हर रात गांव बंद, मोबाइल डेड, दिमाग सुन्न… क्या नवटोली गांव बन चुका है रेडिएशन टेस्ट की ज़िंदा लैब?
सोचिए… आप गहरी नींद में हों, और अगली सुबह आपको पता चले कि सिर्फ आप ही नहीं, पूरा गांव एक साथ बेहोश था। फोन ‘डेड’, इंटरनेट नदारद, और कुछ लोगों के मुंह से झाग निकल रहा हो। क्या ये कोई वायरस है? या फिर कोई अदृश्य हमला?

National News: बिहार और झारखंड की सीमा पर बसा ‘नवटोली’ गांव इन दिनों एक रहस्य बन गया है। यहां हर रात कुछ ऐसा घटता है, जिसे न तो विज्ञान समझ पा रहा है, न ही सरकार। रात 12 बजते ही इस गांव का हर मोबाइल फोन अचानक बंद हो जाता है। कॉल नहीं लगती, इंटरनेट गायब और बैटरी भी जैसे पूरी तरह निचुड़ जाती है। नवटोली में रात जैसे ही गहराती है, आसमान से कुछ ‘अलग’ उतरता है—ऐसा गांव वालों का दावा है। बुजुर्ग महिलाएं कहती हैं, "नींद नहीं आती, जैसे कोई दवा चढ़ा दे... हम खुद को खो बैठते हैं।” कई परिवारों ने बच्चों को नींबू, नमक और ताबीज के सहारे सुलाना शुरू कर दिया है। कुछ घर खाली हो चुके हैं। और गांव के सरपंच ने इस अजीब घटनाक्रम की शिकायत दिल्ली तक पहुंचाई है—पर जवाब अभी तक ‘मौन’ है।
तीन महीने से हर रात डर की दोहराई जा रही है कहानी
जब पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाया गया, तो डॉक्टर्स भी चौंक गए। न ज़हर मिला, न बीमारी। मेडिकल रिपोर्ट्स ‘क्लीन’ थीं, लेकिन शरीर में थकावट और दिमाग में सुन्नपन पाया गया। कुछ रिसर्चर्स मानते हैं कि यह किसी अनदेखे माइक्रोवेव रेडिएशन का असर हो सकता है—एक ऐसा 'स्लीप सिग्नल' जो इंसानी चेतना को कुछ घंटों के लिए पूरी तरह ‘स्विच ऑफ’ कर देता है।
मोबाइल टॉवर एक्टिव, पर रात भर नेटवर्क ब्लैकआउट क्यों?
गांव के तीन मोबाइल टॉवर सरकारी रिकॉर्ड में एक्टिव हैं। फिर भी हर रात 11:59 से सुबह 6:01 तक नेटवर्क पूरी तरह लुप्त हो जाता है। एक रेडियो इंजीनियर ने बताया कि शायद “स्पूफिंग वेव” नाम की कोई रेड फ्रीक्वेंसी इन टॉवर्स को टारगेट कर रही है। ड्रोन सर्वे में गांव के पास एक पुराना ब्रिटिश रेडियो टावर मिलने से शक और गहरा हो गया है।
क्या नवटोली ‘AI रेड ज़ोन’ बन चुका है?
AI रेडियो फ्रीक्वेंसी विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में अनधिकृत माइक्रोवेव टेस्ट हो रहे हैं। नवटोली क्या ऐसा ही कोई ज़ोन है? या फिर यह चीन से जुड़े किसी साइबर एक्सपेरिमेंट का टारगेट? कुछ थ्योरीज तो पुराने ब्रिटिश इन्फ्रास्ट्रक्चर के फिर से एक्टिव होने की भी बात कर रही हैं।
रात की नजर, दिन की उलझन
सरकारी टीमों की गैरमौजूदगी में अब गांव वालों ने खुद अपने घरों के बाहर CCTV और कैमरे लगाने शुरू कर दिए हैं। कोई भी हलचल, कोई भी रात की परछाईं अब रिकॉर्ड हो रही है। लेकिन तब भी, जवाब अब तक एक रहस्य ही है। हालांकि प्रशासन ने शुरुआती स्तर पर हेल्थ डिपार्टमेंट, टेलीकॉम और साइंस एजेंसियों से रिपोर्ट्स मंगवाई थीं, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। राज्य स्तर पर एक दो बार अधिकारियों की टीमें भी गांव पहुंचीं, पर वे सिर्फ कंधे उचका कर लौट गईं। कहना मुश्किल है कि ये मामला साइंस से जुड़ा है या सुरक्षा से—शायद इसी उलझन में हर एजेंसी असहाय खड़ी है। सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया जरूर है, लेकिन अब तक जो समझ आया है, वो बहुत अधूरा है। सरकार अभी इस मामले को सुलझाने में लगी है आगे भी उसका प्रयास जारी रहेगा.
अब सवाल नेटवर्क का नहीं, चेतना का है
नवटोली में जो हो रहा है, वह महज तकनीकी गड़बड़ी नहीं है। यह चेतना के नियंत्रण की कोशिश है, या फिर मानव मस्तिष्क पर कोई प्रयोग। इस गांव में अब हर रात एक नई थ्योरी जन्म लेती है—AI वेव्स, रेडिएशन, माइक्रोवेव टेस्ट या फिर कोई विदेशी इंटरफेरेंस। जो भी हो, नवटोली अब केवल एक गांव नहीं रहा। यह शायद भारत की चेतना पर सबसे खतरनाक प्रयोगशाला बन चुका है।


