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नाम में गलती के कारण नहीं मिली नौकरी, अब 20 साल बाद हाईकोर्ट में नियुक्ति को दी गई चुनौती

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय को नियुक्ति से संबंधित सभी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया. गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाले याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह नियुक्ति तत्कालीन रजिस्ट्रार, डीन (विज्ञान), विभागाध्यक्ष (भौतिकी) और विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से की गई थी. 

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुमाऊं यूनिवर्सिटी से दो दशक पहले की गई एक नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज रिकॉर्ड में पेश करने को कहा है. एक जनहित याचिका में दावा किया गया था कि सही उम्मीदवार के बजाय गलत व्यक्ति का चयन किया गया था. पवन कुमार मिश्रा ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि 2005 में विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग में प्रोफेसर के पद पर उनके चयन के बावजूद उनकी जगह पर प्रमोद कुमार मिश्रा नामक व्यक्ति को नौकरी दी गई, क्योंकि उनका नाम भी उनसे मिलता-जुलता था. दोनों ने अपने नाम के आगे संक्षिप्त नाम पीके मिश्रा लिखा.

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय को नियुक्ति से संबंधित सभी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया. गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाले याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह नियुक्ति तत्कालीन रजिस्ट्रार, डीन (विज्ञान), विभागाध्यक्ष (भौतिकी) और विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से की गई थी. 

याचिका में कहा गया कि चयनित उम्मीदवार के स्थान पर नियुक्त व्यक्ति अभी भी विश्वविद्यालय में फिजिक्स पढ़ा रहा है. याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें कथित धोखाधड़ी के बारे में लगभग 20 साल बाद नवंबर 2024 में पता चला और हालांकि उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति और मुख्यमंत्री को "न्याय की मांग करते हुए" पत्र लिखा, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

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17 April 2025, 07:52 PM IST

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