Sharad Purnima 2025: कब है शरद पूर्णिमा? जानिए तिथि, पूजा विधि और महत्व
Sharad Purnima 2025: इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी. यह दिन चंद्रमा की पूर्ण कलाओं से युक्त होता है और मां लक्ष्मी की आराधना के लिए विशेष माना जाता है. इस रात की चांदनी को अमृतमय बताया गया है, जो भक्तों को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती है.

Sharad Purnima 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरण पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है. शरद पूर्णिमा को अश्विन पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है, जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ आकाश में प्रकट होता है. इस दिन माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है, और भक्तगण व्रत रखते हुए धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं.
भारत के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश में यह पर्व बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में इसे कोजागिरी पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है. इस अवसर पर भक्तजन चंद्रमा के दर्शन करते हैं, व्रत रखते हैं और रातभर भक्ति में लीन रहते हैं. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा 2025 की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में विस्तार से.
शरद पूर्णिमा की तिथि और समय
शरद पूर्णिमा को नवन्ना पूर्णिमा और कौमुदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष यह पर्व सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. द्रिक पंचांग के अनुसार-
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पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे
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पूर्णिमा तिथि समाप्त: 7 अक्टूबर सुबह 09:16 बजे
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चंद्रोदय का समय: शाम 05:27 बजे
इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और रात में चांद की रोशनी में पूजन करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस रात्रि में चंद्रमा अपनी सबसे उज्ज्वल अवस्था में होता है, और उसकी किरणों से अमृत बरसता है.
पूजा विधि और व्रत का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात को विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि यह रात चंद्रमा की पूर्ण कलाओं से भरी होती है. भक्त इस दिन स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं और मां लक्ष्मी तथा चंद्रदेव की आराधना करते हैं.
भक्तगण इस दिन गंगा जल से खीर (कद्दू भात) बनाते हैं और उसे खुले आकाश के नीचे चांदनी में पूरी रात रखते हैं. ऐसा कहा जाता है कि चांदनी में रखी गई खीर अमृत के समान हो जाती है, जिसे अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से युक्त होती हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं.
इसके अतिरिक्त भक्त पंचामृत भी तैयार करते हैं जिसमें दूध, दही, तुलसी और शक्कर मिलाकर देवी को अर्पित किया जाता है.
शरद पूर्णिमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
शरद पूर्णिमा का पर्व वर्ष की सबसे शुभ पूर्णिमाओं में से एक माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे समीप होता है और उसकी किरणों में अमृत तत्व का वास होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महाराास किया था, जो भक्ति और प्रेम का सर्वोच्च प्रतीक माना जाता है.
चंद्रमा के सोलह कलाओं से पूर्ण होने का यह दिन मानव जीवन के सोलह गुणों जैसे करुणा, प्रेम, शांति, आनंद और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. साथ ही यह पर्व ग्रीष्म ऋतु के अंत और शरद ऋतु की शुरुआत का भी प्रतीक है.
शरद पूर्णिमा की परंपराएं
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इस रात को घरों की छतों या आंगनों में दूध-खीर रखी जाती है.
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कई स्थानों पर जागरण और कीर्तन का आयोजन होता है.
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माना जाता है कि जो व्यक्ति इस रात जागकर ‘को जागर्ति?’ अर्थात “कौन जाग रहा है?” का उत्तर देते हुए मां लक्ष्मी की आराधना करता है, उसे अपार धन-समृद्धि प्राप्त होती है.
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महिलाएं व्रत रखकर परिवार की खुशहाली और सौभाग्य की कामना करती हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषय गणनाओं पर आधारित है. JBT यहां दी गई जानकारी की किसी भी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है.


