नमाज पढ़ते हुए भूकंप आ जाए तो बीच में नमाज छोड़ सकते हैं? जानिए क्या कहता है इस्लाम..
दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में सोमवार सुबह 5 बजकर 36 मिनट पर तेज़ भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया. दिल्ली में सोमवार सुबह भूकंप के समय मुसलमानों के लिए फजर की अजान का समय था. अगर भूकंप कुछ देर बाद आता, तो मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ रहे होते. इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि अगर भूकंप नमाज के दौरान आ जाए तो क्या नमाज को बीच में छोड़ देना चाहिए?

दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में सोमवार सुबह 5 बजकर 36 मिनट पर तेज़ भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया. धरती हिली और बिल्डिंग्स झूलने लगीं, जिससे लोग अपने घरों से बाहर निकल आए. भूकंप की तीव्रता 4.0 रिक्टर स्केल मापी गई और इसका केंद्र दिल्ली के आसपास था. हालांकि, राहत की बात यह रही कि इस भूकंप में कोई जान-माल का नुकसान नहीं हुआ. लेकिन इस घटना ने एक महत्वपूर्ण सवाल को फिर से उठाया, नमाज पढ़ते हुए भूकंप आने पर क्या करना चाहिए?
भूकंप के दौरान नमाज का मुद्दा
दिल्ली में सोमवार सुबह भूकंप के समय मुसलमानों के लिए फजर की अजान का समय था. अगर भूकंप कुछ देर बाद आता, तो मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ रहे होते. इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि अगर भूकंप नमाज के दौरान आ जाए तो क्या नमाज को बीच में छोड़ देना चाहिए? यह सवाल पहले भी कई इस्लामी देशों में भूकंप के दौरान नमाज पढ़ते हुए लोगों के वीडियो सामने आने के बाद चर्चा में था। इंडोनेशिया, तुर्की और सीरिया जैसे देशों में भूकंप के दौरान मस्जिदों में लोग नमाज पढ़ते हुए दिखाई दिए थे, जिसे सोशल मीडिया पर काफी शेयर किया गया.
इस्लाम क्या कहता है?
मुफ्ती ओसामा नदवी के अनुसार, इस्लामी शरियत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति नमाज पढ़ रहा हो और भूकंप या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा का खतरा हो, तो उस स्थिति में नमाज बीच में छोड़ने की इजाजत है. शरियत के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति जान के खतरे में है और यदि वह नमाज छोड़कर बच सकता है, तो उसके लिए नमाज तोड़कर अपनी जान की सुरक्षा करना जरूरी है.
जान की सुरक्षा की अहमियत
इस्लाम में जान की सुरक्षा को सर्वोपरि माना गया है. इस्लाम में यह माना जाता है कि अपनी जान की हिफाजत करना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. भूकंप, आग, बाढ़ या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में अगर किसी को अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा है, तो नमाज को बीच में ही रोककर उसे अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति अपनी जान की सुरक्षा के लिए नमाज छोड़ता है, तो उसे गुनाह नहीं माना जाएगा.
अगर जान का खतरा हो तो नमाज छोड़ दें
इसके अलावा, इस्लाम में यह भी कहा गया है कि यदि नमाज पढ़ते समय कोई अन्य संकट आ जाए, जैसे कोई जहरीला जानवर सामने आ जाए, तो नमाज को छोड़ देना चाहिए. इस प्रकार की स्थितियों में अपनी जान की रक्षा को प्राथमिकता दी जाती है और नमाज को बीच में रोकने की इजाजत दी जाती है.
नमाज का महत्व और स्थिति का आकलन
हालांकि, अगर कोई खतरा नहीं है, तो नमाज को जारी रखना चाहिए, क्योंकि यह अल्लाह के साथ संबंध बनाने का महत्वपूर्ण साधन है. लेकिन जब खतरा हो, तो व्यक्ति को अपनी जान की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए. नमाज पढ़ना हर मुसलमान पर फर्ज है, लेकिन किसी भी स्थिति में अपनी जान को जोखिम में डालना उचित नहीं है.
भूकंप के दौरान अल्लाह से दुआ करें
भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मुसलमानों को अल्लाह से दुआ करनी चाहिए. भूकंप के समय या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अल्लाह से क्षमा, रहम और उसकी मदद की प्रार्थना करना चाहिए. जैसा कि पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी भूकंप के समय दुआ की थी.
इस्लाम में यह भी कहा गया है कि अगर भूकंप या अन्य प्राकृतिक घटनाएं लंबे समय तक जारी रहें, तो नमाज पढ़ना वाजिब नहीं है और इस पर कजा करना भी आवश्यक नहीं है. इस समय में, अल्लाह से दुआ करना अधिक महत्वपूर्ण है.
नमाज और दुआ के बीच संतुलन
कुल मिलाकर, अगर भूकंप जैसे संकट के दौरान व्यक्ति नमाज पढ़ रहा है और उसे जान का खतरा महसूस होता है, तो नमाज को बीच में छोड़कर अपनी जान की सुरक्षा करना सही होगा. बाद में, वह नमाज की कजा अदा कर सकता है. इस्लाम में आत्महत्या या खुद को मुसीबत में डालने को हराम माना गया है, इसलिए किसी भी संकट में अपनी जान की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है.