19 दिसंबर को मनाई जाएगी साल की आखिरी अमावस्या, जानें पूजा और तर्पण का तरीका
पौष अमावस्या, पितृ तर्पण और पूजा के लिए प्रसिद्ध है. यह अमावस्या पौष महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आती है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान और तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है.

हिंदू धर्म में साल भर में 12 अमावसियों का विशेष महत्व है और उनमें से पौष अमावस्या खास तौर पर पितृ तर्पण और पूजा के लिए प्रसिद्ध है. यह अमावस्या पौष महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आती है और पितरों की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है.
मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान और तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है. साथ ही, पितृ दोष और अन्य नकारात्मक प्रभाव भी शांत होते हैं.
पौष अमावस्या 2025 की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल की पौष अमावस्या 19 दिसंबर, शुक्रवार को सुबह 4 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 20 दिसंबर, सुबह 7 बजकर 12 मिनट तक रहेगी. इसे देखते हुए इस वर्ष की आखिरी अमावस्या 19 दिसंबर को मनाई जाएगी.
पौष अमावस्या की पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है. यदि नदी में स्नान संभव न हो, तो घर पर गंगाजल या स्वच्छ जल का प्रयोग कर स्नान किया जा सकता है. स्नान के बाद साफ और नए वस्त्र पहनने चाहिए. इसके बाद तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल पुष्प डालकर सूर्य देव को जल अर्पित करें.
पितरों का तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें और जल में तिल डालकर उनका सम्मान करें. साथ ही पीपल के पेड़ में जल चढ़ाना और शाम को उस पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाना भी शुभ माना जाता है. इस दिन ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, काले तिल या कंबल का दान करना चाहिए. व्रत रखकर भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करना भी लाभकारी होता है.
पौष अमावस्या का महत्व
पौष अमावस्या को भगवान सूर्य और पितरों के लिए समर्पित माना जाता है. इस दिन तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. इसके अलावा, जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष है, वे यदि इस दिन विधि पूर्वक पूजा और तर्पण करते हैं, तो इसका नकारात्मक प्रभाव कम होता है.
साल की आखिरी अमावस्या होने के कारण पौष अमावस्या पितृ सेवा, धार्मिक अनुष्ठान और व्रत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसलिए इस दिन की तैयारी और पूजा विधि का सही पालन करना शुभ परिणामों के लिए आवश्यक है.


