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Saturday, 20 August 2022
ॐलोक आश्रम: कर्म कैसे करना चाहिए है? भाग-1
Friday, 19 August 2022
ॐलोक आश्रम: धर्म और अधर्म में क्या अंतर है? भाग-3
Thursday, 18 August 2022
ॐलोक आश्रम: धर्म और अधर्म में क्या अंतर है? भाग-2
जो अधर्म है उसको खर-पतवार की तरह उसे नष्ट कर देना चाहिए तभी धर्म बढ़ सकता है। अगर आप धर्म और अधर्म दोनों को खुला छोड़ दोगे, आप अगर भेड़ और भेड़िए दोनों को खुला छोड़ दोगे तो भेड़िए ही भेड़िए बचेंगे समाज से भेड़ें खत्म हो जाएंगे। अगर एक व्यक्ति हाथ में तलवार लिए घूम रहा है उसको आप कुछ नहीं कहोगे तो निश्चित रूप से समाज के 90 प्रतिशत लोग घरों में दुबककर बैठ जाएंगे।
Wednesday, 17 August 2022
ॐलोक आश्रम: धर्म और अधर्म में क्या अंतर है? भाग-1
सबसे पहले पूरे देश को पूरे समाज को धर्म और अधर्म में अंतर समझना होगा। धर्म की जो परिभाषा हमारे शास्त्रों में दी गई है। धर्म वह है जो सत्य पर आधारित हो, जो इन्द्रियों के नियंत्रण पर आधारित हो, जो धैर्य पर आधारित हो, जो दूसरों के क्षमा करने पर आधारित हो। इन गुणों पर जो आधारित हो वही धर्म है। बहुत सारे और गुण
Tuesday, 16 August 2022
ॐलोक आश्रम: किस तरह से व्यक्ति प्रकृति के नियमों से बंधा है?
भगवदगीता के तीसरे अध्याय में जब भगवान कृष्ण अर्जुन को यह बतला रहे हैं कि दो पहलू हैं एक तो व्यक्ति यह सोचता है कि मैं कोई काम ही न करूं। दूसरा व्यक्ति सोचता है कि मैं सारे संसार को छोड़कर जंगल में जाऊं और तपस्या करूं भगवान की और भगवान को पा लूं। ये दोनों ही रास्ते सिद्धि देने वाले नहीं हैं क्योंकि जो व्यक्ति कर्मों को छोड़कर भागता है वो भाग नहीं पाता। भगवान बता रहे हैं कि व्यक्ति किस तरह से प्रकृति के नियमों से बंधा हुआ है। किस तरह व्यक्ति जब भागने का प्रयास करता है तो किस तरह से प्रकृति के नियम उसे जकड़ लेते हैं और वह किस तरह से मिथ्याचारी बन जाता है।
Saturday, 13 August 2022
ॐलोक आश्रम: जितेन्द्रिय क्या फिर कामनाओं से घिर सकता है?
ध्यान का महत्व हम सबको पता है, हम सारे कोशिश भी करते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान लग जाता है और कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान नहीं लगता। कई लोग ऐसे हैं जिनका ध्यान लगता है और कभी कभी उनको ऐसा लगता है कि ब्रह्म साक्षात्कार हो गया।
Friday, 12 August 2022
ॐलोक आश्रम: हमें शांति कैसे मिले?
आजकल का जीवन बहुत तेज हो गया है, भाग-दौड़ वाला हो गया है, क्षण-क्षण बहुत सारे परिवर्तन हैं। सफलता की प्राप्ति के लिए बहुत सारा परिश्रम करना है। जीवन में जल्दी आगे बढ़ने की इच्छा है। सोशल मीडिया आ गया है उसने परिवर्तन को और तेजी से बढ़ा दिया है। हमारे जीवन से शांति कहीं गायब हो गई है।
Thursday, 11 August 2022
ॐलोक आश्रम: मन पर नियंत्रण कैसे हो? भाग-2
भगवान कृष्ण कहते हैं कि आप वो काम करो जिसमें आपका मन लगता है। जब भी आप अपने कर्तव्य को चुनो अपने कर्म को चुनो। आप छात्र हो आप पढ़ना चाहते हो तो आप छात्र तभी बनो, आप पढ़ाई तभी करो जब आपको पढ़ने में मन लगता हो पढ़ाई अच्छी लगती हो। आप खिलाड़ी तब बनो जब आपको खेलने में मन लगता हो।
Tuesday, 09 August 2022
ॐलोक आश्रम: व्यक्ति के विचार तय करते हैं, वह कैसा बनेगा?
इस दुनिया में व्यक्ति कैसा बनेगा, यह व्यक्ति के विचार तय करते हैं। परिवार किस प्रकार बनेगा यह परिवार के व्यक्तियों के विचार तय करते हैं। समाज किस प्रकार से बनेगा यह सभी व्यक्तियों और व्यक्तियों के परिवारों के विचार तय करते हैं।
Monday, 08 August 2022
ॐलोक आश्रम: हम असफल क्यों होते हैं? भाग-2
हम सबकुछ अपनी प्रतिष्ठा के लिए करने लगते हैं, हम सबकुछ पैसे के लिए करने लगते हैं हम किसी को खुश करने के लिए किसी को दुखी करने के लिए अपने काम को करने लगते हैं। हम मोह से व्याकुल होकर काम करने लगते हैं तो उसके बाद हमें जो परिणाम मिलते हैं वो परिणाम इतने भारी होते हैं कि हम उनका वजन नहीं उठा पाते उसी तरह जिस तरह वो बेचारा शिष्य उस माणिक्य का वजन नहीं उठा पा रहा था। उसी तरह ये भारी हो जाते हैं क्योंकि हमें चिंता रहती है कि कहीं ये छिन न जाए।
Friday, 05 August 2022
ॐलोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग-4
हमने विकास को गलत ढंग से परिभाषित कर लिया है। हमने आर्थिक प्रगति को विकास कह दिया। इस बात को हमारे ऋषियों ने बहुत पहले देख लिया था कि केवल आर्थिक प्रगति या वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी प्रगति ही विकास नहीं है। मानवीय मूल्यों का बना रहना विकास का सबसे बड़ा लक्षण है। इसलिए सर्वोत्तम युग सतयुग माना गया।
Thursday, 04 August 2022
ॐलोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग-3
भगवान कृष्ण कहते हैं कि सभी धर्मों का सभी कर्तव्यों का सभी चीजों का परित्याग करके मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सारे पापों से सारे दुखों से मुक्त कर दूंगा। कोई शोक मत करो कोई चिंता मत करो। आप प्रभु के राह पर चल दिए अपने समस्त कर्मों को आपने प्रभु पर न्यौछावर कर दिया, आप निमित्त मात्र बनकर जीते रहे आप प्रभु की मस्ती में जीते रहे तो उस मस्ती की खुमारी ऐसी है कि उसके बाहर न तो कोई शोक है न तो कोई चिंता है न तो कोई दुख है, आत्महत्या तो बहुत दूर की बात है। सुख के अलावा आपके पास कुछ होगा ही नहीं।