पाकिस्तान में यहां 4 साल की बच्ची की कराते हैं दादा से शादी, हैरान कर देगी वजह
Pakistan Child Marriage: पाकिस्तान से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक 4 साल की मासूम बच्ची की शादी उसके 60 वर्षीय दादा से कर दी गई. यह सब एक पुरानी कुप्रथा 'वानी' के तहत हुआ, जो आज भी कुछ कबीलों में चलन में है.

Pakistan Child Marriage: पाकिस्तान में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां महज 4 साल की मासूम बच्ची की शादी उसके ही 60 वर्षीय दादा से कर दी गई. वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल, यह सब सदियों पुरानी उस कुप्रथा के तहत हुआ, जो आज भी पाकिस्तान के कुछ आदिवासी और दूरदराज के इलाकों में जीवित है. 'वानी' और 'स्वारा' नाम की ये परंपराएं आज भी मासूम बच्चियों की जिंदगी को नर्क बना रही हैं.
तकनीक और आधुनिकता के इस युग में भी कुछ समुदाय ऐसे हैं, जो सामाजिक कुरीतियों और क्रूर परंपराओं के बोझ तले दबे हुए हैं. पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के दूरस्थ गांवों में आज भी ऐसी ही एक अमानवीय परंपरा को निभाया जा रहा है, जिसमें बच्चियों की उम्र को नजरअंदाज कर उन्हें बुजुर्ग पुरुषों के साथ जबरन ब्याह दिया जाता है.
क्या है 'वानी' और 'स्वारा' कुप्रथाएं?
'वानी' एक पश्तो शब्द है, जो 'वने' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है 'खून'. यह प्रथा तब अपनाई जाती है, जब दो कबीलों के बीच झगड़ा या खून-खराबा होता है. इस झगड़े को सुलझाने के लिए एक कबीला अपनी बेटी की शादी दुश्मन कबीले के किसी पुरुष से कर देता है. इस प्रथा के तहत बच्चियों की उम्र आमतौर पर 4 से 14 साल तक होती है, जबकि पुरुष की उम्र 25 से 60 वर्ष के बीच हो सकती है.
दुश्मनी का खामियाजा भुगतती हैं मासूम बच्चियां
इन इलाकों में वानी और स्वारा के नाम पर बच्चियों को मुआवजे की तरह इस्तेमाल किया जाता है. हत्या, बलात्कार, कर्ज या अपहरण जैसी घटनाओं के बाद दो गुटों के बीच सुलह के लिए एक पक्ष अपनी बेटी को दूसरे पक्ष को सौंप देता है. इसमें बच्ची की सहमति या उम्र का कोई महत्व नहीं होता. यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज की आत्मा को झकझोर देने वाली प्रथा भी है.
400 साल पुरानी है यह अमानवीय परंपरा
माना जाता है कि वानी प्रथा की शुरुआत लगभग 400 साल पहले मियांवाली के दो पश्तून कबीलों के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद हुई थी. उस समय इसे झगड़ों को शांत करने का उपाय माना गया था, लेकिन आज यह परंपरा मासूम जीवन को तबाह करने का हथियार बन चुकी है.
सरकार और संगठनों की कोशिशें नाकाम
हालांकि पाकिस्तान सरकार और कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है. समाज के कुछ हिस्से आज भी इस परंपरा को न्याय का साधन मानते हैं और इसका पालन करते हैं.
अपने ही 60 साल के दादा से ब्याही 4 साल की बच्ची
ताजा मामला इस घिनौनी परंपरा की एक और दर्दनाक बानगी है. पाकिस्तान के एक कबीले में 4 साल की बच्ची को अपने ही 60 साल के दादा से ब्याह दिया गया. यह कदम एक पुराने विवाद को खत्म करने के लिए उठाया गया. यह घटना न केवल हैरान कर देने वाली है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि आखिर कब तक बेटियों की जिंदगी यूं ही सौदेबाजी में झोंकी जाती रहेगी?


