score Card

'हिंसा भड़काने की साजिश का सरगना', अदालत ने शरजील इमाम के खिलाफ आरोप किए तय

जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी हिंसा मामलें में अदालत ने सोमवार को आरोप तय किए. इस दौरान कोर्ट ने आरोपी से कड़े सवाल पूछे. 7 मार्च को जारी आदेश में अदालत ने कहा कि स्पष्ट रूप से, एक बड़ी भीड़ का एकत्र होना और उसके द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया दंगा कोई आकस्मिक या स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थी. अदालत ने कहा कि एक वरिष्ठ पीएचडी छात्र होने के नाते शरजील ने अपने भाषण को चालाकी से पेश किया, जिसमें उसने मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य समुदायों का उल्लेख करने से परहेज किया.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को 2019 के जामिया मिलिया इस्लामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम के खिलाफ आरोप तय करते हुए कहा कि वह न केवल भड़काने वाला था, बल्कि 'हिंसा भड़काने की एक बड़ी साजिश का सरगना भी था.' अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा कि 13 दिसंबर को जामिया विश्वविद्यालय के पास शरजील का भाषण 'जहरीला' था और एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा करने वाला था. जज ने कहा कि उनका भाषण वास्तव में एक नफरत फैलाने वाला भाषण था.

अदालत ने शरजील पर आईपीसी की धाराओं के तहत आरोप लगाए हैं, जिनमें उकसाना, आपराधिक साजिश, दंगा, गैरकानूनी ढंग से एकत्र होना, समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, गैर इरादतन हत्या का प्रयास, लोक सेवक के काम में बाधा डालना और आग या विस्फोटक पदार्थ से उत्पात मचाना तथा पीडीपीपी धाराओं के तहत आरोप लगाए हैं.

दिल्ली दंगा कोई आकस्मिक घटना नहीं

अदालत इमाम और अन्य के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस ने आईपीसी, सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम (पीडीपीपी) और शस्त्र अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच मामले की जांच कर रही है.

7 मार्च को जारी आदेश में अदालत ने कहा कि स्पष्ट रूप से, एक बड़ी भीड़ का एकत्र होना और उसके द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया दंगा कोई आकस्मिक या स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थी और यह स्वयंभू नेताओं और भीड़ की गतिविधि शुरू करने वालों के बीच रची गई एक बड़ी साजिश के अलावा और किसी अन्य साजिश के तहत नहीं किया जा सकता था, जबकि भीड़/गैरकानूनी सभा के अन्य सदस्य इसमें शामिल होते रहे.

अपने भाषण को चालाकी से पेश किया': कोर्ट

अदालत ने अभियोजन पक्ष की इस दलील पर गौर किया कि इमाम ने 13 दिसंबर 2019 को एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने यह कहकर अपने श्रोताओं को उकसाया था कि उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी होने के बावजूद, वे शहरों को सामान्य रूप से काम करने की अनुमति क्यों दे रहे हैं और वे चक्का जाम क्यों नहीं कर रहे हैं?

मुस्लिम धर्म के लोगों को ही क्यों उकसाया?

अदालत ने कहा कि एक वरिष्ठ पीएचडी छात्र होने के नाते उसने अपने भाषण को चालाकी से पेश किया, जिसमें उसने मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य समुदायों का उल्लेख करने से परहेज किया, जबकि चक्का जाम के इच्छित पीड़ित अन्य समुदायों के सदस्य थे. अदालत ने पूछा कि आरोपी शरजील इमाम ने समाज के सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए केवल मुस्लिम धर्म के लोगों को ही क्यों उकसाया?

अदालत ने आगे कहा कि उनका भाषण क्रोध और घृणा को भड़काने के लिए था, जिसका स्वाभाविक परिणाम सार्वजनिक सड़कों पर गैरकानूनी रूप से एकत्रित हुए लोगों द्वारा व्यापक हिंसा थी. उनका भाषण जहरीला था और एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा करने वाला था. यह वास्तव में नफरत भरा भाषण था.

किसी भी मरीज की मौत, गैर इरादतन हत्या से कम नहीं

अदालत ने कहा कि जाम लगाना जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. अदालत ने कहा कि चक्का जाम से कुछ भी शांतिपूर्ण नहीं हो सकता. कोर्ट ने कहा, "दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहर में, किसी भी समय, गंभीर रूप से बीमार बड़ी संख्या में मरीज़ जिन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है, अस्पताल पहुंचने की जल्दी में होते हैं. चक्का जाम से उनकी हालत बिगड़ सकती है या अगर उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती है तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है, जो कि गैर इरादतन हत्या से कम नहीं है."

आदेश में आगे कहा गया है कि चक्का जाम से लोगों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है. साथ ही इसमें कहा गया है कि भले ही भीड़ ने जाम के दौरान हिंसा और आगजनी न की हो, फिर भी यह समाज के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के खिलाफ की गई हिंसक कार्रवाई होगी.

calender
11 March 2025, 07:17 AM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag