कौन है ओसामा बिन लादेन का खास दोस्त? जिसे ट्रंप ने जेल से किया रिहा, तालिबान के साथ हुआ समझौता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक फैसले की दुनिया भर में चर्चा हो रही है. उन्होंने अफगानिस्तान और तालिबान के बीच समझौते के तहत एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए ओसामा बिन लादेन के करीबी सहयोगी खान मोहम्मद को ग्वांतानामो बे जेल से रिहा कर दिया है.

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पदभार संभालते ही एक बड़ा और चौंकाने वाला कदम उठाया. ट्रंप ने आतंकवादी संगठन अल-कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन के करीबी सहयोगी खान मोहम्मद को ग्वांतानामो बे जेल से रिहा कर दिया है. यह कदम अमेरिका और अफगान तालिबान के बीच एक व्यापक वार्ता का हिस्सा था, जिसके बदले तालिबान ने दो अमेरिकी नागरिकों को अपनी जेल से रिहा किया है.
ट्रंप के इस फैसले ने दुनिया भर में चर्चा का माहौल पैदा कर दिया है. इस बीच अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह ट्रंप का ये कदम रणनीतिक है, या फिर यह भविष्य में और अधिक विवाद पैदा करेगा?
अमेरिकी नागरिकों के बदले आतंकी की रिहाई
अफगान तालिबान ने कई महीनों तक अमेरिका पर दबाव डाला कि वह तीन अमेरिकी नागरिकों के बदले अफगान और पाकिस्तानी आतंकवादियों को रिहा करे. तालिबान ने अमेरिका से मांग की थी कि वह खान मोहम्मद को ग्वांतानामो से रिहा करें, क्योंकि उसे ओसामा बिन लादेन का करीबी साथी माना जाता है. तालिबान का कहना था कि जब तक खान मोहम्मद की रिहाई नहीं होती, तब तक वह कोई भी अन्य कैदी नहीं छोड़ेगा. यह स्थिति अमेरिका के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई थी, और ट्रंप ने इसके लिए एक अप्रत्याशित कदम उठाया.
एक नई शुरुआत या विवाद का कारण?
ग्वांतानामो जेल से खान मोहम्मद की रिहाई की प्रक्रिया अमेरिकी सरकार और तालिबान के बीच विस्तृत वार्ता का परिणाम थी. खान मोहम्मद को 20 साल पहले नंगरहार प्रांत में गिरफ्तार किया गया था, और वह कैलिफोर्निया की जेल में सजा काट रहा था. हालांकि, ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के फैसले को पलटते हुए खान मोहम्मद को रिहा करने का निर्णय लिया. बाइडेन प्रशासन ने इस तरह के किसी भी समझौते को नकारा था, लेकिन ट्रंप के फैसले ने तालिबान को 2 अमेरिकी नागरिकों रयान कॉर्बेट और विलियम मैकेंटी के बदले स्वतंत्र कर दिया.
बाइडेन का विरोध और ट्रंप का समर्थन
जो बाइडेन प्रशासन ने कभी भी आतंकवादियों को रिहा करने का समर्थन नहीं किया था, लेकिन ट्रंप का मानना था कि अमेरिकी नागरिकों के बदले आतंकियों की रिहाई एक रणनीतिक कदम हो सकता है. ट्रंप का यह निर्णय उनकी सरकार की विदेश नीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है, जो अमेरिका के नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है. हालांकि, इस फैसले के बाद कुछ सवाल उठ रहे हैं कि क्या इससे अन्य देशों में अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा पर कोई असर पड़ेगा?
क्या भारत को मिलेगा फायदा?
अब इस सवाल पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि क्या भारत को इस स्थिति से कुछ फायदा हो सकता है. अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव के साथ, भारत को अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना पड़ सकता है. अगर तालिबान के साथ अमेरिका का समझौता और अधिक गहराता है, तो भारत को अपनी रक्षा और कूटनीतिक रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा.


