भारत-अमेरिका व्यापार डील में क्यों हो रही देरी? शेयर बाजार पर क्या पड़ेगा इसका असर?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर चल रही बातचीत अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. प्रमुख मुद्दों में अमेरिका की ओर से भारतीय कृषि बाजारों तक बेहतर पहुंच और आयात शुल्क में कमी की मांग शामिल है. इस देरी से भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ रही है.

India US trade agreement: हाल के महीनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर उम्मीदें तो बार-बार जताई गईं, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है. जबकि अमेरिका ने जापान, यूरोपीय संघ और चीन जैसे देशों के साथ अहम व्यापार समझौते कर लिए हैं, भारत के साथ समझौते की दिशा में कोई स्पष्ट सफलता नहीं मिली है. 1 अगस्त की तय समयसीमा नजदीक है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच कोई बड़ा समझौता इस तारीख से पहले होता नहीं दिख रहा है. 29 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया था कि भारत को 20-25 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है यदि 1 अगस्त तक कोई समझौता नहीं हुआ. वहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने 24 जुलाई को कहा था कि दोनों देश 'पारस्परिक रूप से लाभकारी बहु-क्षेत्रीय व्यापार समझौते" के पहले चरण को अंतिम रूप देने की दिशा में काम कर रहे हैं.
समझौते में देरी के मुख्य कारण
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी के पीछे कई अहम वजहें हैं. अमेरिका अपने कृषि, डेयरी और जीएम (आनुवंशिक रूप से संशोधित) उत्पादों को भारतीय बाजार में ज्यादा पहुंच दिलाना चाहता है. इस पर जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी.के. विजयकुमार ने कहा, 'अमेरिका भारत के कृषि बाजार, विशेष रूप से डेयरी उत्पादों तक अधिक पहुंच चाहता है. भारत इस पर बातचीत नहीं कर सकता और न ही करने को तैयार है. भारत में पशुपालन लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत है, न कि पश्चिमी देशों की तरह कोई बड़े पैमाने का उद्योग.' इसके अलावा, भारत कम टैरिफ दरों की मांग कर रहा है ताकि वह एशियाई प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत कर सके. वहीं, रूस से तेल आयात को लेकर अमेरिका का सख्त रुख भी समझौते की राह में बाधा बन सकता है. अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि राष्ट्रपति ट्रंप रूस से तेल आयात जारी रखने वाले देशों पर भारी शुल्क लगाने का इरादा रखते हैं.
क्या कोई समझौता अब भी संभव है?
विशेषज्ञों की मानें तो अभी भी एक बुनियादी व्यापार समझौते की संभावना बनी हुई है, जिसे आगे व्यापक समझौते का आधार बनाया जा सकता है. खबरों के अनुसार, अमेरिका का व्यापार प्रतिनिधिमंडल 25 अगस्त 2025 को भारत का दौरा करने वाला है ताकि वार्ता के अगले चरण को आगे बढ़ाया जा सके. इक्विनॉमिक्स रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक जी. चोकालिंगम ने कहा, 'हमारा मानना है कि भारत के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना अमेरिका के लिए भू-राजनीतिक बाध्यताओं के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इसलिए, हमें अब भी उम्मीद है कि भारत इस मोर्चे पर किसी भी बड़े जोखिम से बच जाएगा.'
बाजार पर क्या पड़ेगा असर?
व्यापार समझौते में देरी भारतीय शेयर बाजार पर दबाव बना सकती है, खासकर बढ़ते व्यापार घाटे और रुपये की अस्थिरता को लेकर निवेशकों की चिंता बढ़ सकती है. जी. चोकालिंगम ने कहा,'यदि भारत अमेरिका के साथ समझौता करता है और 26 प्रतिशत पारस्परिक शुल्क से बचता है, तो बाजार में उल्लेखनीय सुधार होने की संभावना है. यदि पारस्परिक शुल्क लगाया जाता है, तो अल्पावधि में बाजार कमजोर रहने की संभावना है.'
FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) का रुझान भी इस समझौते से प्रभावित हो सकता है. इनक्रेड एसेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर आदित्य सूद ने मिंट को बताया, 'मध्यम अवधि में, इससे विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में एफपीआई का प्रवाह बढ़ सकता है, खासकर अगर आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण और चल रही 'चीन+1' रणनीति से इसे समर्थन मिले. ऐसा सौदा दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और वैश्विक एकीकरण का भी संकेत देगा, जो दीर्घकालिक विदेशी निवेशकों के लिए प्रमुख कारक हैं.' हालांकि दीर्घकाल में बाजार को स्थिर बनाए रखने के लिए टिकाऊ आर्थिक विकास और आय में निरंतर सुधार जरूरी होगा.


