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पिंडदान क्यों है जरूरी? प्रेमानंद जी महाराज ने बताया इसका महत्व और कर्तव्य

श्राद्ध और पिंडदान पितरों के कल्याण और मुक्ति के लिए किए जाते हैं, जो संतान की भावनात्मक श्रद्धा और कर्तव्य का प्रतीक हैं. ये कर्मकांड न केवल माता-पिता बल्कि पूर्वजों की पीढ़ियों तक के मंगल और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं.

Premanand Ji Maharaj: श्राद्ध में अपने पितरों के कल्याण और मुक्ति के लिए विशेष पूजा-पाठ और पिंडदान किया जाता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि वास्तव में श्राद्ध करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? संत प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर गहराई से प्रकाश डालते हुए बताया कि श्राद्ध और पिंडदान केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि हमारी भावना की शुद्धि और पितरों के मंगल का साधन है.

महाराज जी का मानना है कि हमारे माता-पिता ने जीवनभर हमारा पालन-पोषण किया. जब वे इस संसार में नहीं रहते, तब भी हमारा उनसे संबंध खत्म नहीं होता. यही कारण है कि उनका कल्याण करना हमारा कर्तव्य बन जाता है.

श्राद्ध और पिंडदान का असली उद्देश्य

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, पिंडदान और श्राद्ध हमारी भावना की शुद्धि के लिए होता है. अगर माता-पिता अब जीवित नहीं हैं, तो भी उनका हमसे संबंध बना रहता है. भजन, दान, पुण्य और पिंडदान से उनके जहां भी होने पर उन्नति होती है. महाराज जी ने स्पष्ट किया कि अगर पितृ किसी कर्म के दंड विभाग में भी हों, तो संतान द्वारा किए गए भजन-कीर्तन, दान और तीर्थयात्रा उनके मंगल और उत्थान का मार्ग प्रशस्त करते हैं.

पुत्र का कर्तव्य क्यों है श्राद्ध करना?

महाराज जी के अनुसार, श्राद्ध केवल पिता या माता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पितामह और पूर्वजों की पीढ़ियों तक का कल्याण करता है. उन्होंने कहा कि पुत्र अपने पिता से पहले पितामह की पीढ़ियों को भी स्वर्ग प्रदान कर सकता है. श्राद्ध करना कर्तव्य का निर्वाह है. अगर संतान ये नहीं करती तो ये कर्तव्यहीनता मानी जाती है. गया जैसे तीर्थों पर पिंडदान करने से पितरों को गति मिलती है और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है.

21 पीढ़ियों तक होता है असर

प्रेमानंद जी महाराज ने ये भी बताया कि श्राद्ध और पिंडदान केवल तत्काल संबंधियों तक ही सीमित नहीं रहते. जब कोई संकल्प लेता है, तो उसका प्रभाव 21 पीढ़ियों तक जाता है और इससे पितरों को परम पद प्राप्त होता है. महाराज जी ने स्वप्न का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे हम स्वप्न देखते समय अपने जाग्रत जीवन को भूल जाते हैं, वैसे ही पितृ जिस लोक में भी जाते हैं, वहां की स्थिति के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं. लेकिन संतान द्वारा किया गया पुण्यकर्म उनका मार्ग अवश्य प्रशस्त करता है.

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02 September 2025, 02:40 PM IST

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