पहले ना, फिर हां, नीतीश के टोपी के पीछे क्या है सियासी दांव?
नीतीश कुमार ने न सिर्फ टोपी पहनकर सबको चौंकाया बल्कि एक दरगाह पर जाकर चादर भी चढ़ाई, जो मुस्लिम समुदाय में गहरी आस्था का प्रतीक है. इस घटना ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है और राजनीतिक विश्लेषक इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं.

Bihar Assembly Election 2025: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों एक बार फिर अपने राजनीतिक कदमों को लेकर चर्चा में हैं. हाल ही में सामने आए उनके दो वीडियो ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में बहस छेड़ दी है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या नीतीश कुमार आगामी चुनावों को देखते हुए मुस्लिम वोटबैंक को फिर से अपने पक्ष में लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं?
पहले वीडियो में नीतीश कुमार अपने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान के साथ नजर आते हैं. जहां जमा खान उन्हें एक जालीदार टोपी पहनाने की कोशिश करते हैं लेकिन नीतीश टोपी पहनने से इनकार कर देते हैं. वहीं कुछ ही दिनों बाद दूसरा तस्वीर सामने आता है जिसमें मुख्यमंत्री बिहार शरीफ स्थित दरगाह में टोपी पहनकर चादर चढ़ाते दिखाई देते हैं. इन दोनों विरोधाभासी घटनाओं ने सियासी विश्लेषकों को अलग-अलग अर्थ निकालने पर मजबूर कर दिया है.
आज खानकाह मुजीबिया, फुलवारीशरीफ में उर्स के मुबारक मौके पर हजरत मखदूम सैयद शाह पीर मुहम्मद मुजीबुल्लाह कादरी रहमतुल्लाह अलैह की मजार पर चादरपोशी की तथा राज्य में अमन, चैन और तरक्की की दुआ मांगी। pic.twitter.com/cqIfedoceM
— Nitish Kumar (@NitishKumar) September 5, 2025
विरोधाभासी तस्वीरें और सियासी संदेश
पहले वीडियो में टोपी पहनने से इनकार और फिर दरगाह में टोपी पहनने के बाद चादर चढ़ाने की घटना को लेकर माना जा रहा है कि नीतीश कुमार एक संतुलित रणनीति के तहत न दिखावे, न दूरी का संदेश देना चाहते हैं. यानी वे पब्लिक मंच पर धार्मिक प्रतीकों के प्रदर्शन से बचते हैं लेकिन समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हैं.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ये घटनाएं केवल धार्मिक प्रतीकों तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह एक सोची-समझी राजनीतिक योजना का हिस्सा हैं जिससे नीतीश कुमार अपने पुराने मुस्लिम समर्थक आधार को फिर से मजबूत करना चाहते हैं.
मुस्लिम बोट का समीकरण
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87 सीटों पर 20% से अधिक मुस्लिम आबादी
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47 सीटों पर मुस्लिम वोटर 15-20% के बीच
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2015 में जदयू के सात मुस्लिम उम्मीदवारों में से पांच ने शानदार जीत हासिल की.
2020 में मुस्लिम वोटरों का झुकाव राजद (RJD) की ओर रहा, जिससे जदयू को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. इसी के बाद जमा खान को बसपा से लाकर अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया, जो नीतीश की मुस्लिमों को साधने की कोशिशों का एक अहम हिस्सा था.
नीतीश के पक्ष में क्या कहती है JDU?
जदयू के विधान पार्षद खालिद अनवर ने नीतीश कुमार का समर्थन करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने मनेर शरीफ और फुलवारी शरीफ की खानकाहों के विकास के लिए करोड़ों रुपये दिए हैं. वे हमेशा से मुस्लिम समुदाय के लिए काम करते रहे हैं. जो लोग आज उन पर आरोप लगा रहे हैं वे सिर्फ भ्रम फैला रहे हैं.
विपक्ष का हमला
राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जब नीतीश कुमार टोपी नहीं पहनते तब भी आलोचना होती है. और जब पहनते हैं तो इसे सियासी फायदा बताया जाता है. ये सरकार जाने वाली है इसलिए अब छवि सुधारने की कोशिश हो रही है. अब कितना अल्पसंख्यक भाइयों को टोपी पहनाएंगे? विपक्ष का यह भी आरोप है कि नीतीश कुमार की राजनीति अवसरवादी होती जा रही है और वे धार्मिक प्रतीकों का उपयोग केवल चुनावी फायदे के लिए करते हैं.
वक्फ बिल से उपजा असंतोष और सेक्युलर छवि की चुनौती
हाल ही में वक्फ संशोधन विधेयक पर पार्टी के रुख से मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग नीतीश कुमार से नाराज हुआ था. यह नाराजगी अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. यही वजह है कि नीतीश को अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बचाने के साथ-साथ नाराज मुस्लिम मतदाताओं को भी मनाना पड़ रहा है.
नीतीश कुमार की मुस्लिमों के बीच पकड़ कभी मजबूत हुआ करती थी लेकिन 2020 के चुनावों में यह समीकरण कमजोर पड़ गया. अब बदलते सियासी माहौल में वे फिर से साम्प्रदायिक सद्भाव और अल्पसंख्यकों के हितैषी नेता की छवि के सहारे पुरानी जमीन वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि राजनीतिक विरोधियों के तीखे हमले और समुदाय के भीतर की नाराजगी उनके लिए इस राह को आसान नहीं बनाएंगे. आने वाले चुनाव में यह साफ हो जाएगा कि नीतीश की यह रणनीति कारगर रही या नहीं.


