अध्यक्ष की तलाश में जुटी BJP, तभी उपराष्ट्रपति ने थमा दिया इस्तीफा... क्या होने जा रहा बड़ा फेरबदल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उनका यह फैसला ऐसे समय आया है जब भाजपा अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में जुटी है. अब एक साथ दो अहम पदों पर नियुक्ति को लेकर भाजपा और सरकार के भीतर बड़े बदलावों की संभावना जताई जा रही है.

Jagdeep Dhankhar Resigns: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए यह कदम उठाया, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक परतों पर अटकलों का बाजार गर्म है.
BJP पहले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में जुटी थी और अब उपराष्ट्रपति पद रिक्त होने से उसे एक साथ दो बड़ी जिम्मेदारियों से निपटना होगा. धनखड़ का यह इस्तीफा न केवल सरकार बल्कि पार्टी संगठन में भी बड़े फेरबदल का संकेत माना जा रहा है.
BJP को अब दो बड़ी जिम्मेदारियों का सामना
धनखड़ के इस्तीफे के बाद भाजपा को अब दो बेहद महत्वपूर्ण पदों के लिए उपयुक्त चेहरों की तलाश करनी है. एक ओर पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त करना है, वहीं दूसरी ओर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव भी एक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत जल्द कराना होगा.
NDA गठबंधन में शामिल दलों को साथ लेकर चलने के लिए उपराष्ट्रपति का चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. संविधान के अनुच्छेद 68(2) के अनुसार, पद रिक्त होने की स्थिति में चुनाव ‘यथाशीघ्र’ कराना आवश्यक है, और चुना गया व्यक्ति पांच वर्ष तक पद पर बना रहेगा.
उपराष्ट्रपति के लिए चाहिए कैसा उम्मीदवार?
भाजपा को ऐसे चेहरे की तलाश है जो संवैधानिक दायित्वों को गंभीरता से निभा सके. खास बात यह है कि सरकार 'एक देश, एक चुनाव' जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को 2029 से पहले संसद में ला सकती है. ऐसे में राज्यसभा अध्यक्ष की भूमिका निर्णायक हो सकती है.
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब वे मई में 74 वर्ष के हो चुके हैं और हाल ही में RSS प्रमुख मोहन भागवत द्वारा 75 वर्ष की उम्र पर की गई टिप्पणी को लेकर राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई थी. विपक्षी दलों ने इस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संकेत बताया था.
पार्टी अध्यक्ष की रेस में कौन?
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए भाजपा ऐसे नेता को चुनना चाहती है, जो 2029 के लोकसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सके. साथ ही वह नेता नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और उपलब्धियों को जनता तक प्रभावी रूप से पहुंचा सके.
यह नियुक्ति सिर्फ पार्टी संगठन के लिहाज से ही नहीं, बल्कि पूरे NDA गठबंधन के नेतृत्व के लिए भी बेहद अहम मानी जा रही है. नए अध्यक्ष के आने से भाजपा की चुनावी रणनीति और आंतरिक ढांचे में भी व्यापक बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
कैबिनेट विस्तार की अटकलें तेज
इन घटनाक्रमों के बीच मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें भी जोर पकड़ रही हैं. सूत्रों के मुताबिक, सरकार कुछ नए चेहरों को कैबिनेट में शामिल कर सकती है और कुछ मौजूदा मंत्रियों को नई जिम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं. हालांकि, सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दिनों में सरकार और पार्टी दोनों के ढांचे में व्यापक बदलाव हो सकते हैं. इससे आगामी चुनावों को लेकर भाजपा की रणनीति और भी स्पष्ट होगी.
क्या कहते हैं संवैधानिक प्रावधान?
भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या पद से हटाए जाने पर रिक्ति को जल्द से जल्द भरा जाना अनिवार्य है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे हों या कार्यकाल समाप्त होने से पहले इस्तीफा दे दें, तो उनके उत्तरदायित्वों को कौन निभाएगा. इस संवैधानिक अस्पष्टता को देखते हुए आने वाले दिनों में इस विषय पर नई व्याख्या या दिशा-निर्देश सामने आ सकते हैं.


