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Dussehra 2025: देशभर में रावण दहन की धूम, लेकिन इन जगहों पर नहीं मनाया जाता ये त्योहार

Dussehra 2025: भारत में जहां दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं कुछ गांव और समुदाय इसे नहीं मनाते. मंदसौर, बिसरख, अमरावती, बैजनाथ और काकिनाडा जैसे स्थानों पर रावण को विद्वान, शिवभक्त या पूर्वज मानकर उसकी पूजा और सम्मान किया जाता है.

Dussehra 2025: दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस दिन पूरे देश में रावण दहन किया जाता है और मेलों के आयोजन के साथ बुराई की हार का जश्न मनाया जाता है. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी इस उत्सव में शामिल होकर रावण के पुतले जलते हुए देखने पहुंचते हैं और मेले का आनंद लेते हैं.

हालांकि, हैरानी की बात यह है कि भारत में कुछ ऐसे भी गांव और समुदाय हैं जहां दशहरा नहीं मनाया जाता. इसका कारण सिर्फ परंपरा ही नहीं, बल्कि गहरी सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं. कहीं लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं, तो कहीं उसे विद्वान और शिवभक्त के रूप में पूजा जाता है. आइए जानते हैं उन खास जगहों के बारे में जहां दशहरे पर रावण दहन नहीं होता.

मंदसौर (मध्य प्रदेश): 

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के कुछ गांवों में दशहरा ना मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है. यहां के लोग मानते हैं कि ये स्थान रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है. इसलिए वे रावण को अपना दामाद मानते हैं और उसका पुतला जलाना अपमानजनक समझते हैं. इन गांवों में दशहरे पर रावण की शिवभक्ति को सम्मान दिया जाता है और लोग इस दिन शोक मनाते हैं.

बिसरख (उत्तर प्रदेश): 

गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित बिसरख गांव के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं. लोक मान्यता के अनुसार ये गांव रावण का जन्मस्थान है. इसी कारण दशहरे के दिन यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता. इसके विपरीत, ग्रामीण उसकी पूजा करते हैं और उसे एक विद्वान व शिवभक्त के रूप में याद करते हैं.

अमरावती (महाराष्ट्र): 

महाराष्ट्र के अमरावती जिले के गढ़चौरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय दशहरा नहीं मनाते. उनकी मान्यता है कि रावण उनके पूर्वज और एक महान विद्वान थे. इस कारण वे इस दिन रावण दहन नहीं करते बल्कि उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

बैजनाथ (हिमाचल प्रदेश): 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का बैजनाथ क्षेत्र भी उन जगहों में शामिल है जहां दशहरे पर रावण दहन नहीं किया जाता. स्थानीय मान्यता है कि यहीं रावण ने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. इसलिए, यहां के लोग दशहरे के दिन रावण दहन को अशुभ मानते हैं और उसकी शिवभक्ति के लिए श्रद्धा व्यक्त करते हैं.

काकिनाडा (आंध्र प्रदेश): 

आंध्र प्रदेश के काकिनाडा शहर के कुछ हिस्सों में भी दशहरा नहीं मनाया जाता. यहां के समुदाय रावण को एक महान पंडित और योगी के रूप में याद करते हैं. इसलिए वे रावण दहन में हिस्सा नहीं लेते और इस दिन शांतिपूर्वक उसका सम्मान करते हैं.

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02 October 2025, 02:17 PM IST

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