सावधान! प्लास्टिक की बोतलों का पानी पीने से हो सकता है खतरनाक, इन बीमारियों का हो सकते शिकार
मिट्टी और तांबे के बर्तनों से हमारे शरीर को अच्छी मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं। हालाँकि, आज के समय में प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है, जिससे शरीर को कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है। बोतलों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके साथ ही यह हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाता है।

हम अक्सर डॉक्टरों और सोशल मीडिया पर सुनते हैं कि प्लास्टिक की बोतलों या कंटेनरों में उपलब्ध पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन अब वैज्ञानिक शोध से इसकी पुष्टि हो गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार प्लास्टिक की बोतलों में भरे पानी में लाखों छोटे प्लास्टिक कण होते हैं। इससे मस्तिष्क, हृदय और गुर्दे सहित अन्य अंगों को भी खतरा हो सकता है। बातचीत के दौरान पोषण विशेषज्ञ डॉ. रश्मि श्रीवास्तव ने बताया कि प्राचीन समय में पीने का पानी तांबे के बर्तन में रखा जाता था। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में दादी-नानी इन बर्तनों का उपयोग करती हैं। हालाँकि, आधुनिक समय में लोग प्लास्टिक की बोतलों का सबसे अधिक उपयोग करते हैं। पानी भरने से लेकर उपभोग तक हर जगह प्लास्टिक का उपयोग देखा जाता है।
गर्भवती महिलाओं को अधिक खतरा
डॉ। रश्मि ने कहा कि हमें प्लास्टिक का उपयोग करने से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक खतरा हो सकता है, क्योंकि प्लास्टिक से उनके पाचन के साथ-साथ उनके गुर्दे और यकृत पर भी असर पड़ने की संभावना होती है। प्लास्टिक की बोतलों के स्थान पर मिट्टी या तांबे की बोतलों का उपयोग करना बेहतर होगा।
बोतलबंद पानी में लाखों छोटे प्लास्टिक कण
आपको बता दें कि हाल ही में अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि प्लास्टिक की बोतलों से मिलने वाले पानी में लाखों छोटे-छोटे प्लास्टिक कण मौजूद होते हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि शोध के दौरान एक लीटर बोतलबंद पानी में करीब 2.4 लाख कण पाए गए। उन्होंने कई कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे पानी का परीक्षण किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक कणों की संख्या पहले लगाए गए अनुमान से कहीं अधिक है।
विभिन्न रोगों का खतरा
5 मिलीमीटर से छोटे टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, जबकि 1 माइक्रोमीटर को नैनोप्लास्टिक कहा जाता है। नैनोप्लास्टिक इतने छोटे होते हैं कि उनके पाचन तंत्र और फेफड़ों तक पहुंचने की सबसे अधिक संभावना होती है। छोटे प्लास्टिक कण रक्त में मिलकर शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे और अन्य अंगों को खतरा पैदा हो सकता है। नैनोप्लास्टिक्स प्लेसेंटा को पार करके गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच सकता है।


