ॐलोक आश्रम: मन पर नियंत्रण कैसे हो? भाग-1

हम सभी जानते हैं कि सफलता के लिए हमें कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता होती है और हममें से बहुत सारे लोग कठिन परिश्रम करना भी चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते। एक बच्चा चाहता है कि वो पढ़े लेकिन प

Janbhawana Times
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हम सभी जानते हैं कि सफलता के लिए हमें कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता होती है और हममें से बहुत सारे लोग कठिन परिश्रम करना भी चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते। एक बच्चा चाहता है कि वो पढ़े लेकिन पढ़ने में उसका मन नहीं लगता उसे वीडियोगेम खेलने में बड़ा मजा आता है वो बार-बार वीडियोगेम खेलने लगता है वो मोबाइल चलाने लगता है। मन अपने नियंत्रण में नहीं होता है आनंददायक कुछ और होता है और आपको सफलता कहीं और मिलनी होती है। बच्चे को मजा खेलने में आता है सफलता पढ़ने में मिलनी होती है। जिस बच्चे को खेलने का करियर बनाना है उसका खेल के अलावा बाकी दूसरी जगह मन लग जाता है। मन को किस तरह से कंट्रोल में किया जाए, मन को किस तरह से वश में किया जाए कि कम कार्यों को करें और सफल हों। भगवान कृष्ण गीता में ये बतलाते हैं कि किस तरह से जीवन में हम अपने मन को वश में करें और किस तरह जीवन में हम आगे बढ़ें और आगे बढ़ने के सोपान हमें मिलते जाएं। जो लोग इस तरह के होते हैं कि जो उनके मन में आता है जो उनको अच्छा लगता है वही करते हैं ऐसे लोगों की इन्द्रियां उस तरह की होती हैं जैसे कोई एक नाव जा रही हो और वायु का एक तेज झोंका आता है और उस नाव को समुद्र में डुबो देता है। 

इसी तरह जो व्यक्ति इन्द्रियों के वशीभूत होते हैं सुखों के पीछे भागते हैं जिसमें मजा आता है वही काम करते हैं ऐसे लोगों की जिंदगी की नाव, सफलता की नाव डूब जाया करती है। आपका कर्तव्य है पढ़ाई करना और आप वीडियोगेम खेलने लगे आपको मजा आने लगा तो मान कर चलिए कि आपके जीवन की सफलता की नाव अब डूबने वाली है। आपको खिलाड़ी बनना है फुटबॉल का और आप दोस्तों के साथ इधर-उधर घूमने लगे, आप नशा करने लगे आप हीरो बनने लगे तो समझ लो कि आपकी नाव डूबने वाली है। आप अपनी इन्द्रियों के अधीन हुए तो आपकी नाव डूबने वाली है तो अपने आप को इन्द्रियों के अधीन होने से कैसे बचा जाए। वही भगवान कृष्ण बता रहे हैं। एक बार अरस्तू से किसी ने पूछा कि आप परफेक्ट लाइफ किसको कहेंगे। एक तरफ तो लोग चाहते हैं कि वो ज्यादा से ज्यादा सुखों को उपभोग करें दूसरी तरफ शास्त्र कहते हैं कि आप सारी इच्छाओं का परित्याग कर दो, भगवान का भजन करो तो पूर्ण जीवन किसे कहा जाए। परफेक्ट लाइफ किसे माना जाए और इंसान को किस तरह का जीवन व्यतीत करना चाहिए। किस तरह की जिंदगी उसे जीनी चाहिए। 

अरस्तू ने कहा कि इन्द्रियों का उपभोग हमेशा बुद्धि के नियंत्रण में होना चाहिए। इन्द्रियां बुद्धि के नियंत्रण में रहें और व्यक्ति जीवन जीए और इस तरह का जीवन सर्वोत्तम जीवन माना जाएगा। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जीवन उस तरह का हो या व्यक्ति को अगर मन को नियंत्रण में रखना है तो एक कछुए की तरह आपको काम करना पड़ेगा। जो कछुआ होता है जैसे ही उसे बाहर खतरा लगता है तुरंत वो अपने सारे अंगों को अंदर समेट लेता है इसी तरह आपको लग रहा है कि आपका मन भटक रहा है आपकी सफलता की नाव पलटने वाली है आप तुरंत अपने मन को सचेत करिए इन्द्रियों को अंदर समेट लीजिए। इसको भगवान कृष्ण संयम कहते हैं और वो कहते हैं कि जिसने प्रयत्नपूर्वक इन्द्रियों को हर जगह से हटा लिया है। आपने जो कर्म किया है जो आपने कर्तव्य चुना हुआ है जो आपने पढ़ाई करनी चुनी है उसमें आपको मजा आना चाहिए, आपके अगर क्रिकेट चुना है तो उसमें आपको मजा आना चाहिए, आपने फुटबॉल चुना है उसमें आपको मजा आना चाहिए। 

जो काम आप कर रहे हैं जिसे आपने अपना कर्तव्य चुना है जिसे आपने अपना धर्म चुना है उसमें आपको मजा आना चाहिए। ये काम आपको चुनने से पहले करना है। जब भी आप निर्धारित करो कि मुझे जीवन में ये करना है तो वो करने में आपको मजा आए। आपको आनंद आए तभी आप उसमें आगे बढ़ो। भगवान कृष्ण कहते हैं जिस तरह से कछुआ जब उसपर कोई विपत्ति आती है तो वो अपने सारे अंगों को अपने अंदर कर लेता है और वो सुरक्षित हो जाता है। उसी तरह से हमें चाहिए कि अगर हमें लगे कि हमारी नाव पलटने वाली है हमारा मन नहीं लग रहा है तो हमें अपने मन को समेट लेना चाहिए। अंदर कर लेना चाहिए। भगवान कृष्ण इसको संयम कहते हैं। अगर हमने अपनी इन्द्रियों को बाहर की विषयों से अंदर खींच लिया और इन्द्रियां अपनी इन्द्रियों का ही काम कर रही हैं, मन उससे जुड़ नहीं रहा है। अगर हमारा मन इन्द्रियों के साथ जुड़ा नहीं है तो हमारी इन्द्रियां निष्फल हो जाती हैं। कोई काम नहीं कर पाती हैं।

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10 August 2022, 04:20 PM IST

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