बंगाल SIR में हिंदी बोलने वालों के नाम सबसे ज्यादा कटे, UP-बिहार लिंक से TMC-BJP में शुरू हुआ नया घमासान
पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन का ड्राफ्ट जारी कर दिया है, जिसमें करीब 58 लाख नाम हटाए जाने का प्रस्ताव है. इनमें ज्यादातर मृतक, स्थानांतरित या लापता मतदाता शामिल हैं. लेकिन असली हंगामा इस बात पर मचा है कि डिलीशन का पैटर्न क्या कहता है. टीएमसी का दावा है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर नाम कटने की दर बहुत कम (करीब 0.6%) है.

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. चुनाव आयोग द्वारा कराई गई विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के पहले चरण के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है. ड्राफ्ट के मुताबिक, बंगाल में मतदाताओं की कुल संख्या 7.66 करोड़ से घटकर 7.08 करोड़ रह गई है, यानी 58 लाख 20 हजार 898 वोटरों के नाम सूची से हटाए गए हैं.
चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया अभी अंतिम नहीं है और दावे-आपत्तियों के बाद मतदाता सूची में संशोधन संभव है. हालांकि, ड्राफ्ट सामने आते ही यह सवाल उठने लगा है कि किन इलाकों और किन समुदायों के वोट सबसे ज्यादा कटे हैं. आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि हिंदी भाषी और मतुआ बहुल क्षेत्रों में नाम हटने की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है, जबकि मुस्लिम बहुल इलाकों में कटौती काफी कम रही है.
क्यों हटाए गए लाखों वोटरों के नाम?
चुनाव आयोग के अनुसार, SIR प्रक्रिया के तहत नाम हटाए जाने के प्रमुख कारणों में मतदाता की मृत्यु, स्थायी पलायन, डुप्लीकेशन यानी एक से अधिक जगह नाम दर्ज होना और गणना फॉर्म जमा न करना शामिल हैं. आयोग ने साफ किया है कि यह केवल ड्राफ्ट सूची है और अगले चरण में इसमें बदलाव संभव है.
हिंदी भाषी इलाकों में सबसे ज्यादा कटौती
मीडिया रिपोर्ट्स और ड्राफ्ट आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में हिंदी भाषी आबादी ज्यादा है, वहां वोटरों के नाम सबसे अधिक हटाए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदी भाषी क्षेत्रों में यह कटौती सबसे ज्यादा देखने को मिली, जबकि मुस्लिम बहुल इलाकों में अपेक्षाकृत कम नाम काटे गए.
किन सीटों पर सबसे ज्यादा नाम कटे?
ड्राफ्ट के मुताबिक, कोलकाता और उससे सटे विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सूची में सबसे बड़ी कटौती हुई है.
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कोलकाता उत्तर: 25.92%
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कोलकाता दक्षिण: 23.82%
इसके अलावा प्रमुख सीटों पर कटौती इस प्रकार रही-
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जोरासांको: 36.66%
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चौरंगी: 35.45%
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हावड़ा उत्तर: 26.89%
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कोलकाता पोर्ट: 26.09%
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भवानीपुर (ममता बनर्जी की सीट): 21.55%
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बैरकपुर: 19.01%
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आसनसोल उत्तर: 14.71%
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आसनसोल दक्षिण: 13.68%
इन इलाकों में हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है और राजनीतिक रूप से इन्हें बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है.
मतुआ समुदाय और BJP की बढ़ती चिंता
बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय बीजेपी के लिए बेहद अहम माना जाता है. SIR ड्राफ्ट के अनुसार, मतुआ बहुल इलाकों में भी बड़ी संख्या में वोटरों के नाम हटाए गए हैं:-
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कसबा (दक्षिण 24 परगना): 17.95%
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सोनारपुर दक्षिण: 11.29%
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बनगांव उत्तर (उत्तर 24 परगना): 9.71%
हिंदी भाषी और मतुआ समुदाय दोनों को बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है. ऐसे में इन इलाकों में नाम कटने का सीधा असर पार्टी की रणनीति पर पड़ सकता है.
