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Wednesday, 03 August 2022
ॐलोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग 2
Tuesday, 02 August 2022
ॐलोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग-1
Sunday, 31 July 2022
ॐलोक आश्रम: स्थितप्रज्ञ की क्या भाषा होती है?
हमारी अन्तर्रात्मा अनंत आनंद से युक्त है वो ईश्वर का अंश है वो ईश्वर ही है इसलिए ईश्वर को सच्चिदानंद कहा गया है। ईश्वर सत भी है ईश्वर चित भी है ईश्वर परम आनंद स्वरूप है। हम जब खो जाएं कोई भी विचार ही हमारे दिमाग में न रहे तो हम उसी अवस्था के नजदीक पहुंच जाते हैं और हमें बड़ा आनंद सा होता है।
Saturday, 30 July 2022
ॐलोक आश्रम: स्थितप्रज्ञ की क्या भाषा होती है?
जब हम योग के रास्ते पर चलते हैं जब हम ध्यान के रास्ते पर चलते हैं तो हमारी सुषुप्त मानसिक शक्तियां जागृत हो जाती हैं। उन सुषुष्त मानसिक शक्तियों के जागृत होने का परिणाम ये होता है कि हमारे अंदर कोई अद्भुत शक्तियां जागृत हो जाती हैं।
Friday, 29 July 2022
ॐलोक आश्रम: भारत का समाज कैसा था?
आज हम जिस संसार में रह रहे हैं हम मानते हैं कि हमारा समाज, हमारा संसार सबसे विकसित समाज है। मानव सभ्यता के इस युग में हम अपने आपको सबसे विकसित मानते हैं। चाहे हमारा क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम हो, चाहे हमारी सिविल सोसायटी हो चाहे हमारा स्टेट हो, चाहे हमारे ह्यूमन राइट्स हों, चाहे हमारे एनीमल राइट्स हों।
Tuesday, 26 July 2022
ॐलोक आश्रम: आसन और प्राणायाम क्या हैं? (भाग 2)
प्राणायाम के कई प्रकार हैं। सारे प्राणायाम के बारे में महर्षि पतंजलि कहते हैं कि प्राणायाम पूरक, कुंभक और रेचक तीन भागों में बंटा हुआ है। पूरक जब हम हवा को भरते हैं, कुंभक जब हम हवा को रोकते हैं और रेचक जब हम हवा को छोड़ते हैं या निकालते हैं। जो हमारे अंदर विषय होते हैं, बहुत सारे विचार होते हैं जो हमारे अंदर भर जाते हैं। उनको सांस के साथ बाहर निकालना।
Sunday, 24 July 2022
ॐलोक आश्रम: भगवदगीता में योग किसे कहा गया है?
भगवान श्रीकृष्ण योग किसे कहते हैं, भगवदगीता में योग किसे कहा गया है। योग के बारे में श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि सिद्धि और असिद्धि में जो समत्व है वही योग है। पहले हमने योग को समझा है महर्षि पतंजलि के अनुसार कि जो हमारी आत्मा में मल जमा है और जब वो मल आसन, प्राणायाम विधियों के द्वारा या भगवत कृपा से निष्कासित हो जाता है
Wednesday, 20 July 2022
ॐलोक आश्रम: जीने का आधार क्या होना चाहिए?
हम इस योग्य बनें कि हम कर्म कर सकें। पूजा हमारे अंदर ही परिवर्तन करती है। पूजा का उद्देश्य ईश्वर को खुश करना नहीं है, पूजा का उद्देश्य है अपने अंदर की शक्तियों को जागृत करना। हमारे अंदर एक तरफ प्रेम भी हो तो क्रोध भी है, कहीं ईष्या द्वेष भी तो कहीं परोपकार भी है। इंसान के अंदर परस्पर विरोधी गुण हैं जो एक ही व्यक्ति के अंदर मौजूद हैं।