जीएसटी सुधार बनाम अमेरिकी टैरिफ: भारत की जीडीपी, महंगाई और राजकोषीय घाटे पर क्या होगा इसका असर?
भारत में जीएसटी दरों में कटौती से उपभोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे महंगाई में गिरावट और GDP में वृद्धि हो सकती है. हालांकि इससे राजस्व घाटा और अमेरिकी टैरिफ के कारण निर्यात व रुपये पर दबाव की चुनौती भी बनी हुई है. नीति निर्माता इन विरोधाभासी प्रभावों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

2017 में लागू हुए वस्तु एवं सेवा कर (GST) के बाद से यह सबसे बड़ा कर परिवर्तन माना जा रहा है, जो आने वाले वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था की गति, महंगाई की दिशा और राजकोषीय स्थिति को प्रभावित करेगा. यह सुधार ऐसे समय आया है जब अमेरिका द्वारा भारत पर बढ़े हुए आयात शुल्क (टैरिफ) के कारण निर्यात और मुद्रा विनिमय दर पर दबाव बढ़ रहा है.
उपभोग को बढ़ावा देने वाला कर सुधार
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीएसटी दरों में कटौती से घरेलू उपभोग में वृद्धि होगी. एक अनुमान के अनुसार, इससे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई में 1.1% तक की गिरावट आ सकती है. जब कीमतें घटती हैं, तो उपभोक्ता अधिक खर्च करते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है. इस सुधार से ऑटोमोबाइल, सीमेंट और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं जैसे क्षेत्रों को सबसे अधिक लाभ मिलेगा. 2025-26 में इससे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में 30 से 70 आधार अंकों की वृद्धि की उम्मीद जताई गई है.
क्या है चुनौती?
हालांकि कर में कटौती से उपभोग बढ़ेगा, लेकिन इससे सरकार को लगभग ₹48,000 करोड़ का प्रत्यक्ष राजस्व नुकसान हो सकता है, जो कि देश के GDP का करीब 0.13% है. हालांकि हाल के महीनों में जीएसटी संग्रहण में लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन यह घाटा पूरी तरह से पाटा नहीं जा सकेगा. यदि खर्च में कटौती या सरकारी कार्यकुशलता में सुधार नहीं हुआ, तो भारत का राजकोषीय घाटा बढ़कर 4.5% से 4.6% तक पहुंच सकता है, जो कि वित्तीय अनुशासन के लिहाज से चिंता का विषय हो सकता है.
निर्यात और मुद्रा पर दबाव
भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार संयुक्त राज्य अमेरिका है, जहां वित्त वर्ष 2025 में 80-87 अरब डॉलर का निर्यात किया गया, जो GDP का लगभग 2-2.5% है. लेकिन अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ भारत की वार्षिक GDP वृद्धि दर को 60-80 आधार अंक तक प्रभावित कर सकते हैं. इसका सीधा असर भारतीय रुपये पर भी पड़ा है, जो पहले ही अपने ऐतिहासिक निचले स्तर तक गिर चुका है. कमजोर रुपया तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आयातित उत्पादों की लागत बढ़ा रहा है, जिससे खुदरा महंगाई में 10-30 आधार अंकों की वृद्धि हो सकती है.
एक ओर प्रोत्साहन, दूसरी ओर दबाव
जहां जीएसटी दरों में कटौती से माँग और खपत को गति मिल रही है, वहीं अमेरिकी टैरिफ से निर्यात और मुद्रा विनिमय दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यह एक द्वंद्व की स्थिति है, जहां एक नीति से अर्थव्यवस्था को समर्थन मिल रहा है, जबकि दूसरी से दबाव बन रहा है. हालांकि अप्रैल-जून 2025 में भारत की GDP वृद्धि दर 7.8% रही, जो टैरिफ लागू होने से पहले की स्थिति है. इस बात से संकेत मिलता है कि भारत के पास मजबूत आर्थिक बुनियाद है.
नीतिगत संकल्प
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया है कि जीएसटी सुधारों पर अमेरिकी टैरिफ का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, और ये सुधार दीर्घकालिक रूप से GDP के लिए "बेहद सकारात्मक" साबित होंगे. राजस्व सचिव श्रीवास्तव ने भी विश्वास जताया कि कम कर दरों से खपत में वृद्धि होगी, जिससे आर्थिक गति को समर्थन मिलेगा. हालांकि, अल्पावधि में नीति निर्माताओं के सामने चुनौती है. खपत बढ़ाना, मुद्रा स्थिर रखना और राजकोषीय संतुलन बनाए रखना. अगर यह संतुलन बन गया, तो भारत इन वैश्विक झटकों से और मजबूत होकर उभर सकता है.