यूपी-बिहार कनेक्शन की चर्चा
पश्चिम बंगाल लंबे समय से उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासियों का प्रमुख ठिकाना रहा है. कई परिवार पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं. SIR प्रक्रिया के दौरान संभव है कि कुछ लोगों ने अपनी मूल जगह को प्राथमिक पहचान मानते हुए वहां की वोटर लिस्ट को चुना हो. यही वजह बताई जा रही है कि हिंदी भाषी इलाकों में नाम कटने की संख्या ज्यादा सामने आई है.
ड्राफ्ट डेटा यह भी संकेत देता है कि मतुआ और गैर-बंगाली प्रवासी मजदूर आबादी को इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा बाहर किए जाने का सामना करना पड़ा है.
विशेषज्ञों की राय
पूर्व सांसद और CPI(M) नेता सुजान चक्रवर्ती के अनुसार, हिंदी भाषी इलाकों में नाम कटने की एक बड़ी वजह वहां रहने वाले बिहार और यूपी के प्रवासी मजदूर हो सकते हैं. उनका मानना है कि संभव है उन्होंने अपने गृह राज्यों की वोटर लिस्ट में नाम बनाए रखने का फैसला किया हो. डेटा यह भी दर्शाता है कि मतुआ और गैर-बंगाली प्रवासी आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है.
मुस्लिम बहुल इलाकों में कम कटौती
ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के अनुसार, मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर नाम हटने की दर काफी कम रही है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुर्शिदाबाद में 66.3% और मालदा में 51.6% मुस्लिम आबादी है.
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मुर्शिदाबाद: केवल 4.84%
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मालदा: 6.31%
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अन्य मुस्लिम बहुल सीटों पर भी आंकड़े 10% से नीचे ही रहे
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डोमकल: 3.4%
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रेजिनगर: 5.04%
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शमशेरगंज: 6.86%
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मानिकचक: 6.08%
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चोपड़ा: 7.44%
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गोलपोखर: 7.03%
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इस्लामपुर: 8.17%
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चाकुलिया: 8.5%
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किसी भी मुस्लिम बहुल सीट पर नाम कटने का आंकड़ा 10% के पार नहीं गया.
TMC का पलटवार
टीएमसी महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के हवाले से बीजेपी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के आंकड़ों ने बीजेपी के उस दावे को झूठा साबित कर दिया है कि बंगाल में एक करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी रह रहे हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों का जिक्र करते हुए अभिषेक बनर्जी ने कहा कि आयोग के मुताबिक राज्य में केवल करीब 1.83 लाख फर्जी वोटर पाए गए हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी को बंगाल को घुसपैठियों का अड्डा बताने के लिए जनता से माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बीजेपी जिस तरह सभी बंगालियों को बांग्लादेशी कहकर बदनाम कर रही है, वह शर्मनाक है. यह अब रुकना चाहिए और उन्हें माफी मांगनी चाहिए.
टीएमसी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने भी कहा कि बीजेपी का नैरेटिव झूठ पर आधारित है. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने जनगणना से पहले SIR करवाया, जबकि जनगणना से असली तस्वीर सामने आ जाती. उनके मुताबिक, ड्राफ्ट लिस्ट बताती है कि बंगाल में यूपी और बिहार के लोग हैं, बांग्लादेशी घुसपैठिए नहीं.
बीजेपी का आरोप
बीजेपी ने SIR प्रक्रिया को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं. वरिष्ठ नेता राहुल सिन्हा ने कहा कि टीएमसी के दबाव के चलते बूथ लेवल अधिकारी निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर पाए. उन्होंने बताया कि इस संबंध में चुनाव आयोग को पहले ही अवगत कराया जा चुका है.
नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि SIR प्रक्रिया के लिए निर्वाचन आयोग राज्य प्रशासन पर निर्भर करता है और पश्चिम बंगाल में प्रशासन ने जानबूझकर मतदाता सूची में हेरफेर की है. बीजेपी ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर SIR में घोटाले का आरोप लगाया है और ममता सरकार पर तटस्थता के सिद्धांत का उल्लंघन करने तथा पुलिस के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया है.


