3 जज, 3 मामले, 2 दिन...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये संदेश संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने तीन मामलों की सुनवाई में स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हो सकती और जब यह किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाए, तो राज्य का हस्तक्षेप जरूरी है. कोर्ट ने सोशल मीडिया दिशानिर्देशों की मांग करते हुए अनुच्छेद 19 और 21 के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तीन अलग-अलग मामलों में सुनवाई करके यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हो सकती. इसकी सीमा होती है और जब यह किसी की गरिमा को आहत करे, तो उस पर सरकारी हस्तक्षेप भी आवश्यक हो सकता है. सोशल मीडिया की आना जनमत के लोकतंत्रीकरण का प्रतीक है, लेकिन यह मंच क्रूर ट्रोलिंग और ज्ञानविहीन हमलों का माध्यम भी बन गया है. ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी विशेष महत्व रखती है.
मामला 1: अनुच्छेद 19 बनाम 21, निशाना स्टैंड-अप कॉमेडियन
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्टैंड-अप कॉमेडियन और पॉडकास्टर्स से जुड़े मामले में समय रैना सहित कुछ प्रभावशाली हस्तियों से सुनवाई की. उन पर आरोप है कि उन्होंने विकलांग व्यक्तियों पर अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं.
कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को आदेश दिया है कि वह सोशल मीडिया के लिए ऐसे दिशानिर्देश तैयार करें जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) और सम्मान की रक्षा (अनुच्छेद 21) के बीच संतुलन बनाए रखें.
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि अगर ये दो अधिकार टकराएं, तो अनुच्छेद 21 को वरीयता दी जाएगी. अदालत ने यह कहा कि ऑनलाइन ट्रोलिंग मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकती है और हिंसा को भड़काने का एक जरिया भी बन सकती है.
मामला 2: कार्टूनिस्ट का विवाद
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने मध्य प्रदेश के कार्टूनिस्ट हेमंत मालविया की याचिका पर सुनवाई की. उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री फैलाने का आरोप है.
पीठ ने कहा, “लोग कुछ भी कह देते हैं, यह ऐसी स्थिति है जिसे नियंत्रित करना होगा.” यदि मालवीय सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट जारी रखेंगे, तो मध्य प्रदेश सरकार कार्रवाई कर सकती है. जज ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक पूर्ण अधिकार नहीं है; इसका दुरुपयोग होना, जिसमें धर्मनिरपेक्ष सद्भाव बिगाड़ने का खतरा हो, काफी गंभीर है.
मामला 3: राज्य हस्तक्षेप के बिना आत्म-नियमन
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने वजाहत खान की याचिका पर ध्यान दिया, जिसमें प्रभावशाली व्यक्ति शर्मिष्ठा पनोली की शिकायत का ज़िक्र था. खान की गिरफ्तारी के बाद, पीठ ने कहा कि नागरिकों को स्वयं अपने व्यावहारिक नियंत्रण को समझना चाहिए.
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया, “यदि लोग स्वरूल आचरण नहीं करेंगे, तो राज्य हस्तक्षेप करेगा, जो किसी को अच्छा नहीं लगता.” उन्होंने जोर देकर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उचित प्रतिबंध होना चाहिए, क्योंकि यह 100% पूर्ण अधिकार नहीं है.
सोशल मीडिया और न्यायिक मार्गदर्शन
सुप्रीम कोर्ट के इन तीन मामलों से संकेत मिलता है कि सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की अनियंत्रित स्वतंत्रता को सीमित करना न्यायपालिका का उद्देश्य है. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पहले कह चुके हैं कि स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन होनी चाहिए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इंटरनेट पर गुमनामी और तेज़ी से पहुंच के कारण पारंपरिक मीडिया के नियम इससे निपटने में अपर्याप्त हैं. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को अधिक जवाबदेह बनाना आवश्यक है ताकि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर विपरीत प्रभावों से बचा जा सके.


