भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में डेयरी बना विवाद का केंद्र, भारत बोला- मांसाहारी गायों का दूध मंजूर नहीं
भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते की बातचीत इस समय एक बड़े सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दे पर आकर अटक गई है. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने डेयरी बाजार को खोल दे, लेकिन भारत ने दो टूक कह दिया है कि ऐसे किसी भी विदेशी दूध या डेयरी उत्पाद की इजाजत नहीं दी जाएगी, जो उन गायों से आया हो जिन्हें मांस, खून या अन्य पशु-आधारित उत्पाद खिलाए गए हों.

भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं में डेयरी सेक्टर सबसे बड़ा गतिरोध बनकर उभरा है. अमेरिका जहां चाहता है कि भारत अपने डेयरी बाजार को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले, वहीं भारत स्पष्ट कर चुका है कि जानवरों के मांस या रक्त से पोषित गायों के दूध को स्वीकार नहीं किया जा सकता. भारत इसे अपनी धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा "गैर-परक्राम्य" मुद्दा मानता है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इसकी 80% से अधिक डेयरी ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे किसानों के जरिए संचालित होती है. ऐसे में "नॉन-वेज दूध" के आयात को लेकर भारत की कड़ी आपत्ति सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी है.
अमेरिका की मांग, भारत का इनकार
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है. लेकिन इस प्रयास में डेयरी और कृषि सेक्टर सबसे बड़ी अड़चन बन गए हैं. भारत ने साफ कर दिया है कि किसी भी ऐसी गाय का दूध देश में नहीं आने दिया जाएगा, जिसे मांस, खून या किसी अन्य पशु अवशेष से बना आहार दिया गया हो.
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टिट्यूट के अजय श्रीवास्तव ने कहा, "कल्पना कीजिए कि ऐसा मक्खन खा रहे हैं जो उस गाय के दूध से बना है, जिसे दूसरे जानवरों का मांस या खून खिलाया गया हो. भारत शायद ही कभी इसे मंजूरी देगा."
धार्मिक परंपराओं में डेयरी का महत्व
भारत में दूध, घी और अन्य डेयरी उत्पाद न केवल आहार का हिस्सा हैं, बल्कि पूजा-पाठ और धार्मिक क्रियाओं में भी इनका विशेष महत्व है. ऐसे में ‘अशुद्ध स्रोत’ से आया दूध या उससे बने उत्पादों का उपयोग भारत के करोड़ों शाकाहारी नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है.
अमेरिका ने कहा- भारत बना रहा 'अनावश्यक व्यापार बाधा'
अमेरिका ने भारत की इस स्थिति को "अनावश्यक व्यापार अवरोध" करार दिया है. उसका तर्क है कि वैश्विक स्तर पर डेयरी व्यापार के लिए यह नियम बाधा बन सकते हैं. लेकिन भारत का जवाब साफ है—"हम अपने किसानों और उपभोक्ताओं की आस्था से समझौता नहीं करेंगे."
डेयरी सेक्टर से जुड़ी करोड़ों की रोज़ी-रोटी
भारत का डेयरी सेक्टर करीब 7.5-9 लाख करोड़ रुपये के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में योगदान देता है और इसमें 80 मिलियन से अधिक लोग रोजगार पाते हैं. ऐसे में अमेरिकी डेयरी उत्पादों के सस्ते आयात से यह पूरा सिस्टम हिल सकता है.
महाराष्ट्र के किसान महेश सकुंडे कहते हैं, "अगर सरकार ने सस्ते विदेशी दूध को आने दिया, तो हमारी रोजी-रोटी ही खत्म हो जाएगी." SBI की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका को बाजार खोलने पर भारत को सालाना ₹1.03 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है.
अमेरिकी दूध में क्या है समस्या?
The Seattle Times की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में गायों को सुअर, मुर्गी, घोड़े, मछली, यहां तक कि बिल्लियों और कुत्तों के हिस्सों से बनी आहार भी दी जाती है. कुछ मामलों में उन्हें मल-मिश्रित बिछावन (poultry litter) तक खिलाया जाता है. हालांकि अमेरिका में गाय को गाय का मांस नहीं खिलाया जा सकता (मैड काउ डिज़ीज़ की रोकथाम के लिए), लेकिन अन्य जानवरों के हिस्सों से बनी फीड का उपयोग अब भी जारी है.
भारत सरकार की Department of Animal Husbandry and Dairying ने स्पष्ट नियम बनाए हैं कि किसी भी पशु उत्पाद से बनी फीड से आया दूध स्वीकार्य नहीं होगा.
भारत का रुख: नॉन-वेज दूध नहीं चलेगा
भारत ने WTO और अमेरिका को साफ कर दिया है कि नॉन-वेज दूध की भारत में कोई जगह नहीं है. अमेरिकी रिपोर्ट National Trade Estimate Report में भी भारत की इस प्रतिबद्धता का जिक्र किया गया है. भारत का यह विरोध केवल आर्थिक प्रतिस्पर्धा को लेकर नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, विश्वास और सामाजिक संरचना की रक्षा से भी जुड़ा है.


