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ये तो बस शुरुआत है, असली तबाही बाकी... 24 साल बाद हिमालय पार कर तिब्बत पहुंचे बादल

इस बार मानसून ने खतरे की दस्तक दी है। बेहिसाब बारिश ने पहाड़ी राज्यों में जल प्रलय जैसा मंजर बना दिया है। 24 साल बाद बादल हिमालय पार कर तिब्बत पहुँचे और आपदा का नया डर पैदा कर रहे हैं।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

National News: मानसून आमतौर पर खुशियां लाता है लेकिन इस बार उसने दहशत फैला दी। पंजाब, दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्से पानी में डूबे हुए हैं। नदियां उफान पर हैं और पहाड़ों से लेकर मैदानों तक तबाही के दृश्य दिखाई दे रहे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा 24 सालों में पहली बार हुआ है जब बादल हिमालय को पार कर तिब्बत तक पहुंच गए। यह स्थिति मौसम के पुराने रिकॉर्ड तोड़ रही है और लोगों में बेचैनी फैला रही है।

हिमालय पार पहुंचे बादल

आमतौर पर मानसूनी बादल 2000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर नहीं जाते, इसलिए तिब्बत का इलाका शुष्क और ठंडा रहता है। मगर इस बार बादल हिमालय की चोटियां लांघकर तिब्बत तक पहुंच गए हैं। वहां भारी बारिश और बर्फबारी हो रही है। वैज्ञानिक इसे असाधारण घटना बता रहे हैं। मौसम विभाग के अनुसार, 80 साल पुराने पैटर्न टूट गए हैं और पहाड़ी इलाकों में अभूतपूर्व खतरा मंडरा रहा है।

जलवायु परिवर्तन का असर

विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन इस तबाही का बड़ा कारण है। पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के एक साथ टकराने से हालात बिगड़े। जम्मू-कश्मीर के जांस्कर इलाके में अगस्त के आखिरी दिनों में रिकार्ड बारिश और बर्फबारी हुई। आधा फीट से ज्यादा बर्फ गिरी और सौ मिलीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई। बादलों के ज्यादा ऊंचाई तक उठने की वजह से बाढ़ और भूस्खलन दोनों का खतरा बढ़ गया है।

ग्लेशियर झीलों की बढ़ती मुश्किल

केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 400 से ज्यादा ग्लेशियर झीलें तेजी से फैल रही हैं। ये झीलें कभी भी टूट सकती हैं और तबाही मचा सकती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इनकी निगरानी और प्रबंधन बेहद ज़रूरी है। अगर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो पहाड़ी राज्यों में जल प्रलय और ज्यादा विकराल हो सकता है। यह चेतावनी सरकार और जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है।

ठंड में भी गर्मी का अंदेशा

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा है कि सितंबर से ला नीना की वापसी हो सकती है। आमतौर पर यह ठंडक लाता है लेकिन इस बार हालात अलग हैं। वैश्विक तापमान औसत से ऊपर रहने का अनुमान है। यानी आने वाली ठंड भी गर्मी का एहसास कराएगी। यह जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और इंसानी ज़िंदगी पर इसके खतरनाक असर को उजागर करता है।

पहाड़ी राज्यों की तबाही

उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के कई इलाके बाढ़ और भूस्खलन की मार झेल रहे हैं। गांव खाली हो रहे हैं, सड़कें बह गई हैं और पुल टूट गए हैं। हजारों लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। किसानों की फसलें चौपट हो गई हैं और पशुधन का भी भारी नुकसान हुआ है। यह हालात बताते हैं कि जलवायु संकट अब दरवाजे पर नहीं बल्कि घर के भीतर घुस चुका है।

इंसानियत और इम्तिहान

इस आपदा ने इंसानियत का भी इम्तिहान लिया है। कई जगह गुरुद्वारों और मस्जिदों में लंगर चल रहे हैं। समाज सेवा संगठन राहत सामग्री बांट रहे हैं। सरकार ने सेना और एनडीआरएफ को तैनात किया है। लेकिन सवाल है-क्या हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ गंभीर कदम उठाएंगे या फिर हर साल इस तरह की तबाही को किस्मत मानकर झेलते रहेंगे?

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03 September 2025, 04:30 PM IST

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