जब अंग्रेजों को दहेज में चला गया था भारत का ये शहर, 350 साल पुरानी इस कहानी पर यकीन करना मुश्किल!
क्या आप जानते हैं कि सपनों का शहर मुंबई कभी दहेज में दी गई थी? 1661 में एक शाही विवाह ने इस ऐतिहासिक शहर की किस्मत हमेशा के लिए बदल दी थी.

मुंबई, जिसे अकसर 'सपनों का शहर' कहा जाता है, उसकी नींव एक दिलचस्प और ऐतिहासिक दास्तान में छिपी है. अरबों की आबादी वाले इस महानगर का अतीत किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं, जहां युद्ध, राजनीति और विवाह गठबंधन ने इसकी तकदीर तय की. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुंबई एक बार दहेज में दी गई थी?
1661 में इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय और पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ़ ब्रैगेंज़ा के विवाह के समय, मुंबई को एक ऐतिहासिक दहेज के रूप में इंग्लैंड को सौंप दिया गया था. उस वक्त ये क्षेत्र पुर्तगाल के नियंत्रण में था. इस ऐतिहासिक सौदे ने मुंबई को ब्रिटिश साम्राज्य की गोद में डाल दिया, जो बाद में भारत में ब्रिटिश शासन की एक मजबूत नींव बन गया.
मुंबई का नाम और उत्पत्ति
मुंबई का नाम इसकी संरक्षक देवी 'मां मुंबा' के नाम पर रखा गया है. ये शहर सिर्फ व्यापार और सिनेमा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी मशहूर है. मौर्य से लेकर ब्रिटिश राज तक, कई शासकों ने इस शहर पर शासन किया. 1534 में पुर्तगालियों ने बॉम्बे के 7 द्वीपों को जब्त किया था. तब इसे 'बॉम्बे' के नाम से जाना जाता था. पुर्तगालियों ने इस क्षेत्र का धार्मिक और आर्थिक रूप से उपयोग करते हुए इसे अपने सहयोगियों को बेहद कम किराए पर पट्टे पर दे दिया था. उनका मकसद ईसाई धर्म का प्रसार और व्यापारिक लाभ उठाना था.
विवाह के बदले मिला ‘बॉम्बे’
1661 में एक ऐतिहासिक विवाह हुआ- इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय और पुर्तगाल के राजा की बहन कैथरीन ऑफ़ ब्रैगेंज़ा के बीच. ये शादी सिर्फ प्रेम का नहीं, बल्कि राजनीति और सामरिक गठजोड़ का परिणाम थी. इस गठबंधन की एक गुप्त शर्त थी:- बॉम्बे को दहेज में दिया जाएगा. पुर्तगाल को इसके बदले ब्रिटिश सैन्य समर्थन और अन्य फायदे मिले.
7 द्वीप, एक महानगर
चार्ल्स द्वितीय ने विवाह के बाद मुंबई को बनाने वाले 7 द्वीपों पर अधिकार कर लिया. ये विवाह एक रणनीतिक चाल थी, जिससे ब्रिटेन को भारत में एक रणनीतिक बंदरगाह मिला. इन द्वीपों को बाद में एक साथ मिलाकर एक शहर का रूप दिया गया, जो आज की मायानगरी मुंबई बन चुकी है. बॉम्बे के अधिग्रहण ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में मजबूती से जमने का मौका दिया. समय के साथ बॉम्बे एक व्यापारिक केंद्र, फिर एक औद्योगिक हब और अंततः भारत की सबसे बड़ी मेट्रोपोलिटन सिटी बन गया.


