सिर्फ 4 दिन में 100 करोड़ क्लब में शामिल हुई 'सैयारा', बिना स्टार और प्रमोशन के कैसे बन गई ब्लॉकबस्टर?
बॉलीवुड फिल्म 'सैयारा' ने बिना किसी स्टार या फ्रेंचाइज़ी सपोर्ट के महज 4 दिन में 100 करोड़ की कमाई कर सबको चौंका दिया है. जनरेशन Z की सच्ची भावनाओं, शानदार म्यूजिक और गहराई से भरी कहानी ने इसे एक कल्ट हिट बना दिया है.

बॉलीवुड फिल्म 'सैयारा' ने महज 4 दिनों में 100 करोड़ रुपये की कमाई करके हर किसी को चौंका दिया है. यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि फिल्म में कोई बड़ा सितारा नहीं है, ना ही कोई भारी-भरकम प्रचार किया गया. ऐसे दौर में जब थिएटर जाना लोगों के लिए विकल्प मात्र रह गया है और ओटीटी का बोलबाला है, 'सैयारा' ने उम्मीद से परे दर्शकों के दिल में जगह बना ली है.
बिना किसी स्टार पावर और फ्रेंचाइज़ी सपोर्ट के, इस फिल्म ने सिर्फ कंटेंट, म्यूजिक और इमोशन्स के दम पर वो कर दिखाया है जो आज के दौर में मुश्किल माना जाता है. सोशल मीडिया पर 'सैयारा' को लेकर जबरदस्त क्रेज देखने को मिल रहा है- मीम्स, रील्स, डिस्कशन्स और एक ही सवाल: आखिर ये कैसे हो रहा है?
कोई तय फॉर्मूला नहीं, फिर भी हिट क्यों?
सिनेमा की दुनिया में कोई तय फॉर्मूला नहीं होता कि क्या चलेगा और क्या नहीं. कभी दर्शकों की सामूहिक भावना किसी फिल्म को हिट बना देती है, जैसे ‘पठान’ में हुआ था. तो कभी किसी पुराने फ्रेंचाइज़ी की विरासत काम कर जाती है, जैसे ‘पुष्पा: द रूल’. लेकिन 'सैयारा' तो इनमें से कुछ भी नहीं है. फिर भी लोगों के दिलों में उतर गई.
'सनम तेरी कसम' की याद दिला रही 'सैयारा'?
इस साल की शुरुआत में ‘सनम तेरी कसम’ का दोबारा रिलीज होना और उसका थिएटर में धमाल मचाना एक ट्रेंड की शुरुआत थी. 'सैयारा' उसी भावना को दोहराती है. ये फिल्म भी उसी तरह दिल से बनाई गई है- जहां भावनाएं नकली नहीं लगतीं. मोहित सूरी ने इस फिल्म की धुनों को पांच साल तक संजोया है. हर गाना किसी कविता की तरह लगता है जिसे सुरों में लिखा गया हो. ये म्यूजिक ही फिल्म को अलग बनाता है- सिर्फ सुनने में अच्छा नहीं, बल्कि आत्मा को छूने वाला. ट्रेलर ने बहुत कुछ नहीं बताया. कौन हैं ये दोनों किरदार? कैसे प्यार हुआ? क्या टूटा? क्या फिर मिले? क्या कोई मरा? ये सस्पेंस ही दर्शकों को थिएटर तक खींच लाया.
जनरेशन Z के लिए ये उनकी खुद की कहानी
‘सैयारा’ उन युवाओं की कहानी है जो आज के दिखावे भरे दौर में कुछ सच्चा जीना चाहते हैं. कृष्ण कपूर अपनी मेहनत से आगे बढ़ना चाहता है, वहीं वाणी बत्रा इस शोरगुल भरी दुनिया में बस शांति से जीना चाहती है. ये दोनों किरदार, उनकी असहजता और पारिवारिक रिश्तों की जटिलताएं आज की पीढ़ी को खुद की कहानी लगती है.
फोन और टैबलेट पर कंटेंट देखने वाले युवा, ‘सैयारा’ के लिए थिएटर पहुंचे. न किसी मार्वल मूवी के लिए, न किसी बड़ी फ्रेंचाइज़ी के लिए, बल्कि सिर्फ इसलिए कि उन्होंने कुछ 'महसूस' किया.


