राज ठाकरे की रैली में छूट गई एक बात, अब सोशल मीडिया पर तोड़ी चुप्पी
महाराष्ट्र में हिंदी थोपने के विरोध में राज ठाकरे के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलन के दबाव के चलते सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले को वापस ले लिया. इस सफलता के उपलक्ष्य में मुंबई में एक भव्य रैली का आयोजन किया गया. इस रैली में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर साथ नजर आए, जिसने दोनों नेताओं के बीच बढ़ती राजनीतिक समझ और संभावित एकजुटता का संकेत दिया.

महाराष्ट्र में हाल ही में हिंदी भाषा थोपे जाने के विरोध को लेकर बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला है. त्रिभाषी फॉर्मूले को लेकर उठे विवाद ने मराठी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान को केंद्र में ला दिया, जिससे कई दल और संगठनों ने एकजुट होकर विरोध दर्ज कराया. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए. इसके दबाव में सरकार ने त्रिभाषी फार्मूले को रद्द कर दिया. इस फैसले के बाद मुंबई में एक भव्य "मराठी विजय रैली" का आयोजन हुआ.
राज ठाकरे ने पोस्ट कर साझा की बात
इस रैली के बाद राज ठाकरे ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक भावुक पोस्ट करते हुए अपनी बात साझा की. उन्होंने कहा कि हिंदी अनिवार्यता के विरोध में मराठी जनता की जीत के बाद यह सभा मराठी गौरव का प्रतीक है. उन्होंने माफी मांगते हुए कहा कि मंच से कुछ लोगों का नाम न ले पाने का उन्हें खेद है. राज ने मराठी मीडिया, सामाजिक संगठनों, कलाकारों और अन्य मराठी समर्थकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह एकता भविष्य में भी बनी रहनी चाहिए.
इस रैली की सबसे खास बात यह रही कि करीब 20 साल बाद ठाकरे बंधु राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक ही मंच पर साथ नजर आए. पहले दोनों के बीच राजनीतिक मतभेद काफी गहरे रहे हैं, लेकिन अब मराठी हितों के लिए एक साथ खड़े होते दिखाई दिए. मंच पर दो कुर्सियों पर राज और उद्धव के साथ-साथ उनके पुत्रों की भी मुलाकात ने एक नई राजनीतिक दिशा की ओर संकेत दिया.
संजय राउत की प्रतिक्रिया
इस मिलन पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने इसे "त्योहार जैसा दिन" बताया और कहा कि हर मराठी घर में यह खुशी का मौका है. राउत ने कहा कि मराठी अस्मिता के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण है और सभी को एकजुट होकर विरोधियों को सबक सिखाना चाहिए.
संजय राउत ने आगे बताया कि राज ठाकरे और उनके बीच लगातार संवाद होता रहा है और इस मेल-जोल की नींव उसी बातचीत में थी. उन्होंने राजनीति में संवाद और सहयोग को जरूरी बताया, भले ही मतभेद हों. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह संवाद भविष्य में भी जारी रहना चाहिए, ताकि मराठी हितों की रक्षा एकजुट होकर की जा सके.