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7/11 मुंबई ब्लास्ट केस में आज आएगा बड़ा फैसला, हाईकोर्ट सुनाएगा 5 दोषियों की फांसी पर अंतिम आदेश

7 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने पूरे देश को हिला दिया था. इन धमाकों में 189 लोगों की जान चली गई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस मामले में 5 दोषियों को मौत की सज़ा और 7 को उम्रकैद दी गई थी.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 जुलाई 2006 को हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट आज सुबह 9:30 बजे अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाने जा रहा है. निचली अदालत द्वारा मौत की सजा पाए पांच दोषियों ने अपने खिलाफ आए फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसकी सुनवाई पिछले छह महीनों से चल रही थी. यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की उम्मीद है, बल्कि देश की आतंक के खिलाफ लड़ाई में एक अहम मोड़ भी साबित हो सकता है.

बम धमाकों के इस केस को लेकर पूरे देश में बेचैनी है. निचली अदालत के निर्णय को महाराष्ट्र सरकार ने भी हाईकोर्ट में पुष्टि के लिए भेजा था. आज का निर्णय कानूनी हलकों, मीडिया और आम जनता के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

मुंबई की रफ्तार को दहलाने वाला दिन

11 जुलाई 2006 की शाम, मुंबई की जिंदगी जैसे थम गई थी. महज 11 मिनट के भीतर सात लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक हुए धमाकों ने 189 निर्दोष लोगों की जान ले ली और 827 से अधिक घायल हो गए. यह हमला उस समय हुआ जब लोग दफ्तर से घर लौट रहे थे और ट्रेनें खचाखच भरी थी. घटना के तुरंत बाद एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने 13 संदिग्धों को गिरफ्तार किया था, जबकि 15 अन्य को फरार घोषित किया गया था, जिनमें से कई के पाकिस्तान में छिपे होने की आशंका जताई गई थी.

2015 में निचली अदालत का फैसला

करीब नौ साल की लंबी सुनवाई के बाद 2015 में एक विशेष अदालत ने इस मामले में 12 आरोपियों को दोषी करार दिया था. इनमें से पांच को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, वहीं दोषियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए सजा को चुनौती दी.

कोर्ट में चली 6 महीने लंबी बहस

हाईकोर्ट में इस केस की सुनवाई जुलाई 2024 से शुरू हुई और यह लगातार छह महीने तक चली. डिफेंस वकीलों ने दलील दी कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) लागू होने के बाद जो इकबालिया बयान दर्ज हुए, वे ज़बरदस्ती और यातना के आधार पर लिए गए थे, और इस कारण उन्हें सबूत नहीं माना जा सकता. डिफेंस की तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि मुंबई क्राइम ब्रांच की जांच में इंडियन मुजाहिदीन (IM) की भूमिका सामने आई थी और IM सदस्य सादिक के इकबालिया बयान को उन्होंने अपने पक्ष में पेश किया.

'यह मामला दुर्लभतम में दुर्लभ है'

विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे ने करीब तीन महीने तक बहस में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि सभी सबूतों से यह साफ है कि दोषियों ने जानबूझकर यह साजिश रची थी. ठाकरे ने इसे “दुर्लभतम में दुर्लभ मामला” करार देते हुए कोर्ट से आग्रह किया कि निचली अदालत द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को बरकरार रखा जाए.

पीड़ित परिवारों को न्याय की उम्मीद

आज सुबह आने वाला हाईकोर्ट का फैसला मुंबई हमले के पीड़ितों और देश की जनता के लिए भावनात्मक और न्यायिक दोनों स्तरों पर बेहद अहम माना जा रहा है. 2006 में हुए इस बर्बर आतंकी हमले ने न केवल मुंबई, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था. अब 18 साल बाद न्याय की एक नई किरण दिखाई दे रही है.

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21 July 2025, 09:16 AM IST

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