलपी की हिंसा से जकड़ा पाकिस्तान, किले में तब्दील हुआ इस्लामाबाद

पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के हिंसक प्रदर्शनों से लाहौर और इस्लामाबाद में तनाव फैला है, जिसमें कई मौतें और घायल हुए हैं. आरोप है कि पाकिस्तानी सेना इस कट्टरपंथी संगठन को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती रही है.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

पाकिस्तान के लाहौर और इस्लामाबाद में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के समर्थकों का उग्र आंदोलन जारी है. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों में अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 15 से अधिक लोग घायल हैं, जिनमें कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. दरअसल, बुधवार देर रात टीएलपी ने इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया, जिसके बाद हालात बिगड़ गए. शुक्रवार को लाहौर में हुए प्रदर्शनों ने माहौल और तनावपूर्ण कर दिया और इस्लामाबाद की ओर मार्च की घोषणा ने पूरे देश को हिला दिया.

सेना का पिट्ठू माने जाने वाला संगठन

इस्लामी कट्टरपंथी समूह टीएलपी को पाकिस्तानी सेना का नज़दीकी सहयोगी कहा जाता है. आरोप है कि पाक आर्मी इस संगठन का इस्तेमाल राजनीतिक दबाव बनाने और सरकारों को अस्थिर करने के लिए करती रही है. मौजूदा हालात यही दिखाते हैं कि इस्लामाबाद की सड़कों पर कंटेनर लगा कर रास्ते बंद किए गए हैं और इंटरनेट सेवाएं ठप करनी पड़ी हैं.

2015 में हुई थी शुरुआत

टीएलपी की स्थापना 2015 में बरेलवी विचारधारा के मौलाना खादिम हुसैन रिजवी ने की थी. 2017 में इस्लामाबाद की 21 दिन की घेराबंदी के बाद यह संगठन सुर्खियों में आया. 2020 में फ्रांस में पैगंबर के कथित कार्टूनों के खिलाफ अभियान चलाकर इसने पाकिस्तान में फ्रांसीसी राजदूत को निष्कासित करने की मांग की थी. इस दौरान टीएलपी की आक्रामक छवि और स्पष्ट हो गई.

प्रतिबंध और वापसी

अप्रैल 2021 में पाकिस्तान सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया और मौजूदा प्रमुख साद रिजवी को जेल में डाल दिया. साद, संस्थापक खादिम रिजवी के बेटे हैं. हालांकि कुछ महीनों बाद ही बैन हटा लिया गया, जिसे पाक सेना की भूमिका से जोड़ा गया.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के आरोप

लंदन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के कार्यकर्ता आरिफ आजाकिया के अनुसार, टीएलपी को लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की तरह ही सेना ने राजनीतिक हेरफेर के लिए खड़ा किया. उनका कहना है कि सेना ऐसे समूहों को कभी सक्रिय और कभी निष्क्रिय कर अपने हित साधती है.

2017 का विवाद और सेना की भूमिका

अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 के प्रदर्शन सेना की मध्यस्थता से खत्म हुए. बाद में सामने आए एक वीडियो में एक सैन्य अधिकारी टीएलपी समर्थकों को पैसे देते दिखाई दिए. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी राजनीति में आईएसआई की भूमिका पर सवाल उठाए थे.

सरकारों को गिराने का औज़ार

रिपोर्टों का कहना है कि 2018 के चुनावों में टीएलपी को नवाज शरीफ की पार्टी को कमजोर करने और इमरान खान की पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए उतारा गया. खान जब सेना से टकराए तो टीएलपी दोबारा सक्रिय हुआ और विरोध प्रदर्शनों ने उनकी सरकार की जड़ें हिला दीं.

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11 October 2025, 06:23 PM IST

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