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बिहार में बंपर वोटिंग, नतीजों पर क्या असर देखने को मिलेगा

पहले और दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत अबतक के सभी चुनावों से अधिक रहा है. 6 नवंबर को पहले चरण में 121 सीटों पर 64.66%  वोटिंग हुई, जबकि 11 नवंबर को दूसरे चरण में 122 सीटों पर शाम 6 बजे तक 68.52 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है.

Anuj Kumar
Edited By: Anuj Kumar

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार मतदाताओं ने जोश और उत्साह के नए रिकॉर्ड कायम किए हैं. पहले और दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत अबतक के सभी चुनावों से अधिक रहा है. 6 नवंबर को पहले चरण में 121 सीटों पर 64.66%  वोटिंग हुई, जबकि 11 नवंबर को दूसरे चरण में 122 सीटों पर शाम 6 बजे तक 68.52 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार बंपर वोटिंग के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि बिहार के लोग इतनी बड़ी संख्या में मतदान करने निकले?

पहले चुनाव में हुई 35 फीसदी वोटिंग 

अगर बिहार के चुनावी इतिहास को देखें तो 1952 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था. इस चुनाव में केवल 35 फीसदी वोटिंग हुई थी, जबकि 1960 के दशक तक यह आंकड़ा 40–45% के बीच रहा. 1990 के दशक में अपराध और जातीय हिंसा के दौर में यह आंकड़ा घट गया, लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के साथ इसमें सुधार दिखा. 2010 में 57%, 2015 में 56.77% और 2020 में 57.29% मतदान हुआ, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए है. इसके पीछे कई अहम कारण माने जा रहे हैं.

1. छठ पर्व का प्रभाव

छठ पूजा के तुरंत बाद चुनाव की तारीखें पड़ने से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांवों में मौजूद थे. दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों से लौटे लाखों लोगों ने न सिर्फ पूजा में भाग लिया बल्कि मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. विशेषज्ञों का कहना है कि यह छठ-चुनाव समीकरण का असर है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसे परिवर्तन की लहर बताया है.

2. मुस्लिम मतदाताओं की सक्रियता

राज्य की 17% मुस्लिम आबादी ने इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई है. कहा जा रहा है कि इस समुदाय ने एनडीए को सत्ता से बाहर करने के लिए एकजुट होकर वोट डाला. सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों और वक्फ कानून में बदलाव की आशंकाओं ने उनमें असुरक्षा की भावना पैदा की. इस कारण अधिकांश मुस्लिम मतदाता महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के पक्ष में जुट गए.

3. मतदाता सूची की सफाई (SIR)

चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) मुहिम ने भी बड़ा फर्क डाला. आयोग ने मृत, डुप्लीकेट और प्रवासी नाम हटाकर मतदाता सूची को सटीक बनाया. इससे वोटिंग प्रतिशत स्वाभाविक रूप से बढ़ गया. करीब 65 लाख पुराने नाम हटाए गए और 21 लाख नए मतदाता जोड़े गए.

4. चुनाव आयोग के सुधार

इस बार आयोग ने मतदान प्रक्रिया को और आसान बनाया. वेबकास्टिंग, वोटर हेल्पलाइन ऐप, मोबाइल वोटिंग यूनिट जैसी तकनीक से पारदर्शिता बढ़ी. बूथ स्तर पर चेहरा पहचान तकनीक और QR स्लिप्स ने फर्जी मतदान रोका. साथ ही पुलिस की सख्ती और शांतिपूर्ण माहौल ने लोगों में भरोसा जगाया.

5. महिलाओं की बढ़ी भागीदारी

पहले चरण में महिलाओं की वोटिंग दर पुरुषों से 5-7% अधिक रही है. यह सिर्फ योजनाओं का नतीजा नहीं, बल्कि शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान के प्रति बढ़ती जागरूकता का प्रतीक है. नीतीश कुमार की महिला सशक्तिकरण नीतियों ने इसमें अहम भूमिका निभाई. कुल मिलाकर, 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी, सांस्कृतिक जुड़ाव और सामाजिक जागरूकता का उत्सव बन गया है.
 

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11 November 2025, 08:28 PM IST

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