अब तिलमिलाएगा पाकिस्तान! केंद्र सरकार ने चिनाब नदी पर सावलकोट प्रोजेक्ट को दी हरी झंडी
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को रोकते हुए चिनाब नदी पर अटकी सावलकोट पनबिजली परियोजना को दोबारा शुरू करने का ऐलान कर दिया है. 40 साल से बाधित इस परियोजना के लिए NHPC ने अंतरराष्ट्रीय टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी है.

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए सिंधु जल संधि को रोक दिया. इस फैसले के साथ ही, भारत ने जम्मू-कश्मीर की चिनाब नदी पर बनने वाली बहुप्रतीक्षित सावलकोट हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना को फिर से शुरू करने का ऐलान कर दिया है. इस परियोजना को लेकर केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेंडर आमंत्रित कर दिए हैं. करीब 40 साल पहले तैयार की गई इस परियोजना पर पाकिस्तान की आपत्तियों और कानूनी-अनुमोदन संबंधी बाधाओं के कारण सालों तक काम रुका रहा था.
सालों तक लटका रहा प्रोजेक्ट
सावलकोट हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर 1980 के दशक में विचार किया गया था. हालांकि, सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान द्वारा बार-बार की गई आपत्तियों और स्थानीय व पर्यावरणीय मुद्दों के कारण यह परियोजना बार-बार ठप होती रही. पाकिस्तान ने अक्सर इस परियोजना को लेकर विश्व मंच पर विरोध जताया था और इसे रोकने का प्रयास किया.
पर्यावरण और मुआवजा जैसे मसलों ने भी बढ़ाई मुश्किलें
इस प्रोजेक्ट से जुड़े कई घरेलू मुद्दे भी आड़े आए. इसमें 13 गांवों के निवासियों को मुआवजा देना, सेना के ट्रांजिट कैंप को रामबन से स्थानांतरित करना और वन भूमि के उपयोग को लेकर पर्यावरणीय स्वीकृति जैसी जटिलताएं शामिल थीं. हालांकि अब केंद्र सरकार ने वन सलाहकार समिति (FAC) से 847 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग को लेकर 'सैद्धांतिक' मंजूरी प्राप्त कर ली है.
NHPC ने शुरू किया टेंडर प्रोसेस
नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) ने बुधवार को इस परियोजना के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर दी है. 1856 मेगावाट की यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले के सिधु गांव के पास चिनाब नदी पर विकसित की जाएगी. टेंडर जमा करने की अंतिम तिथि 10 सितंबर निर्धारित की गई है. यह प्रोजेक्ट दो चरणों में तैयार होगा और इसकी लागत 22,704.8 करोड़ रुपये से ज्यादा होगी.
बिजली संकट को करेगा दूर
ये रन-ऑफ-रिवर परियोजना चिनाब नदी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग कर बिजली उत्पन्न करेगी. केंद्र सरकार का मानना है कि ये प्रोजेक्ट ना केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूरे देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसके शुरू होने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय विकास को नई गति मिलेगी.
सिंधु जल संधि: 1960 से चला आ रहा विवाद
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों का नियंत्रण दिया गया था, जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम पर पाकिस्तान का नियंत्रण तय हुआ था. हालांकि, संधि में ये भी उल्लेख था कि भारत इन पश्चिमी नदियों से कुछ मात्रा में पानी का उपयोग कर सकता है. पाकिस्तान इसी आधार पर सावलकोट जैसी परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है.
उमर अब्दुल्ला ने बताया 'बेहद महत्वपूर्ण'
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि ये परियोजना बेहद महत्वपूर्ण है और हम इसे जल्द शुरू करने की उम्मीद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 1996 में इसे बंद कर दिया गया था, जबकि डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने नॉर्वेजियन कंसोर्टियम की मदद से इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन वो भी असफल रही. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मेरे पिछले कार्यकाल में मैंने इसे पुनः शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार ने इसे पूरी तरह से बंद कर दिया.


