जिस आतंक को पालता रहा पाकिस्तान वही बना गले की हड्डी, टीटीपी ने सेना सरकार दोनों की नींद उड़ाई
तालिबान से जन्मा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अब खुद पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। हमलों, धमकियों और असफल नीतियों ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान कभी पाकिस्तान की रणनीतिक जरूरत समझा गया था। आज वही संगठन सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है। टीटीपी ने खुलेआम पाकिस्तानी सेना और पुलिस को निशाना बनाया है। चौकियां उड़ाई जा रही हैं। जवान मारे जा रहे हैं। सरकार बेबस दिख रही है। यह वही आग है जिसे कभी पड़ोसी देशों के लिए जलाया गया था। अब वही आग पाकिस्तान को जला रही है।
क्या अफगान नीति की कीमत चुका रहा है पाकिस्तान?
पाकिस्तान ने वर्षों तक अफगान तालिबान को समर्थन दिया। सोचा था कि इससे रणनीतिक गहराई मिलेगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद तालिबान ने टीटीपी पर लगाम नहीं लगाई। उल्टा टीटीपी को सुरक्षित ठिकाने मिले। अफगान सीमा से हमले तेज हुए। पाकिस्तान की शिकायतें बेअसर रहीं। यह नीति अब पूरी तरह उलटी पड़ चुकी है।
सेना की सख्ती क्यों बेअसर हो रही है?
पाकिस्तानी सेना ने कई सैन्य अभियान चलाए। बड़े दावे किए गए। लेकिन टीटीपी हर बार नए रूप में लौटा। स्थानीय समर्थन खत्म नहीं हुआ। कबायली इलाकों में भरोसा टूटा। सेना की मौजूदगी के बावजूद हमले जारी रहे। इससे साफ है कि समस्या सिर्फ बंदूक से नहीं सुलझ रही।
राजनीतिक अस्थिरता ने संकट कैसे बढ़ाया?
पाकिस्तान में सरकारें कमजोर हैं। फैसले टलते रहते हैं। संसद से ज्यादा ताकत बैरकों में है। ऐसे माहौल में आतंकवाद से लड़ाई बिखरी हुई है। कोई स्पष्ट नीति नहीं है। कभी बातचीत तो कभी ऑपरेशन। इस भ्रम ने टीटीपी को फायदा दिया। वह राज्य की कमजोरी समझ चुका है।
क्या टीटीपी अब समानांतर सत्ता बन रहा है?
खैबर पख्तूनख्वा और सीमावर्ती इलाकों में टीटीपी का डर साफ दिखता है। टैक्स वसूली। धमकी पत्र। स्थानीय अदालतें। यह सब समानांतर शासन के संकेत हैं। लोग डर से चुप हैं। प्रशासन कमजोर है। यही स्थिति किसी भी देश के लिए खतरनाक होती है। पाकिस्तान अब उसी मोड़ पर खड़ा है।
आम जनता क्यों बन रही सबसे बड़ी शिकार?
हमलों में मरने वाले ज्यादातर आम लोग हैं। स्कूल। बाजार। मस्जिदें। हर जगह डर है। विकास रुक गया है। निवेश नहीं आ रहा। बेरोजगारी बढ़ रही है। जनता पूछ रही है कि यह युद्ध आखिर कब खत्म होगा। लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है।
क्या पाकिस्तान के पास अब कोई रास्ता बचा है?
अगर नीति नहीं बदली गई तो संकट और गहराएगा। आतंक को रणनीति मानने की सोच छोड़नी होगी। अफगान तालिबान पर साफ दबाव बनाना होगा। लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना होगा। वरना टीटीपी सिर्फ गले की हड्डी नहीं रहेगा। वह पूरे सिस्टम को जाम कर देगा। यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी सच्चाई है।


