जानिए कैसी है शाह बानो मामले पर आधारित फिल्म 'हक'
फिल्म हक को समाज के एक संवेदनशील विषय पर बनाया गया है, जिसे सुपर्ण वर्मा ने डायरेक्ट किया है. फिल्म हक में मुख्य किरदार इमरान हाशमी और यामी गौतम ने निभाए है. फिल्म हक शाह बानो मामले से प्रेरित है.

मुंबई: फिल्म 'हक' को समाज के एक संवेदनशील विषय पर बनाया गया है, जिसे सुपर्ण वर्मा ने डायरेक्ट किया है. फिल्म 'हक' में मुख्य किरदार इमरान हाशमी और यामी गौतम ने निभाए है. फिल्म 'हक' शाह बानो मामले से प्रेरित है. फिल्म सभी वर्ग के दर्शकों को शायद ही पसंद आए, लेकिन गंभीर मद्दे पर बनी यह फिल्म समाज को बड़ा संदेश देती है.
‘बानो भारत की बेटी’ पर आधारित है फिल्म
फिल्म 'हक' में एक ऐसी कहानी पिरोई गई है, जो महिला अधिकारों, समाज और धर्म के बीच चलने वाले संघर्ष को बहुत सच्चाई और भावनात्मक ढंग से पेश करती है. डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा ने इस विषय को बेहद संवेदनशीलता से दिखाया है. यह फिल्म जिग्ना वोरा की किताब ‘बानो भारत की बेटी’ पर आधारित है और इसमें शाह बानो केस से प्रेरणा ली गई है. कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उन सभी औरतों की है, जो अपने अधिकारों और सम्मान के लिए समाज से लड़ती आई हैं.
यामी और हाशमी ने निभाए मुख्य किरदार
फिल्म की मुख्य किरदार शाजिया बानो (यामी गौतम) है, जिसकी ज़िंदगी उसके पति अब्बास खान (इमरान हाशमी) और तीन बच्चों के साथ ठीक चल रही होती है, लेकिन जब अब्बास दूसरी शादी कर लेता है और शाजिया को बच्चों सहित छोड़ देता है, तो उसकी दुनिया उजड़ जाती है. शुरुआत में अब्बास बच्चों के खर्च का वादा करता है, लेकिन बाद में वह भी बंद कर देता है. शाजिया चुप नहीं बैठती और न्याय पाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाती है.
धार्मिक और सामाजिक बहस का मुद्दा
शाजिया बानो का यह कदम समाज में बड़ी हलचल मचा देता है. अब्बास उसे चुप कराने के लिए तीन तलाक बोल देता है और एक घरेलू मामला धीरे-धीरे धार्मिक और सामाजिक बहस का मुद्दा बन जाता है. अदालत, समाज और धर्म की जटिलताओं के बीच शाजिया की आवाज़ सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि हर उस औरत के लिए उठने लगती है, जो अपने हक के लिए खड़ी होना चाहती है. कहानी आगे बढ़ते-बढ़ते यह सवाल उठाती है कि क्या आज भी महिलाओं को समाज में उनका असली स्थान मिला है?
कहानी को सच्चाई से दिखाया गया
अभिनय की बात करें तो, यामी गौतम ने शाजिया के किरदार को पूरी ईमानदारी और गहराई से निभाया है. उनके चेहरे के भाव और संवादों में दर्द और दृढ़ता दोनों दिखते हैं. इमरान हाशमी ने अब्बास खान के रूप में बेहतरीन संतुलन दिखाया है.
सुपर्ण वर्मा का निर्देशन फिल्म की जान है. उन्होंने बिना किसी ओवरड्रामा के कहानी को सच्चाई से दिखाया है. सिनेमैटोग्राफी, सेट और लोकेशन में 1980 के दशक की झलक खूबसूरती से झलकती है. हालांकि पहला हिस्सा थोड़ा धीमा लगता है, लेकिन दूसरा भाग कहानी को मजबूत पकड़ देता है.


