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भारत का एक ऐसा अनोखा गांव, जहां लोग नहीं पहनते जूते-चप्पल, क्या है इसके पीछे की वजह?

भारत के एक छोटे से गांव में जूते-चप्पल पहनने की परंपरा नहीं है, जहां के लोग अपनी धार्मिक आस्था और सम्मान के कारण नंगे पांव चलते हैं. ये परंपरा देवी मुथ्यालम्मा की पूजा और सम्मान से जुड़ी है, जिसे गांववाले अपनी रक्षा करने वाली देवी मानते हैं. इस परंपरा में केवल बुजुर्ग और बीमार लोगों को ही जूते पहनने की छूट मिलती है.

भारत में हर क्षेत्र और गांव की अपनी अनूठी परंपराएं होती हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है तमिलनाडु के एक छोटे से गांव की अनोखी परंपरा, जहां लोग जूते-चप्पल नहीं पहनते. ये गांव ना केवल अपने नियमों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां के लोग अपनी धार्मिक आस्था और परंपराओं को बहुत सम्मान देते हैं.

एक ऐसा गांव, जहां लोग नंगे पांव चलते हैं और जूते-चप्पल पहनने से परहेज करते हैं. इस परंपरा की जड़ें यहां के एक देवता की पूजा और सम्मान में हैं, जिसे गांव के लोग अत्यधिक श्रद्धा और विश्वास के साथ मानते हैं.

गांव की धार्मिक परंपरा और मान्यताएं

तमिलनाडु के दक्षिणी इलाके में स्थित ये गांव अपनी अनूठी परंपरा के लिए मशहूर है. यहां के लोग मानते हैं कि उनका गांव एक पवित्र स्थल है और इसे देवता के आशीर्वाद से सुरक्षित रखा गया है. गांव में रहने वाले लोग 'मुथ्यालम्मा' देवी की पूजा करते हैं, जो उनके समुदाय की रक्षा करती हैं. देवी की पूजा और सम्मान में ही ये परंपरा बन गई है कि लोग अपने पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनते.

जूते-चप्पल ना पहनने की क्या है वजह?

यहां के लोग ये मानते हैं कि उनके गांव की भूमि और मंदिर का सम्मान करना चाहिए और यहीं कारण है कि वे नंगे पांव चलते हैं. गांव के मंदिर में एंट्री करते समय लोग हमेशा अपने जूते-चप्पल बाहर ही उतार देते हैं और इसी परंपरा को वे अपने घरों और गांव में भी अपनाते हैं. यहीं नहीं, ये परंपरा गांव के हर निवासी के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है.

बुजुर्गों और बीमार लोगों को मिलती है छूट

इस गांव में केवल बुजुर्ग और बीमार लोग ही जूते-चप्पल पहन सकते हैं. अन्यथा, गांव के सभी लोग नंगे पांव चलते हैं, चाहे वो खेतों में काम कर रहे हो या फिर स्कूल जा रहे हो. कुछ खास मौकों पर, जैसे गर्मी के महीनों में, लोग गर्म जमीन से बचने के लिए चप्पल पहनते हैं, लेकिन ये बहुत कम होता है.

इस परंपरा के पीछे की मुख्य वजह यहां के लोगों का अपनी देवी के प्रति श्रद्धा और प्रेम है. मार्च और अप्रैल में, देवी मुथ्यालम्मा की पूजा के दौरान तीन दिवसीय उत्सव मनाया जाता है, जिसमें गांव के लोग जूते-चप्पल पहनने से बचते हैं. ये परंपरा और आस्था गांव के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है.

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03 April 2025, 06:56 PM IST

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