केरल में शिक्षिका के ऑडियो संदेश से विवाद, ओणम उत्सव पर उठी 'शिर्क' की बहस
केरल में एक खबर ने सोशल मीडिया और धार्मिक हलकों में हलचल मचा दी है. यहां एक मुस्लिम महिला शिक्षिका ने अपने छात्रों को ओणम समारोह से दूर रहने की सलाह दी थी. इस बयान के बाद शिक्षिका पर एफआईआर दर्ज की गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया है.

केरल के त्रिशूर ज़िले से आई एक खबर ने सोशल मीडिया और धार्मिक हलकों में हलचल मचा दी है. यहां एक मुस्लिम महिला शिक्षिका ने अपने छात्रों को ओणम समारोह से दूर रहने की सलाह दी थी. व्हाट्सऐप पर भेजे गए एक ऑडियो संदेश में उन्होंने कहा कि मुस्लिम बच्चों को ऐसे पर्वों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह इस्लाम की नजर में "शिर्क" है. इस बयान के बाद शिक्षिका पर एफआईआर दर्ज की गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि अब तक धार्मिक उलेमा और मौलाना अक्सर गैर-मुस्लिम त्योहारों से दूरी बनाए रखने की नसीहत देते आए हैं, लेकिन किसी शिक्षिका द्वारा इस तरह का आह्वान पहली बार सुर्खियों में आया है.
क्या है शिर्क?
शिर्क अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ होता है किसी को साझेदार बनाना. इस्लाम का मूल सिद्धांत एकेश्वरवाद है. अल्लाह को अकेला, सर्वशक्तिमान और अजर-अमर मानना. कुरआन और हदीस में साफ कहा गया है कि अल्लाह के साथ किसी और को पूजनीय मानना सबसे बड़ा पाप है. इस्लामी मान्यता के अनुसार, आख़िरत में अल्लाह अधिकांश गुनाहों को माफ कर सकता है, लेकिन शिर्क और नाहक खून खराबे को कभी क्षमा नहीं करता.
गैर-मुस्लिम त्योहार और शिर्क की बहस
यह सवाल लंबे समय से उठता रहा है कि क्या मुसलमानों द्वारा अन्य धर्मों के त्योहारों में शामिल होना शिर्क माना जाएगा. इस पर उलेमा एकमत नहीं हैं. कुछ विद्वान इसे सीधा-सीधा इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ मानते हैं, जबकि कई इसे महज सामाजिक आचार-व्यवहार का हिस्सा बताते हैं.
मुफ़्ती शमशुद्दीन नदवी ने क्या कहा?
मुफ़्ती शमशुद्दीन नदवी का कहना है कि इस्लाम में सब कुछ नीयत पर आधारित है. अगर कोई मुसलमान किसी मित्र या सहकर्मी के साथ ओणम, दिवाली या होली जैसे त्योहार में शामिल होता है, लेकिन मन से किसी देवी-देवता को पूज्य नहीं मानता, तो इसे शिर्क नहीं कहा जा सकता. उन्होंने सवाल उठाया कि जैसे कोई हिंदू ईद की दावत में शामिल होकर मुसलमान नहीं बन जाता, वैसे ही एक मुस्लिम सिर्फ सामाजिक शिष्टाचार निभाने से अपने धर्म से दूर नहीं होता.
मुफ़्ती अब्दुर्रहीम कासमी ने क्या कहा?
मुफ़्ती अब्दुर्रहीम कासमी का मत है कि बाहरी तौर-तरीके किसी की आस्था को नहीं बदलते. टोपी पहनने या तिलक लगाने भर से धर्मांतरण नहीं हो जाता. उनका कहना है कि यदि कोई मुसलमान दिवाली मनाते समय यह विश्वास कर ले कि धन-समृद्धि का स्रोत अल्लाह नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी हैं, तो यह शिर्क होगा. लेकिन यदि वह केवल सामाजिक रिश्तों को निभाने के लिए शामिल होता है, तो इसमें गुनाह नहीं है.


