अरावली टूट रही, दिल्ली का दम घुट रहा: 11 दरारों से थार की धूल का हमला, एक्सपर्ट्स ने बताया भयंकर खतरा
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद हड़कंप मच गया है. अब सिर्फ 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां ही अरावली कहलाएंगी. पर्यावरण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे अरावली के करीब 90% हिस्से की कानूनी सुरक्षा छिन जाएगी, और खनन का रास्ता खुल सकता है.

नई दिल्ली: दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में शामिल अरावली को लेकर एक बार फिर देशभर में बहस तेज हो गई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दिए जाने के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों, सामाजिक संगठनों और एक्टिविस्टों ने गंभीर आपत्तियां दर्ज कराई हैं. उनका कहना है कि इस फैसले से न सिर्फ अरावली का अस्तित्व संकट में आएगा, बल्कि दिल्ली-एनसीआर तक थार रेगिस्तान के विस्तार का खतरा भी बढ़ जाएगा.
विशेषज्ञों का दावा है कि अरावली पर्वतमाला में अब तक 11 से अधिक दरारें पड़ चुकी हैं, जिनके जरिए थार की धूल सीधे दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच रही है. नई परिभाषा लागू होने की स्थिति में अरावली का बड़ा हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन और गहराने की आशंका जताई जा रही है.
नई परिभाषा पर क्यों हो रहा है विरोध?
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की जिस नई परिभाषा को मंजूरी दी है, उसके अनुसार केवल वही पहाड़ियां अरावली का हिस्सा मानी जाएंगी जिनकी ऊंचाई कम से कम 100 मीटर है. विशेषज्ञों का आकलन है कि इस मानक के लागू होने से लगभग 90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है. हरियाणा और गुजरात में अरावली की कई पहाड़ियां पहले से ही अपेक्षाकृत कम ऊंची हैं, जिससे वहां सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है.
अरावली विरासत जन अभियान के तहत तेज हुई मुहिम
अरावली को बचाने के लिए काम कर रहे पर्यावरण संगठन और एक्टिविस्ट अब अरावली विरासत जन अभियान के तहत अपनी आवाज संसद तक पहुंचा रहे हैं. विभिन्न संस्थाएं राज्यसभा और लोकसभा सांसदों से संपर्क कर इस फैसले के दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी दे रही हैं और पुनर्विचार की मांग कर रही हैं.
दरारों से दिल्ली-NCR तक पहुंच रही थार की धूल
पर्यावरण कार्यकर्ता कैलाश मीणा के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में 692 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वतमाला को भारी नुकसान पहुंचा है. खनन गतिविधियों के चलते यहां करीब 12 बड़ी दरारें बन चुकी हैं. ये दरारें राजस्थान के अजमेर से झुंझुनूं और दक्षिण हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक फैली हुई हैं. इन्हीं दरारों के कारण थार रेगिस्तान की धूल दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच रही है, जिससे वायु गुणवत्ता और जनस्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है.
फैसले के पक्ष में सरकार का तर्क
इस पूरे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने भी अपना पक्ष रखा है. सरकार ने कोर्ट में कहा है कि अरावली की नई परिभाषा पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर तय की गई है. तर्क दिया गया है कि इससे संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाया जा सकेगा. सरकार का कहना है कि अरावली के लिए एक स्पष्ट और समान परिभाषा की लंबे समय से आवश्यकता थी, क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग मानकों के कारण नीतिगत भ्रम बना हुआ था.
गुड़गांव और उदयपुर में विरोध प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवंबर 2025 में नई ऊंचाई-आधारित परिभाषा स्वीकार किए जाने के बाद गुड़गांव और उदयपुर में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किए. कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि इस फैसले से खनन, निर्माण और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है, जो अरावली के पारिस्थितिक संतुलन के लिए बेहद घातक होगा. उन्होंने अरावली को पूरी तरह संरक्षित क्षेत्र घोषित करने और सख्त संरक्षण नीति लागू करने की मांग की है.


