बीजेपी में गतिरोध? 29 प्रदेशों में चुने गए अध्यक्ष, 7 प्रमुख राज्यों में अभी भी चुनाव का इंतजार, जानिए क्यों
9 जुलाई तक भाजपा ने 29 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे किए, लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा और पंजाब में नेतृत्व चयन में देरी जारी है. गुटीय संघर्ष, जातिगत समीकरण और राजनीतिक तनाव पार्टी की चुनौतियां बने हुए हैं. अमित शाह रांची में बैठक करेंगे, जबकि झारखंड, दिल्ली, मणिपुर में भी संगठन को लेकर अनिश्चितता है.

9 जुलाई तक भाजपा ने देश के 36 राज्य इकाइयों में से 29 में संगठनात्मक चुनाव पूरे कर लिए हैं, जिससे राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए आवश्यक कोरम हासिल हो गया है. हालांकि पंजाब में अभी कार्यकारी अध्यक्ष के नामांकन तक ही प्रक्रिया सीमित है. राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा में अभी भी नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति बाकी है, जो पार्टी में चल रहे गुटीय संघर्ष और नेतृत्व संबंधी उलझनों को दर्शाता है. भाजपा के संविधान के अनुसार कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों में चुनावी प्रतिनिधि होना अनिवार्य है, और पार्टी इस प्रक्रिया को सभी राज्यों में पूरा करने की कोशिश में लगी है.
राज्य इकाइयों की चुनाव प्रक्रिया में देरी
पार्टी ने अधिकांश राज्यों में अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन पंजाब, झारखंड, दिल्ली और मणिपुर में अभी भी कुछ बाधाएं बनी हुई हैं. दिल्ली और झारखंड में जिला अध्यक्षों के चुनाव हो चुके हैं और प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव की घोषणा जल्द ही होने की संभावना है. पंजाब में कोरम न होने के कारण कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. इसी बीच गृह मंत्री अमित शाह 9 जुलाई को पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक के लिए रांची पहुंच चुके हैं. शाह यहां दो का प्रवास करेंगे, इस दौरान वे झारखंड भाजपा के कोर ग्रुप से भी मुलाकात कर सकते हैं.
कर्नाटक में नेतृत्व संकट
कर्नाटक में 2024 के लोकसभा और 2023 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद भी पार्टी नेतृत्व विवाद सुलझा नहीं पाया है. वर्तमान अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को राष्ट्रीय नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई समेत कुछ गुट उनके विरोध में हैं. येदियुरप्पा परिवार के बाद नेतृत्व को लेकर स्पष्ट सहमति नहीं बनने के कारण निर्णय प्रक्रिया बाधित हो रही है. पार्टी के लिए लिंगायत वोट बैंक को संतुलित करना और जातिगत गठबंधन बनाए रखना चुनौती बनी हुई है.
गुजरात में संगठनात्मक मुद्दे
गुजरात में भी नेतृत्व नियुक्ति प्रक्रिया में देरी राजनीतिक ताकतों के बीच जमीनी टकराव और जातिगत समीकरणों के कारण हो रही है. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के पक्ष में और पार्टी के स्थानीय नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है. सीआर पाटिल, जो वर्तमान अध्यक्ष हैं, अभी भी अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, लेकिन उनके कार्यकाल का अंत नजदीक है.
उत्तर प्रदेश में भी देरी
उत्तर प्रदेश भाजपा का सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामला है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बढ़ते प्रभाव के कारण नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में केंद्रीय नेतृत्व सतर्क है. आदित्यनाथ के करीबी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से लखनऊ में सत्ता समीकरण बिगड़ने का खतरा है. पूर्वी यूपी में चुनाव परिणामों के बाद पार्टी नेतृत्व कोई सर्वसम्मत विकल्प खोज रहा है, जिससे संगठन और सरकार के बीच संतुलन बना रहे.
हरियाणा में संगठन गतिरोध
हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की छवि पार्टी पर छाई हुई है, लेकिन उनके बाद संगठन बिखरा हुआ नजर आता है. खट्टर के समर्थक और अन्य गुटों के बीच टकराव जारी है. केंद्रीय नेतृत्व भी यह तय नहीं कर पाया है कि खट्टर की विरासत पर भरोसा किया जाए या नए नेताओं को मौका दिया जाए. राव इंद्रजीत सिंह ने अपने प्रभाव का प्रदर्शन किया है, लेकिन उनकी उम्र एक चिंता का विषय है.
पंजाब में चेहरे का संकट
पंजाब भाजपा में संगठनात्मक रूप से गिरावट आई है. पार्टी के कई जिलों में अध्यक्ष नहीं हैं और राज्य अध्यक्ष सुनील जाखड़ का मनोबल कम हो रहा है. हाल ही में भाजपा ने अश्विनी शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है, जो जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में तेजी लाएंगे. पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पुनर्गठन की आवश्यकता महसूस हो रही है.
दिल्ली और झारखंड की स्थिति
दिल्ली में लोकसभा और विधानसभा में जीत के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर असमंजस है. पार्टी नेतृत्व वर्तमान अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा को बनाए रखने या नए चेहरे को लाने के बीच सोच रहा है. झारखंड में जातिगत समीकरणों को लेकर पार्टी उलझन में है. आदिवासी और गैर-आदिवासी आधार के बीच संतुलन बनाने की कोशिश जारी है, जबकि राजनीतिक माहौल ध्रुवीकृत है.
मणिपुर में राजनीतिक तनाव
मणिपुर में जातीय तनाव के चलते संगठनात्मक गतिविधियां लगभग बंद हैं. पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को विधायकों का विरोध झेलना पड़ रहा है. राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और कानून-व्यवस्था अभी नाजुक है, इसलिए भाजपा किसी बड़े संगठनात्मक बदलाव से बच रही है.


